scriptHoli 2024: होली की अनोखी परंपराएं कर देंगी हैरान, कहीं पत्थरबाजी तो कहीं अंगारों से गुजर जाते हैं लोग | Holi 2024 Special Ajab Gajab Parampara Unique Holi tradition surprise you lathmar holi barsana 2024 khoon ki holi people throw stones pass through embers | Patrika News
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Holi 2024: होली की अनोखी परंपराएं कर देंगी हैरान, कहीं पत्थरबाजी तो कहीं अंगारों से गुजर जाते हैं लोग

Holi 2024 होली का त्योहार बेहद खास है। रंगों और हंसी ठिठोली के इस त्योहार होली की धूम देश दुनिया में रहती है। लेकिन देश के अलग-अलग कोनों में इसके अलग अंदाज देखने को मिलते हैं। कहीं पत्थर तो कहीं तलवार का सामना करना पड़ता है। इस तरह फूलों की होली, रंग की होली, पत्थर की होली, गोबर की होली, खून की होली ऐसे कई तरह के रंग होली पर देखने को मिलते हैं। आज हम कुछ विशेष और अनोखी होली परंपरा के बारे में बताएंगे ( Unique Holi tradition )।

Mar 25, 2024 / 12:45 pm

Pravin Pandey

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होली की अनोखी परंपरा


महाराष्ट्र के बीड जिले के विडा येवता गांव में 86 साल पहले शुरू हुई गधे पर दामाद को घुमाने की प्रथा आज भी जारी है। यहां होली के दिन नए दामाद को बुलाते हैं और उसके साथ होली खेलकर गधे पर बैठाकर गांव का चक्कर लगाते हैं। फिर उपहार देकर ससम्मान विदा करते हैं। इस परंपरा की शुरुआत तब हुई जब गांव के देशमुख परिवार के दामाद ने होली के दिन रंग लगवाने से मना कर दिया। इसके बाद उसके ससुर ने उसे रंग लगाने के लिए खूब मनाया, फिर भी नहीं माना तो उसने फूलों से गधे को सजवाया और दामाद को बुलाकर उसे गधे पर बैठाकर पूरे गांव में घुमाया। इस दौरान ससुराल वालों के साथ ही पूरे गांव वालों ने दामाद के साथ जमकर होली खेली, उन्हें जमकर रंग भी लगाया था। तभी से यह परंपरा शुरू हो गई।

देश दुनिया में ब्रज की होली विशेष प्रसिद्ध है। पूरे ब्रज मंडल में होली उत्साह से मनाया जाता है। इसमें बरसाना की लट्ठमार होली में शामिल होने के लिए देश दुनिया से भक्त आते हैं। किंवदंती है कि एक बार भगवान श्री कृष्ण राधाजी मिलने के लिए बरसाना गांव गए थे, वो यहां राधा जी और उनकी सखियों को चिढ़ाने लगे। ऐसे में राधाजी और सखियों ने कृष्ण और ग्वालों को सबक सिखाने के लिए लाठी से पीटने की कोशिश की। तभी से बरसाना और नंदगांव में लट्ठमार होली खेलने की शुरुआत हुई।
इस वर्ष 18 मार्च को बरसाना और 19 मार्च को नंदगांव में लट्ठमार होली का उत्सव मनाया जाएगा। इस पर्व में महिलाएं लट्ठ से हुरियारों (पुरुषों) को बेहद मजाकिया अंदाज में पीटती हैं। यह लट्ठमार होली बरसाना और नंदगांव के लोगों के बीच खेली जाती है और लट्ठमार होली के लिए फाग निमंत्रण दिया जाता है।
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डूंगरपुर जिले के भीलूड़ा गांव के रघुनाथजी मंदिर के पास हर साल धूमधाम से ‘पत्थरों की राड़’ की होली खेली जाती है। इस होली में युवा एक-दूसरे पर पत्थर फेंकते हैं, इसमें कई लोग घायल भी होते हैं। लेकिन उनके शरीर से खून बहना शुभ माना जाता है। यहां 200 साल से यह परंपरा चल रही है। इससे पहले लोग परंपरागत कपड़े पहनते हैं और फिर फेमस डांस गैर खेली करते हुए होली के दर्शन करते हैं, फिर राड़ खेलने और रघुनाथजी मंदिर में धौक खाने जाते हैं। यहां अलग-अलग दल पैरों में घुंघरू, हाथों में ढाल और साफा पहनकर एक दूसरे को उकसाते हैं, फिर पत्थरों की बौछार करते हैं। इलाज के लिए डॉक्टर की टीम मौजूद रहती है।

राजस्थान के मेवाड़-वागड़ क्षेत्र में होली पर कई अनोखी परम्पराएं निभाई जाती हैं, जो खतरनाक भी हैं। झीलों की नगरी उदयपुर के खैरवाड़ा में आदिवासी इसी तरह होलिका दहन के दिन खतरनाक खेल खेलते हैं। खैरवाड़ा में होली का दिन शौर्य प्रदर्शन का दिन होता है। यहां तलवार और बंदूकें लिए आदिवासी युवाओं की टोली फाल्गुन के गीत गाते हुए देवी स्थानक पर पहुंचता है, फिर हथियार लहराते हुए परंपरागत गैर नृत्य करते हैं। इसके बाद होलिका जलाई जाती है। इस दहकती होलिका के बीच डांडे को तलवार से काटने की अनोखी रस्म होती है। इसके लिए युवाओं में होड़ रहती है। जो इस डांडे को काट देता है उसकी वीरता का सम्मान होता है, लेकिन जो इसमें जो असफल रहते हैं उन्हें समाज के मुखिया की ओर से तय सजा-जुर्माना भुगतना होता है। सजा के तौर पर उन्हें मंदिर में ही सलाखों के पीछे बंद कर दिया जाता है। बाद में समाज द्वारा तय जुर्माना देने पर छोड़ा जाता है। हालांकि अब ये सब कुछ अब रस्म अदायगी के तौर होती है।
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मध्य प्रदेश के खंडवा, बुरहानपुर, बेतूल, झाबुआ, अलीराजपुर और डिंडोरी इलाके के गोंड आदिवासी होली और रंगपंचमी के बाद मेघनाद को अपना इष्ट देव मानकर मेघनाद पर्व मनाते हैं और उनकी पूजा कर बकरे की बलि देते हैं। इस दौरान झंडा दौड़ प्रतियोगिता, बैलगाड़ी दौड़ और अन्य प्रतियोगिता होती है। इसके लिए एक खंभे को तेल और साबुन लगाकर चिकना किया जाता है और इसमें लाल कपड़े में नारियल ,बतासे एवं नगद राशि को बंधा जाता है। उसके बाद प्रतियोगिता में भाग लेने वाले युवा इस खंबे पर चढ़ते हैं और ऊपर बंधा झंडा तोड़ने का प्रयास करते हैं। इस दौरान युवतियां हरे बांस की लकड़ी लेकर युवाओं को ऊपर चढ़ने से रोकती है और उन्हें मारती हैं। वहीं ढोल बजाकर ग्रामीण युवाओं का उत्साह बढ़ाते हैं।

रायसेन के दो गांवों चंदपुरा और ग्राम महगवा में ग्रामीण होलिका दहन के बाद अंगारों पर चलते हैं। बुजुर्गों का कहना है कि परंपरा निभाने से गांव में प्राकृतिक आपदा नहीं आती है। सुख शांति समृद्धि के लिए वर्षों पुरानी प्रथा निभाई जाती है। ग्रामीणों का कहना है कि अंगारों पर चलने के बाद एक दूसरे को रंग गुलाल लगाया जाता है।

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