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KALASHTAMI Vrat 2021: वैशाख माह का कालाष्टमी व्रत कब है? जानें शुभ मुहूर्त के साथ ही कब, क्या और कैसे करें?

भगवान शिव के अवतार काल भैरव…

May 02, 2021 / 10:13 pm

दीपेश तिवारी

kalashtami vrat May 2021

kalashtami vrat 2021

हिन्दू पंचांग के अनुसार, हर महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी पर्व मनाया जाता है। ऐसे में इस बार वैशाख मास कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि यानि कालाष्टमी 03 मई 2021 सोमवार Monday को दोपहर 01:39 बजे से शुरु हो रही है, जो 04 मई 2021 शनिवार Saturday को दोपहर 01:10 बजे समाप्त होगी। उदया तिथि की मान्यता होने के चलते KALASHTAMI का व्रत सोमवार के दिन यानि 03 मई को रखा जाएगा।

पंडित एसके पांडे के अनुसार कालाष्टमी के दिन Lord Shiv के अवतार काल भैरव की आराधना की जाती है। व्रत रखने वाले श्रद्धालु इस दिन भोले बाबा की कथा पढ़कर भजन कीर्तन करते हैं।

माना जाता है कि इस दिन भैरव बाबा की कथा सुनने से शत्रु बाधा, दुर्भाग्य, राहु-केतु के अलावा आपके आस-पास मौजूद नकारात्मक शक्तियों के साथ आर्थिक तंगी से भी राहत मिलती है। दरअसल मान्यता के अनुसार भगवान भैरव अपने भक्तों की हर विपत्ति से रक्षा करते हैं।

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वहीं ये भी माना जाता है कि जो भैरव के भक्तों के साथ कुछ भी बुरा या गलत करता है, उसे तीनों लोकों में से कहीं भी शरण नहीं मिलती है। वहीं ये भी मान्यता है कि अपराधिक प्रवृति वाले लोगों के लिए भगवान भैरव भयंकर दंडनायक होते हैं।

कालाष्टमी के संबंध में धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने पापियों का विनाश करने के लिए अपना रौद्र रूप धारण किया था। Bhagwan Shiv के मुख्य रूप से दो रूप बताए जाते हैं, जिनमें एक बटुक भैरव और दूसरे काल भैरव हैं।

इनमें से जहां बटुक भैरव सौम्य हैं, वहीं काल भैरव रौद्र रूप हैं। मासिक कालाष्टमी को Puja रात को कि जाती है। इस दिन काल भैरव की 16 तरीकों से पूजा अर्चना होती है। रात को चंद्रमा को जल चढ़ाने के बाद ही ये व्रत पूरा माना जाता है।

कालाष्टमी के दिन व्रत और पूजा करने से भय से मुक्ति मिलने के साथ ही सभी आने वाले संकट आने से पहले ही दूर हो जाते हैं। इसके अलावा ये कर्म रोगों से भी मुक्ति प्रदान करते हैं।

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कालाष्टमी के दिन क्या करें…
: कालाष्टमी के पावन दिन भैरव बाबा की पूजा करने से शुभ परिणाम मिलते हैं। ये दिन भैरव बाबा की पूजा का होता है, इस दिन श्री भैरव चालीसा का पाठ करना चाहिए। भैरव बाबा की पूजा करने से व्यक्ति रोगों से दूर रहता है।

: कालाष्टमी के पावन दिन कुत्ते को भोजन कराना चाहिए। ऐसा करने से भैरव बाबा प्रसन्न होते हैं और सभी मनोकामनाओं को पूरा करते हैं। भैरव बाबा का वाहन कुत्ता होता है, इसलिए इस दिन कुत्ते को भोजन कराने से विशेष लाभ होता है।

: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन व्रत करने से भैरव बाबा का आशीर्वाद प्राप्त होता है। अगर संभव हो तो इस दिन उपवास भी रखना चाहिए। इस दिन व्रत रखने से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है।

कालाष्टमी की पूजा व महत्व
नारद पुराण के अनुसार कालाष्टमी के दिन कालभैरव और Goddess Durga की पूजा करने से जीवन के सभी कष्ट दूर होने के साथ ही हर मनोकामना पूरी होती है। वहीं इस रात को देवी Maha Kali की विधिवत पूजा व मंत्रो का जाप अर्ध रात्रि में करना चाहिए।

पूजा करने से पहले रात को माता पार्वती और भगवान शिव की कथा पढ़ना या सुनना चाहिए। इस दिन व्रती को फलाहार ही करना चाहिए साथ ही कालभैरव की सवारी कुत्ते को भोजन जरूर करना चाहिए।

कालाष्टमी का व्रत करने वाले भक्त को ब्रह्ममुहूर्त में उठकर नित्यकर्मों व स्नानादि से निवृत होकर साफ़ कपड़ा धारण करके घर में पूजास्थल पर जाएं। इसके बाद पूजास्थल को Ganga Jal से शुद्ध करने के बाद काल भैरव को पुष्प अर्पित करते हुए व्रत का संकल्प लेना चाहिए। फिर दीप प्रज्ज्वलित करने के बाद बाबा भैरव का ध्यान रखते हुए उनकी आरती और चालीसा का पाठ करना चाहिए। यहां बाबा भैरव को फल, मिठाई और गुड का भोग लगाएं।

ये है बेहद खास : कालाष्टमी के दिन कालभैरव के वाहन काले कुत्ते को कच्चा दूध या मीठी रोटी अवश्य देना चाहिए, साथ ही दिन के अंत में कुत्ते की भी पूजा करनी चाहिए। वहीं रात में Kaal Bherav की उड़द,सरसों के तेल, दीपक, काले तिल आदि से पूजा-अर्चना करनी चाहिए इसके अलावा रात्रि जागरण भी करना चाहिए।


कालाष्टमी के दिन इन बातों का रखें खास ध्यान…
: कालाष्टमी के दिन व इसके पूजन के एक दिन पहले से ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।

: इस दिन सम्पूर्ण शुद्धता का खास ध्यान रखना होता है।

: काल भैरव जयंती यानी कालाष्टमी के दिन झूठ नहीं बोलना चाहिए।

: आमतौर पर बटुक भैरव की ही पूजा करनी चाहिए क्योंकि यह सौम्य पूजा है।

: काल भैरव की पूजा कभी भी किसी के नाश के लिए नहीं करनी चाहिए।

: इस दिन माता-पिता और गुरु का अपमान न करें।

: बिना भगवान शिव और माता पार्वती के काल भैरव पूजा नहीं करना चाहिए।

: गृहस्थ लोगों को भगवान भैरव की तामसिक पूजा नहीं करनी चाहिए।

: कुत्ते को मारे नहीं। संभव हो तो कुत्ते को भोजन कराएं।

कालभैरव मंत्र
।। ऊँ अतिक्रूर महाकाय कल्पान्त दहनोपम्।
भैरव नमस्तुभ्यं अनुज्ञा दातुमर्हसि।।
अपनी मनोकामना पूर्ति की कामना से कालाष्टमी के दिन इस भैरव मंत्र का जप सुबह शाम 108 करना चाहिए।

श्री भैरव जी की आरती…
सुनो जी भैरव लाडले, कर जोड़ कर विनती करूं।
कृपा तुम्हारी चाहिए , में ध्यान तुम्हारा ही धरूं।।

मैं चरण छूता आपके, अर्जी मेरी सुन सुन लीजिए।
मैं हूँ मति का मंद, मेरी कुछ मदद तो कीजिए।।

महिमा तुम्हारी बहुत, कुछ थोड़ी सी मैं वर्णन करूं।
सुनो जी भैरव लाडले…

करते सवारी श्वानकी, चारों दिशा में राज्य है।
जितने भूत और प्रेत, सबके आप ही सरताज हैं ।।
हथियार है जो आपके, उनका क्या वर्णन करूं।
सुनो जी भैरव लाडले…

माताजी के सामने तुम, नृत्य भी करते हो सदा।
गा गा के गुण अनुवाद से, उनको रिझाते हो सदा।।
एक सांकली है आपकी तारीफ़ उसकी क्या करूँ।
सुनो जी भैरव लाडले…

बहुत सी महिमा तुम्हारी, मेहंदीपुर सरनाम है।
आते जगत के यात्री बजरंग का स्थान है।।
श्री प्रेतराज सरकारके, मैं शीश चरणों मैं धरूं।
सुनो जी भैरव लाडले…

निशदिन तुम्हारे खेल से, माताजी खुश होती रहें।
सर पर तुम्हारे हाथ रखकर आशीर्वाद देती रहे।।

कर जोड़ कर विनती करूं अरुशीश चरणों में धरूं।
सुनो जी भैरव लाड़ले, कर जोड़ कर विनती करूं।।

आरती श्री भैरव बाबा की…
जय भैरव देवा, प्रभु जय भैंरव देवा।
जय काली और गौरा देवी कृत सेवा।।

तुम्हीं पाप उद्धारक दुख सिंधु तारक।
भक्तों के सुख कारक भीषण वपु धारक।।

वाहन शवन विराजत कर त्रिशूल धारी।
महिमा अमिट तुम्हारी जय जय भयकारी।।
तुम बिन देवा सेवा सफल नहीं होंवे।
चौमुख दीपक दर्शन दुख सगरे खोंवे।।

तेल चटकि दधि मिश्रित भाषावलि तेरी।
कृपा करिए भैरव करिए नहीं देरी।।

पांव घुंघरू बाजत अरु डमरू डमकावत।।
बटुकनाथ बन बालक जन मन हर्षावत।।
बटुकनाथ जी की आरती जो कोई नर गावें।
कहें धरणीधर नर मनवांछित फल पावें।।


श्री भैरव स्तुति…

यं यं यं यक्ष रुपं दशदिशिवदनं भूमिकम्पायमानं ।
सं सं सं संहारमूर्ती शुभ मुकुट जटाशेखरम् चन्द्रबिम्बम् ।।
दं दं दं दीर्घकायं विकृतनख मुखं चौर्ध्वरोयं करालं ।
पं पं पं पापनाशं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।1।।
रं रं रं रक्तवर्ण कटक कटितनुं तीक्ष्णदंष्ट्राविशालम् ।
घं घं घं घोर घोष घ घ घ घ घर्घरा घोर नादम् ।।
कं कं कं काल रूपं घगघग घगितं ज्वालितं कामदेहं ।
दं दं दं दिव्यदेहं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।2।।
लं लं लं लम्बदंतं ल ल ल ल लुलितं दीर्घ जिह्वकरालं ।
धूं धूं धूं धूम्र वर्ण स्फुट विकृत मुखं मासुरं भीमरूपम् ।।
रूं रूं रूं रुण्डमालं रूधिरमय मुखं ताम्रनेत्रं विशालम् ।
नं नं नं नग्नरूपं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।3।।
वं वं वं वायुवेगम प्रलय परिमितं ब्रह्मरूपं स्वरूपम् ।
खं खं खं खड्ग हस्तं त्रिभुवननिलयं भास्करम् भीमरूपम्
चं चं चं चालयन्तं चलचल चलितं चालितं भूत चक्रम् ।
मं मं मं मायाकायं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।4।।

खं खं खं खड्गभेदं विषममृतमयं काल कालांधकारम् ।
क्षि क्षि क्षि क्षिप्रवेग दहदह दहन नेत्र संदिप्यमानम् ।।
हूं हूं हूं हूंकार शब्दं प्रकटित गहनगर्जित भूमिकम्पं ।
बं बं बं बाललील प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।5।।

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