रक्षाबंधन पर सर्वतोभद्रा सभागार में महाराजा का राखी दरबार सजता। सन् १८८१ की श्रावणी पूर्णिमा पर महंतों व गुरुओं ने माधोसिंह द्वितीय को वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ राखी बांधी। सम्राट के वंशज बैजनाथ ने पहली राखी बांधी। बाद में रत्नाकर पौंडरिक के वंशज गोबिंद धर के अलावा नारायण गुरु, गंगेश्वर भट्ट, उमानाथ ओझा आदि ने राखी बांधी।
राम सिंह द्वितीय व माधोसिंह द्वितीय के टीकाई पुत्र नहीं होने से सौ साल बाद तीसरी पीढ़ी में मानसिंह द्वितीय के बाइजीराज प्रेम कुमारी व भवानी सिंह जन्मे। सन् १९३२ के
रक्षाबंधन पर दस माह के युवराज भवानी सिंह ने बहन प्रेम कुमारी को राखी बांधी और स्वर्ण मोहर भेंट की। ईसरदा की गोपाल कंवर ने अपने ससुराल पन्ना रियासत से भाई मानसिंह को रामबाग में राखी भेजी। मानसिंह ने राखी बंधाई के पेटे चार सौ रुपए का राखी मनी आर्डर बहन को भेजा। राम सिंह द्वितीय की महाराणी राणावतजी भी भाई बहादुर सिंह करणसर के राखी बांधने त्रिपोलिया के किशोर निवास में १५ हथियार बंद सैनिकों व रथों के साथ गई।
जयपुर फाउण्डेशन के सियाशरण लश्करी के पास मौजूद रिकार्ड के मुताबिक सिटी पैलेस में निवास करने वाली जिस महाराणी व राजमाता के भाई
जयपुर के बाहर होते उनके लिए स्वर्ण मोहर, पाग के साथ राखी दस्तूर किसी जिम्मेदार जागीरदार के साथ उनके पीहर भेजा जाता। १७ अगस्त १९४० को पंडित गोकुल नारायण ने जनानी ड्योढ़ी में राखी पूजन किया। दिवंगत माधोसिंह की पत्नी राजमाता तंवरणाजी स्टेशन रोड के माधो बिहारीजी मंदिर से संगीनों के पहरे में भाई भवानी सिंह व रणजीत सिंह को राखी बांधने खातीपुरा गई। सवाई राम सिंह की रानियों में रीवा की बघेलीजी व धांध्रा की रानियों ने संदेश वाहक के साथ पीहर में राखी भेजी।
मानसिंह की ज्येष्ठ रानी मरुधर कंवर ने आला अफसर मुकंदचन्द्र के साथ पीहर
जोधपुर में व तीसरी रानी गायत्री देवी ने कामा के राजा प्रताप सिंह व ओहदेदार भंवर लाल के साथ पीहर कूचबिहार में राखी भेजी। कूच बिहार महाराजा ने दरबार लगा गायत्री देवी की भेजी राखी को सम्मान से स्वीकार किया। देवर्षि कलानाथ शास्त्री ने बताया कि वे बचपन में पिता भट्ट मथुरानाथ शास्त्री के साथ सवाई मानसिंह को राखी बांधने सिटी पैलेस गए थे। तब राजा व सामंतों ने खड़े हो कर सभी विद्वानों का अभिवादन के साथ विशेष सम्मान किया। जागीरदार अपना बकाया टैक्स जमा कराने के बाद ही राखी दरबार में जाते।