जानकारों के अनुसार कालाष्टमी ( Kalashtami ) पूजा पर भगवान शिव के अवतार काल भैरव की आराधना की जाती है। इस दिन व्रत रखने वाले श्रद्धालु भोले बाबा की कथा पढ़कर उनका भजन कीर्तन करते हैं। कहा जाता है कि इस दिन पूजन करने वाले लोगों को भैरव बाबा की कथा को जरूर सुनना चाहिए। ऐसा करने से आपके आस-पास मौजूद नकारात्मक शक्तियों के साथ आर्थिक तंगी से जुझ रहे लोगों को भी राहत मिलती है।
वहीं ये तिथि ( Kalashtami ) भगवान भैरव को समर्पित होने के कारण इसे भैरवाष्टमी भी कहा जाता है। इस दिन भक्त कालभैरव भगवान की पूजा करने के साथ व्रत भी करते हैं। भगवान कालभैरव की पूजा धार्मिक मान्यता के अनुसार रात्रि के समय की जाती है। यह तिथि भगवान भैरव की कृपा पाने के लिए श्रेष्ठ मानी जाती है।
वहीं धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान शिव ने पापियों का विनाश करने के लिए अपना रौद्र रूप धारण किया था। भगवान शिव के दो रूप बताए जाते हैं, बटुक भैरव और काल भैरव। जहां बटुक भैरव सौम्य हैं वहीं काल भैरव रौद्र रूप हैं। मासिक कालाष्टमी को पूजा रात को कि जाती है। इस दिन काल भैरव की 16 तरीकों से पूजा अर्चना होती है। रात को चंद्रमा को जल चढ़ाने के बाद ही ये व्रत पूरा माना जाता है।
: कालाष्टमी ( Kalashtami ) के पावन दिन भैरव बाबा की पूजा करने से शुभ परिणाम मिलते हैं। ये दिन भैरव बाबा की पूजा का होता है, इस दिन श्री भैरव चालीसा का पाठ करना चाहिए। भैरव बाबा की पूजा करने से व्यक्ति रोगों से दूर रहता है।
अष्टमी तिथि आरंभ- 04 फरवरी 2021 दिन गुरुवार रात 12 बजकर 07 मिनट से
अष्टमी तिथि समाप्त- 05 फरवरी 2021 दिन शुक्रवार रात 10 बजकर 07 मिनट तक
माना जाता है कि भगवान कालभैरव ( Kal Bherav ) की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस दिन व्रत और पूजन करने के साथ ही भैरव चालीसा का पाठ करना चाहिए। मान्यता है कि इससे कालभैरव भगवान की कृपा प्राप्त होती है।
कालाष्टमी महत्व ( Kalashtami Importance )
कालाष्टमी ( Kalashtami ) के दिन जो भक्त पूरी निष्ठा और नियम के साथ भगवान कालभैरव ( Kal Bherav ) की पूजा और व्रत करता है, हर तरह के भय, संकट और शत्रु बाधा से मुक्ति प्राप्त होती है। साधारण जन को भगवान कालभैरव ( Kal Bherav ) के बटुक रूप की पूजा करनी चाहिए क्योंकि उनका यह स्वरूप सौम्य है। कालभैरव भगवान का स्वरूप अत्यंत रौद्र है परंतु भक्तों के लिए वे बहुत ही दयालु और कल्याणकारी हैं।
कालाष्टमी के दिन भूलकर भी ना करें ये काम : kalashtami don’t do this
1. काल भैरव जयंती यानी कालाष्टमी के दिन झूठ बोलने से बचें, झूठ बोलने से नुकसान आपको होगा।
2. आमतौर पर बटुक भैरव की ही पूजा करनी चाहिए क्योंकि यह सौम्य पूजा है।
3. काल भैरव की पूजा कभी भी किसी के नाश के लिए न करें।
4. माता-पिता और गुरु का अपमान न करें।
5. बिना भगवान शिव और माता पार्वती के काल भैरव पूजा नहीं करना चाहिए।
6. गृहस्थ लोगों को भगवान भैरव की तामसिक पूजा नहीं करनी चाहिए।
7. कुत्ते को मारे नहीं। संभव हो तो कुत्ते को भोजन कराएं।
कालभैरव मंत्र ( Kal Bherav Mantra ) –
।। ऊँ अतिक्रूर महाकाय कल्पान्त दहनोपम्।
भैरव नमस्तुभ्यं अनुज्ञा दातुमर्हसि।।
– श्री भैरव स्तुति…
यं यं यं यक्ष रुपं दशदिशिवदनं भूमिकम्पायमानं ।
सं सं सं संहारमूर्ती शुभ मुकुट जटाशेखरम् चन्द्रबिम्बम् ।।
दं दं दं दीर्घकायं विकृतनख मुखं चौर्ध्वरोयं करालं ।
पं पं पं पापनाशं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।1।।
रं रं रं रक्तवर्ण कटक कटितनुं तीक्ष्णदंष्ट्राविशालम् ।
घं घं घं घोर घोष घ घ घ घ घर्घरा घोर नादम् ।।
कं कं कं काल रूपं घगघग घगितं ज्वालितं कामदेहं ।
दं दं दं दिव्यदेहं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।2।।
लं लं लं लम्बदंतं ल ल ल ल लुलितं दीर्घ जिह्वकरालं ।
धूं धूं धूं धूम्र वर्ण स्फुट विकृत मुखं मासुरं भीमरूपम् ।।
रूं रूं रूं रुण्डमालं रूधिरमय मुखं ताम्रनेत्रं विशालम् ।
नं नं नं नग्नरूपं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।3।।
वं वं वं वायुवेगम प्रलय परिमितं ब्रह्मरूपं स्वरूपम् ।
खं खं खं खड्ग हस्तं त्रिभुवननिलयं भास्करम् भीमरूपम्
चं चं चं चालयन्तं चलचल चलितं चालितं भूत चक्रम् ।
मं मं मं मायाकायं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।4।।
खं खं खं खड्गभेदं विषममृतमयं काल कालांधकारम् ।
क्षि क्षि क्षि क्षिप्रवेग दहदह दहन नेत्र संदिप्यमानम् ।।
हूं हूं हूं हूंकार शब्दं प्रकटित गहनगर्जित भूमिकम्पं ।
बं बं बं बाललील प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।5।।
1- आरती श्री भैरव बाबा की…
जय भैरव देवा, प्रभु जय भैंरव देवा।
जय काली और गौरा देवी कृत सेवा।।
तुम्हीं पाप उद्धारक दुख सिंधु तारक।
भक्तों के सुख कारक भीषण वपु धारक।।
वाहन शवन विराजत कर त्रिशूल धारी।
महिमा अमिट तुम्हारी जय जय भयकारी।।
तुम बिन देवा सेवा सफल नहीं होंवे।
चौमुख दीपक दर्शन दुख सगरे खोंवे।।
तेल चटकि दधि मिश्रित भाषावलि तेरी।
कृपा करिए भैरव करिए नहीं देरी।।
पांव घुंघरू बाजत अरु डमरू डमकावत।।
बटुकनाथ बन बालक जन मन हर्षावत।।
बटुकनाथ जी की आरती जो कोई नर गावें।
कहें धरणीधर नर मनवांछित फल पावें।।
2- श्री भैरव जी की आरती…
सुनो जी भैरव लाडले, कर जोड़ कर विनती करूं।
कृपा तुम्हारी चाहिए , मैं ध्यान तुम्हारा ही धरूं।।
मैं चरण छूता आपके, अर्जी मेरी सुन सुन लीजिए।
मैं हूँ मति का मंद, मेरी कुछ मदद तो कीजिए।।
महिमा तुम्हारी बहुत, कुछ थोड़ी सी मैं वर्णन करूं।
सुनो जी भैरव लाडले…
करते सवारी श्वानकी, चारों दिशा में राज्य है।
जितने भूत और प्रेत, सबके आप ही सरताज हैं।।
हथियार है जो आपके, उनका क्या वर्णन करूं।
सुनो जी भैरव लाडले…
माताजी के सामने तुम, नृत्य भी करते हो सदा।
गा गा के गुण अनुवाद से, उनको रिझाते हो सदा।।
एक सांकली है आपकी तारीफ़ उसकी क्या करूँ।
सुनो जी भैरव लाडले…
बहुत सी महिमा तुम्हारी, मेहंदीपुर सरनाम है।
आते जगत के यात्री बजरंग का स्थान है।।
श्री प्रेतराज सरकारके, मैं शीश चरणों मैं धरूं।
सुनो जी भैरव लाडले…
निशदिन तुम्हारे खेल से, माताजी खुश होती रहें।
सर पर तुम्हारे हाथ रखकर आशीर्वाद देती रहे।।
कर जोड़ कर विनती करूं अरुशीश चरणों में धरूं।
सुनो जी भैरव लाड़ले, कर जोड़ कर विनती करूं।।