आश्रम में दूर-दूर से विद्यार्थी और राजघराने के राजकुमार शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते थे। यहां पर महर्षि के प्रिय शिष्य आरुणि तथा उपमन्यु ने अपने ज्ञान का विस्तार किया था। ये दोनों शिष्य भगवान शंकर के प्रिय भक्त थे। महर्षि धौम्य ने अपने प्रिय शिष्यों के लिए साधना द्वारा शिवलिंग प्रकट किया था और यही शिवलिंग आज धूमेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।
डॉ. विद्याकांत तिवारी कहते हैं कि जिले में भगवान शिव के प्राचीन मंदिरों की संख्या कम नहीं है, लेकिन यहां कुछ शिव मंदिर ऐसे हैं, जिनका अपना एक अलग महत्व एवं प्राचीन इतिहास है। इन्हीं शिव मंदिरों में एक धूमेश्वर महादेव मंदिर है, देशभर में प्रसिद्ध है। इस मंदिर की प्रसिद्धि के हिसाब से इसका कोई खास विकास नहीं हो सका है। क्षेत्र के लोगों ने इस प्राचीन धरोहर का विकास कराये जाने की मांग की है। यहां पर सावन, शिवरात्रि तथा प्रत्येक सोमवार को श्रद्धालुओं की खासी भीड़ होती है।
धूमेश्वर महादेव मंदिर के महंत विजय गिरि का कहना है कि मंदिर परिसर में ही महर्षि धौम्य की पावन समाधि बनी हुई है। सात पीढ़ियों से उनके परिवार के लोग मंदिर की देखरेख कर रहे हैं, क्योंकि परिवार के लोग दशनामी जूना अखाड़ा से जुड़े हुए हैं। मंदिर परिसर में महर्षि धौम्य के अलावा औम्दा गिरि, चमन गिरि, उम्मेद गिरि व शंकर गिरि की समाधियां भी बनी हुई हैं। उन्होंने बताया कि पहले सिर्फ शिवलिंग व महर्षि धौम्य की समाधि थी, जब सुमेर सिंह किले का निर्माण हुआ उसी समय राजा सुमेर सिंह ने मंदिर व यमुना के किनारे अन्य घाटों का भी निर्माण कराया है। विजय गिरि बताते हैं कि यह बहुत पावन स्थान है। यहां पर आने वाले भक्तों की मनोकामना धूमेश्वर महादेव पूरी करते हैं।