अंग्रेजों के खिलाफ ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ में चंबल के किनारे बसी हथकान रियासत के हथकान थाने में साल 1909 में चर्चित डकैत पंचम सिंह, पामर और मुस्कुंड के सहयोग से क्रान्तिकारी पडिण्त गेंदालाल दीक्षित ने थाने पर हमला कर 21 पुलिसकर्मियों को मौत के घाट उतार दिया और थाना लूट लिया। इन्हीं डकैतों ने क्रान्तिकारियों गेंदालाल दीक्षित, अशफाक उल्ला खान के नेतृत्व में सन् 1909 में ही पिन्हार तहसील का खजाना लूटा और उन्हीं हथियारों से 9 अगस्त 1915 को हरदोई से लखनऊ जा रही ट्रेन को काकोरी रेलवे स्टेशन पर रोककर सरकारी खजाना लूटा।
स्वतंत्रता आदोलंन के दौरान साल 1914-15 में क्रान्तिकारी गेंदालाल दीक्षित ने चंबल घाटी में क्रान्तिकारियों के एक संगठन मातृवेदी का गठन किया। इस संगठन मे हर उस आदमी की हिस्सेदारी का आवाहन किया गया जो देश हित में काम करने के इच्छुक हों। इसी दरम्यान सहयोगियों के तौर चंबल के कई बागियों ने अपनी इच्छा आजादी की लडाई में सहयोग करने के लिये जताई। ब्रहमचारी नामक चंबल के खूखांर डाकू के मन में देश को आजाद कराने का जज्बा पैदा हो गया और उसने अपने एक सैकड़ा से अधिक साथियों के साथ मातृवेदी संगठन का सहयोग करना शुरू कर दिया। ब्रहमचारी डकैत के क्रान्तिकारी आंदोलन से जुडने के बाद चंबल के क्रान्तिकारी आंदोलन की शक्ति काफी बढ गई तथा ब्रिटिश शासन के दमन चक्र के विरूद्व प्रतिशोध लेने की मनोवृत्ति तेज हो चली। ब्रहमचारी अपने बागी साथियों के साथ चंबल के ग्वालियर में डाका डालता था और चंबल यमुना में बीहड़ों में शरण लिया करता था। ब्रहमचारी ने लूटे गये धन से मातृवेदी संगठन के लिये खासी तादात मे हथियार खरीदे।
इसी दौरान चंबल संभाग के ग्वालियर में एक किले को लूटने की योजना ब्रहमचारी और उसके साथियो ने बनाई, लेकिन योजना को अमली जामा पहनाये जाने से पहले ही अग्रेंजों को इस योजना का पता चल गया। ऐसे में अग्रेजों ने ब्रहमचारी के खेमे में अपना एक मुखबिर भेज दिया और पड़ाव में खाना बनाने के दौरान ही इस मुखबिर ने पूरे खाने में जहरीला पदार्थ डाल दिया। इस मुखबिर की करतूत का ब्रहमचारी ने पता लगा कर उसे मारा डाला, लेकिन तब तक अग्रेजों ने ब्रहमचारी के पड़ाव पर हमला कर दिया, जिसमें दोनों ओर से काफी गोलियों का इस्तेमाल हुआ। ब्रहमचारी समेत उनके दल के करीब 35 बागी शहीद हो गये।