scriptवरूथिनी एकादशी : जानें व्रत पूजा महत्व एवं रोचक कथा | Varuthini Ekadashi Vrat Katha : Saturday18 April 2020 | Patrika News
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वरूथिनी एकादशी : जानें व्रत पूजा महत्व एवं रोचक कथा

वरूथिनी एकादशी के दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु के वराह स्वरूप की पूजा की जाती है

Apr 12, 2020 / 06:15 pm

Shyam

वरूथिनी एकादशी : जानें व्रत पूजा महत्व एवं रोचक कथा

वरूथिनी एकादशी : जानें व्रत पूजा महत्व एवं रोचक कथा

इस साल 2020 में वरुथनी एकादशी व्रत 18 अप्रैल दिन शनिवार को हैं। वरूथनी एकादशी का व्रत प्रतिवर्ष वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है। इस एकादशी के दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु के वराह स्वरूप की पूजा आराधना करने से अनेक मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। जानें वरूथनी एकादशी व्रत पूजा व कथा।

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वैसे तो प्रत्येक मास में दो एकादशी आती है और दोनों ही एकादशी खास मानी जाती है। लेकिन वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी महत्व शास्त्रों में अधिक बताया जाता है। यह एकादशी पुण्य और सौभाग्य प्रदान करने वाली एवं समस्त पाप व ताप नष्ट करने वाली है।
वरूथिनी एकादशी : जानें व्रत पूजा महत्व एवं रोचक कथा

वरुथिनी एकादशी व्रत कथा का महत्व

वरुथिनी एकादशी व्रत का महत्व धार्मिक पौराणिक ग्रंथों में हैं। वरुथिनी एकादशी के बारे में कथा इस प्रकार है- बहुत समय पहले की बात है, माँ नर्मदा नदी के किनारे एक राज्य था जिसका राजा मांधाता था। राजा बहुत ही पुण्यात्मा थे, अपनी दानशीलता के लिये वे दूर-दूर तक प्रसिद्ध थे, वे तपस्वी भी और भगवान विष्णु के अनन्य उपासक थे। एक बार राजा जंगल में तपस्या के लिये चले गये और एक विशाल वृक्ष के नीचे अपना आसन लगाकर तपस्या आरंभ कर दी।

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राजा अभी तपस्या में ही लीन थे कि एक जंगली भालू ने उन पर हमला कर दिया वह उनके पैर को चबाने लगा। लेकिन राजा मान्धाता तपस्या में इतने एकाग्रचित थे कि भालू उन्हें घसीट कर ले जाने लगा, ऐसे में राजा को घबराहट होने लगी, लेकिन उन्होंने तपस्वी धर्म का पालन करते हुए क्रोध नहीं किया और भगवान विष्णु से ही इस संकट रक्षा के लिए निवेदन किया।

वरूथिनी एकादशी : जानें व्रत पूजा महत्व एवं रोचक कथा

भगवान अपने भक्तों पर संकट कैसे देख सकते हैं, विष्णु जी प्रकट हुए और भालू को अपने सुदर्शन चक्र से मार गिराया, लेकिन तब तक भालू ने राजा के पैर को लगभग पूरा चबा लिया था। राजा को बहुत पीड़ा हो रही थी, श्री भगवान ने राजा से कहा हे राजन विचलित होने की आवश्यकता नहीं है। तुम वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की वरुथिनी एकादशी तिथि जो मेरे वराह रूप का प्रतिक है, के दिन मेरे वराह रूप की पूजा करना एवं व्रत रखना। मेरी कृपा से तुम पुन: संपूर्ण अंगों वाले हष्ट-पुष्ट हो जाओगे। भालू ने जो भी तुम्हारे साथ किया यह तुम्हारे पूर्वजन्म के पाप कर्मों का फल है। वरुथनी एकादशी के व्रत और पूजन से तुम्हें सभी पापों से भी मुक्ति मिल जायेगी।

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भगवान की आज्ञा मानकर मांधाता ने वैसा ही किया और वरूथिनी एकादशी का व्रत पारण करते ही उसका भालू द्वारा खाया हुआ पैर पूरी तरह ठीक हो गया। भगवान वराह की कृपा से जैसे राजा को नवजीवन मिल गया हो। वह फिर से हष्ट पुष्ट होकर अधिक श्रद्धाभाव से भगवान की साधना में लीन रहने लगा। ठीक इसी तरह कोई भी व्यक्ति वरूथिनी एकादशी का व्रत रखकर इस कथा का पाठ करता है उसके सारे कष्ट दूर होने के साथ सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है।

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