scriptKaal Bhairav Jayanti 2021: काल भैरव अष्टमी कब है? जानें भैरव की अराधना, पूजन, रूप और इसके लाभ | Kaal Bhairav Ashtami 2021 kab hai? jo kehlati hai Kaal Bhairav Jayanti | Patrika News
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Kaal Bhairav Jayanti 2021: काल भैरव अष्टमी कब है? जानें भैरव की अराधना, पूजन, रूप और इसके लाभ

इनकी उपासना से दूर होते है सभी पाप, ताप और कष्ट

Nov 22, 2021 / 03:01 pm

दीपेश तिवारी

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kaal bherav janmotsav 2021

Kaal Bhairav Jayanti 2021 : हिंदू कैलेंडर के अनुसार हर माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मासिक कालाष्टमी (Kalashtami 2021) होती है। इस दिन को भगवान भैरव का विशेष दिन माना जाता है। इसे काला अष्‍टमी भी कहते हैं। यह तिथि भगवान भैरव की विशेष पूजा का दिन मानी गई है, अत: इस दिन पूजा और व्रत करने का विशेष महत्व है।

वहीं दूसरी ओर हिंदू कैलेंडर के मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली अष्टमी को काल भैरव अष्टमी (Kaal Bhairav Ashtami 2021) के नाम से जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान काल भैरव का इसी दिन अवतरण हुआ था। ऐसे में इस साल यानि 2021 में काल भैरव जंयती शनिवार,27 नवंबर को मनाई जाएगी। भगवान काल भैरव को भगवान शिव (Lord Shiva) का रुद्र स्वरुप माना जाता है।

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जानकारों के अनुसार काल भैरव अष्टमी तंत्र साधना के लिए अति विशेष मानी जाती है। मान्यता के अनुसार काल भैरव भगवान शिव का ही एक रुप हैं, और भैरव की साधना भक्तों के सभी संकटों को दूर कर देती है। इनकी साधनाओं को अत्यंत कठिन माना जाता है, जिसके तहत इस दौरान मन की सात्विकता और एकाग्रता का पूरा ख्याल रखना होता है।
पौराणिक मान्यताओं के आधार स्वरूप मार्गशीर्ष कृष्ष्ण पक्ष अष्टमी के दिन भगवान शिव, भैरव रूप में प्रकट हुए थे, अत: इसी उपलक्ष्य में इस तिथि को व्रत व पूजा का विशेष विधान है।

काल भैरव की पूजा से ये होते हैं विशेष लाभ
माना जाता है कि भैरवाष्टमी या कालाष्टमी के दिन पूजा उपासना से शत्रुओं और पापी शक्तियों का नाश होता है और सभी प्रकार के पाप, ताप व कष्ट दूर हो जाते हैं।
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भैरवाष्टमी के दिन व्रत और षोड्षोपचार पूजन अत्यंत शुभ और फलदायक माना गया है। मान्यता के अनुसार इस दिन श्री कालभैरव जी का दर्शन-पूजन शुभ फल देने वाला होता है।
भैरव के भक्तों के अनुसार भैरव जी की पूजा उपासना मनोवांछित फल देने वाली होती है। साथ ही साधक इस दिन भैरव जी की पूजा अर्चना करके तंत्र-मंत्र की विद्याओं को पाने में भी समर्थ होता है। वहीं इनका आश्रय प्राप्त करने वाला भक्त निर्भय हो जाने के साथ ही सभी कष्टों से मुक्त हो जाता है।
यह भी माना जाता है कि भैरव उपासना जहां क्रूर ग्रहों के प्रभाव को समाप्त करती है, वहीं इससे भैरव जी के राजस, तामस व सात्विक तीनों प्रकार के साधना तंत्र प्राप्त होते हैं।
कहा जाता है कि भैरव साधना स्तंभन, वशीकरण, उच्चाटन और सम्मोहन जैसी तांत्रिक क्रियाओं के दुष्प्रभाव को नष्ट करने के लिए कि जाती है, इनकी साधना करके सभी प्रकार की तांत्रिक क्रियाओं के प्रभाव को नष्ट किया जा सकता है। आमर्दक पीठ पर छ: मास तक जो लोग अपने इष्ट देव का जप करते हैं, वे समस्त वाचिक, मानसिक व कायिक पापों में लिप्त नहीं होते।
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संकटों का नाश करती है भैरव की अराधना
मान्यता के अनुसार भैरव आराधना से शत्रु से मुक्ति, संकट, कोर्ट-कचहरी के मुकदमों में विजय प्राप्त होती है, व्यक्ति में साहस का संचार होता है। वहीं ये भी माना जाता है कि इनकी आराधना से ही शनि का प्रकोप शांत होता है, रविवार और मंगलवार के दिन इनकी पूजा बहुत फलदायी मानी जाती है।

भैरव साधना और आराधना से पहले अनैतिक कृत्य आदि से दूर रहना चाहिए। माना जाता है कि पवित्र होकर की गई सात्विक आराधना ही फलदायक होती है। भैरव तंत्र में भैरव पद या भैरवी पद प्राप्त करने के लिए भगवान शिव ने देवी के समक्ष अनेक विधियों का उल्लेख किया, जिनके माध्यम से इन अवस्था को प्राप्त हुआ जा सकता है।

काल भैरव अष्टमी का पूजन
पंडित एलडी पंत के अनुसार भगवान शिव के काल भैरव रुप की उपासना षोड्षोपचार पूजन सहित करनी चाहिए। वहीं इस तिथि पर रात्रि जागरण करते हुए इनके मंत्रों का जाप करते रहना चाहिए। इसके अलावा भजन कीर्तन के साथ ही भैरव कथा व आरती भी करनी चाहिए, वहीं कालभैरव को प्रसन्न करने के लिए इस दिन काले कुत्ते को भोजन कराना शुभ माना जाता है। मान्यता अनुसार इस दिन भैरव जी की पूजा व व्रत करने वालों के सभी विघ्न समाप्त होने के साथ ही भूत, पिशाच व काल भी दूर रहते हैं।

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भैरव साधना का महत्व
भैरव साधना के संबंध में माना जाता है कि इनकी साधना से भय का नाश होता है। हिंदू देवताओं में भैरव जी का विशेष महत्व है, यह दिशाओं के रक्षक और काशी के संरक्षक कहे जाते हैं। कहा जाता है कि भगवान शिव से ही भैरव जी की उत्पत्ति हुई।

यह कई रुपों में विराजमान हैं भैरव
यूं तो भैरव के प्रमुख रूपों में बटुक भैरव और काल भैरव ही हैं, वहीं इन्हें रुद्र, क्रोध, उन्मत्त, कपाली, भीषण और संहारक भी कहा जाता है। भैरव को भैरवनाथ भी कहा जाता है और नाथ सम्प्रदाय में इनकी पूजा का विशेष महत्व रहा है।

ऐसे हुई भैरव की उत्पत्ति
कथा के अनुसार एक समय ब्रह्मा और विष्णु में विवाद छिड़ा कि परम तत्व कौन है ? उस समय वेदों से दोनों ने पूछा तो वेदों ने कहा कि सबसे श्रेष्ठ शंकर हैं। ब्रह्मा जी के पहले पांच मस्तक थे। उनके पांचवें मस्तक ने शिव का उपहास करते हुए, कहा कि रुद्र तो मेरे भाल स्थल से प्रकट हुए थे, इसलिए मैंने उनका नाम “रुद्र’ रखा है। अपने सामने शंकर को प्रकट हुए देख उस मस्तक ने कहा कि हे बेटा ! तुम मेरी शरण में आओ, मैं तुम्हारी रक्षा करूंगा।

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इस प्रकार गर्व युक्त ब्रह्मा जी की बातें सुनकर भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो उठे और अपने अंश से भैरवाकृति को प्रकट किया। शिव ने उससे कहा कि “काल भैरव’! तुम इस पर शासन करो। साथ ही उन्होंने कहा कि तुम साक्षात “काल’ के भी कालराज हो। तुम विश्व का भरण करनें में समर्थ होंगे, अत: तुम्हारा नाम “भैरव’ भी होगा।

तुमसे काल भी डरेगा, इसलिए तुम्हें “काल भैरव’ भी कहा जाएगा। दुष्टात्माओं का तुम नाश करोगे, अत: तुम्हें “आमर्दक’ नाम से भी लोग जानेंगे। हमारे और अपने भक्तों के पापों का तुम तत्क्षण भक्षण करोगे, फलत: तुम्हारा एक नाम “पापभक्षण’ भी होगा।

भगवान शंकर ने कहा कि हे कालराज ! हमारी सबसे बड़ी मुक्तिपुरी ‘काशी’ में तुम्हारा आधिपत्य रहेगा। वहां के पापियों को तुम्हीं दण्ड दोगे, क्योंकि “चित्रगुप्त’ काशीवासियों के पापों का लेखा- जोखा नहीं रख सकेंगे। वह सब तुम्हें ही रखना होगा।

शंकर की इतनी बातें सुनकर उस आकृति ‘भैरव’ ने ब्रह्मा के उस पांचवें मस्तक को अपने नखाग्र भाग से काट लिया। इस पर भगवान शंकर ने अपनी दूसरी मूर्ति भैरव से कहा कि तुम ब्रह्मा के इस कपाल को धारण करो। तुम्हें अब ब्रह्म-हत्या लगी है।

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इसके निवारण के लिए “कापालिक’ व्रत ग्रहण कर लोगों को शिक्षा देने के लिए सर्वत्र भिक्षा मांगो और कापालिक वेश में भ्रमण करो। ब्रह्मा के उस कपाल को अपने हाथों में लेकर कपर्दी भैरव चले और हत्या उनके पीछे चली। हत्या लगते ही भैरव काले पड़ गये। इसके बाद तीनों लोक में भ्रमण करते हुए वह काशी आए।

श्री भैरव काशी की सीमा के भीतर चले आए, परंतु उनके पीछे आने वाली हत्या वहीं सीमा पर रुक गयी। वह प्रवेश नहीं कर सकी। फलत: वहीं पर वह धरती में चिग्घाड़ मारते हुए समा गयी। हत्या के पृथ्वी में धंसते ही भैरव के हाथ में ब्रह्मा का मस्तक गिर पड़ा।

ब्रह्म- हत्या से पिण्ड छूटा, इस प्रसन्नता में भैरव नाचने लगे। बाद में यह स्थान ब्रह्म कपाल ही कपाल मोचन तीर्थ नाम से विख्यात हुआ और वहां पर कपर्दी भैरव, कपाल भैरव नाम से (लाट भैरव)विख्यात हुए। यहां पर श्री काल भैरव काशीवासियों के पापों का भक्षण करते हैं। वहीं कपाल भैरव का सेवक पापों से भय नहीं खाता।

भैरव के भक्तों से यमराज भी डरते हैं
काशीवासी भैरव के सेवक होने के कारण भक्त कलि और काल से नहीं डरते। माना जाता है कि भैरव के समीप अगहन बदी अष्टमी को उपवास करते हुए रात्रि में जागरण करने वाला मनुष्य महापापों से मुक्त हो जाता है। भैरव के सेवकों से यमराज भय खाते हैं।
समाज को सही मार्ग देना है भैरव जी का कार्य
भैरव जी शिव और दुर्गा के भक्त हैं व इनका चरित्र बहुत ही सौम्य, सात्विक और साहसिक माना गया है न की डर उत्पन्न करने वाला। मान्यता के अनुसार इनका कार्य सुरक्षा करना और कमजोरों को साहस देना व समाज को सही मार्ग देना है।
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काशी में स्थित भैरव मंदिर सर्वश्रेष्ठ स्थान पाता है, इसके अलावा शक्तिपीठों के पास स्थित भैरव मंदिरों का महत्व माना गया है, माना जाता है कि इन्हें स्वयं भगवान शिव ने स्थापित किया था। वहीं उज्जैन में स्थित कालभैरव मंदिर भी अतिविशिष्ट है।

काशी के कालभैरव की विशेषता
: काशी में भैरव का दर्शन करने से सभी अशुभ कर्म शुभ हो जाते हैं। सभी जीवों के जन्मांतरों के पापों का नाश हो जाता है।
: अगहन की अष्टमी को विधिपूर्वक पूजन करने वालों के पापों का नाश श्री भैरव करते हैं।
: मंगलवार या रविवार को जब अष्टमी या चतुर्दशी तिथि पड़े, तो काशी में भैरव की यात्रा अवश्य करनी चाहिए। इस यात्रा को करने से जीव समस्त पापो से मुक्त हो जाता है।
: जो मूर्ख काशी में भैरव के भक्तों को कष्ट देते हैं, उन्हें दुर्गति भोगनी पड़ती है।
: जो मनुष्य श्री विश्वेश्वर की भक्ति करता है और भैरव की भक्ति नहीं करता, उसे पग-पग पर कष्ट भोगना पड़ता है।
: जानकारों के अनुसार पापभक्षण भैरव की प्रतिदिन आठ प्रदक्षिणा करनी चाहिए।
: वहीं जो लोग काशी में वास करते हुए भी भैरव की सेवा, पूजा या भजन नहीं करे, उनका पतन होता है।

साक्षात् रुद्र हैं श्री भैरवनाथ
श्री भैरवनाथ साक्षात रुद्र माने जाते हैं। वेदों में जिस परमपुरुष का नाम रुद्र है, तंत्रशास्त्र में उसी का भैरव के नाम से वर्णन हुआ है। तंत्रालोक की विवेक टीका में भैरव शब्द की यह व्युत्पत्ति दी गई है- बिभॢत धारयतिपुष्णातिरचयतीतिभैरव: अर्थात् जो देव सृष्टि की रचना, पालन और संहार में समर्थ है, वह भैरव है।

शिवपुराण में भैरव को भगवान शंकर का पूर्णरूप बतलाया गया है। तत्वज्ञानी भगवान शंकर और भैरवनाथ में कोई अंतर नहीं मानते हैं। वे इन दोनों में अभेद दृष्टि रखते हैं।

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