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पापा मुझे लेकर क्लीयर थे, ’60 बच्चों के साथ क्लासरूम में नहीं बैठना, 60 हजार लोगों के सामने शो करना है’

25 साल का कामयाब सफर : मैजिशियन और मेंटलिस्ट सुहानी शाह कर रहीं सेलिब्रेट

Nov 05, 2022 / 01:47 pm

Aryan Sharma

पापा मुझे लेकर क्लीयर थे, '60 बच्चों के साथ क्लासरूम में नहीं बैठना, 60 हजार लोगों के सामने शो करना है'

पापा मुझे लेकर क्लीयर थे, ’60 बच्चों के साथ क्लासरूम में नहीं बैठना, 60 हजार लोगों के सामने शो करना है’

आर्यन शर्मा @ जयपुर. महज सात की उम्र में पहली बार स्टेज पर जादू दिखाया… अपने पैशन को जीने के लिए पहली कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ दी… और फिर 25 साल में अब तक पांच हजार से ज्यादा मैजिक शो कर लिए हैं। हम बात कर रहे हैं मैजिशियन और मेंटलिस्ट सुहानी शाह (Suhani Shah) की, जिन्होंने अपनी जादू की कला से देश-विदेश में विशिष्ट पहचान बनाई है। इन दिनों वह अपने सिल्वर जुबली टूर पर हैं और इसके तहत वह रविवार को जयपुर में शो करने जा रही हैं। अपने 25 साल के कामयाब सफर के दौरान हुए अनुभवों से सुहानी ने काफी कुछ सीखा है। सुहानी कहती हैं, ‘मेरी मां उदयपुर की हैं। मेरी पैदाइश भी उदयपुर की है। मैं जयपुर में बचपन में बहुत शो कर चुकी हूं, उम्मीद है वैसा ही प्यार अब भी मिलेगा, जैसा तब मिलता था।’
अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए सुहानी कहती हैं, मैं जब छह साल की थी तो टीवी पर जादू का एक प्रोग्राम देखा था। उसके बाद मैंने पापा से कहा, मुझे मैजिक करना है। मेरे पेरेंट्स अपने बच्चों की बात को कभी नकारते नहीं थे। मैंने जादू सीखने से पहले कंप्यूटर में डिप्लोमा कर लिया था। स्विमिंग में भी चैंपियन थी। पहली कक्षा में भी फर्स्ट रैंक लाई थी। हालांकि पहले तो माने नहीं, लेकिन बाद में उन्होंने बोला कि जब करना है तो पूरी शिद्दत से करो। मैजिक समझने और सीखने में 10 माह लग गए। पापा क्लीयर थे कि स्कूल या किसी बर्थडे पार्टी में शो नहीं करना है। बड़ा स्टेज शो करेंगे। फिर सात साल की उम्र में मैंने पहला शो अहमदाबाद में किया। गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री चीफ गेस्ट थे। शो को बहुत प्यार और प्रोत्साहन मिला। और, ‘जादुई’ सफर शुरू हो गया। गुजरात के बाद राजस्थान के जयपुर, जोधपुर, अजमेर और कोटा में शो किए। फिर मैं इंडिया के बाहर शो करने चली गई। वापस आई तो स्कूल छूट गया। पहली कक्षा के बाद मैं पढ़ाई नहीं कर पाई। दरअसल, एक वक्त ऐसा आ गया था कि या तो मैं एग्जाम दे सकती थी या शो कर सकती थी, क्योंकि टाइमिंग क्लैश होने लगी थी। पेरेंट्स को लगा कि अब डिसीजन लेना पड़ेगा कि शो छोड़ दे या फिर स्कूल। मुझे याद है, पापा का डिसीजन बहुत क्लीयर था कि उनकी बेटी को 60 बच्चों के साथ क्लासरूम में नहीं बैठना। 60 हजार लोगों के सामने शो करना है। मेरी मां भी क्लीयर थीं कि कुछ सीखना होगा तो मेरी बच्ची कहीं पर भी सीख जाएगी। प्रिंसिपल से भी पेरेंट्स का डिस्कशन हुआ था। मेरा आईक्यू टेस्ट लिया गया। फिर तय हुआ कि पैशन फॉलो करना है, कभी अड़चन आएगी भी, तो उसको दूर करेंगे।
पापा मुझे लेकर क्लीयर थे, '60 बच्चों के साथ क्लासरूम में नहीं बैठना, 60 हजार लोगों के सामने शो करना है'

पेरेंट्स को मुझ पर था पूरा भरोसा
अपनी कामयाबी में सुहानी माता-पिता के सहयोग और प्रोत्साहन का अहम योगदान मानती हैं। बकौल सुहानी, माता-पिता ने न सिर्फ बेटी की ख्वाहिश पूरी की बल्कि उस लेवल, उस मुकाम तक पहुंचाया, जो वह डिजर्व करती थी। जब मैं शो कर रही थी तो रिलेटिव्स माता-पिता से कहते थे, आपकी बेटी जादू करती है, स्कूल नहीं जाती। इससे शादी कौन करेगा, इसका भविष्य क्या होगा। लेकिन, इसके बावजूद मेरे पेरेंट्स का मुझ पर और मेरा उन पर भरोसा था। इसलिए मैं वहां पहुंच पाई, जहां आज हूं। बचपन में अगर आप कुछ करते हैं तो माता-पिता का साथ होना बहुत जरूरी है। मैं इस मामले में बहुत लकी हूं।

मैंने बचपन यूटिलाइज कर लिया…
सुहानी को इस बात का जरा भी रिग्रेट नहीं है कि उन्होंने अपना बचपन मिस किया है। सुहानी का कहना है, शायद मैंने वह बचपन एंजॉय नहीं किया, जिस तरह बाकी बच्चे करते हैं। मैं पड़ोस के बच्चों के साथ खेल नहीं सकी। मेरे बचपन के यार-दोस्त नहीं हैं। लेकिन, मुझे रोज स्टेज पर जाने का मौका मिलता था। मुझे शोज करना और ऑटोग्राफ देना बहुत अच्छा लगता था। लोगों से मिलती थी, उनसे बातें करती थी। यानी मैंने अलग तरीके का बचपन जीया है। कहते हैं न, सबको सब कुछ नहीं मिलता। इसलिए शायद जो मेरी उम्र के बच्चे मुझे देखते थे तो उन्हें लगता होगा, काश! मैं सुहानी जैसी होती। और सुहानी सोचती थी कि काश! मैं उनके जैसा बचपन जी पाती। आज जब पीछे मुड़कर देखती हूं तो मुझे लगता है कि मैंने अपना बचपन यूटिलाइज कर लिया।

पापा मुझे लेकर क्लीयर थे, '60 बच्चों के साथ क्लासरूम में नहीं बैठना, 60 हजार लोगों के सामने शो करना है'

आर्टिस्ट का कोई जेंडर नहीं होता
सुहानी ने मेल डोमिनेटेड फील्ड में खुद को स्थापित किया है। सुहानी कहती हैं, मेरे मन भी कभी यह खयाल नहीं आया कि मैं मेल डोमिनेटेड फील्ड में हूं। मुझे लगता है कि आर्टिस्ट का कोई जेंडर नहीं होता। आर्टिस्ट सिर्फ आर्टिस्ट होता है। लड़का हो या फिर लड़की, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। बस, अपनी कला में महारत होनी चाहिए। मुझे कभी अपने आपको ऐसा देखना अच्छा नहीं लगा कि मैं इंडिया की पहली मेंटलिस्ट हूं। बस, यह सोचकर अच्छा लगा कि मैं इंडिया की बेस्ट मेंटलिस्ट हूं। इसमें कोई शक नहीं है कि जैसे आप अपने आपको देखते हो, दुनिया भी वैसे ही देखती है।

किताब लिखने के लिए सीखी अंग्रेजी
साइकोलॉजी और ह्यूमन बिहेवियर पर सुहानी पांच किताबें भी लिख चुकी हैं। बकौल सुहानी, शोज करना तो मेरा रोज का काम था। शो करने के दौरान बहुत सारे एक्सपीरियंस होते थे, जो अलग-अलग किस्म के थे। तब मेरे पिता ने कहा कि तुम्हें किताब लिखनी चाहिए। मैंने इंग्लिश सीखी और फिर लिखना शुरू किया। पहली बुक रिलीज नहीं की। दूसरी बुक रिलीज की। तब मैं 15 साल की थी। यह बेस्ट सेलर बनी। यह लोगों के बिलीफ पर थी। उनकी सोच पर थी। फिर दो-तीन किताबें और लिख दी। लोगों को बताना था कि हमारे थॉट्स कितने पावरफुल हैं और किस तरह से हमारी आधी प्रॉब्लम्स का सॉल्यूशंस हमारे माइंड में ही है।

रोलर कोस्टर ऑफ इमोशंस…
अपने सिल्वर जुबली टूर में वह दिल्ली, मुंबई, बेंगलूरु, हैदराबाद, सूरत, वडोदरा, अहमदाबाद सहित कई शहरों में शो कर चुकी हैं। जयपुर में शो के बाद उनका यह टूर कोलकाता और गोवा भी जाएगा। सुहानी के मुताबिक, इस शो का प्रोडक्शन बहुत हाई है। मेंटलिज्म पर है तो ऐसा शो बनाना आसान नहीं है। इसमें मैजिक और मेंटलिज्म तो है ही। इसके अलावा फुल स्टोरीटेलिंग, म्यूजिक और ड्रामा भी है। एक प्ले में जैसा होता है वैसा है। पर यह एक मैजिक शो है। रोलर कोस्टर ऑफ इमोशंस है, जिसमें लोग हंसते हैं, रोते हैं और उन्हें मजा भी आता है। अभी तक लोगों का काफी अच्छा रेस्पॉन्स मिला है।

डिजिटल कॉन्टेंट क्रिएटर भी…
सुहानी डिजिटल कॉन्टेंट क्रिएटर भी हैं। वह यूट्यूब और अन्य मीडियम के लिए कॉन्टेंट बनाती हैं। वह कहती हैं, जब पैंडेमिक ने दस्तक दी तो स्टेज पर जाने का मौका नहीं मिल रहा था। सात साल की उम्र से काम कर रही हूं तो घर में खाली तो बैठ नहीं सकती थी। खुद का मन बहलाने के लिए ऑनलाइन कॉन्टेंट बनाना शुरू किया। मुझे नहीं पता था कि लोग इतना प्यार देंगे, जितना उन्होंने दिया। यह सिलसिला चल पड़ा। जब आप करते रहते हो तो चीजें अपने आप होती रहती हैं। यही नहीं, सुहानी ने गोवा में क्लिनिक भी चलाया, जिसमें वह क्लिनिकल हिप्नोथेरेपिस्ट की तरह काम करती थीं। जब वह मुंबई शिफ्ट हुईं तो उसे बंद कर दिया।

जादू की कला को मिले प्रॉपर रेस्पेक्ट
अपने फ्यूचर प्लान के बारे में सुहानी कहती हैं कि मैजिक को अपग्रेड करती रहूंगी। आज से 10 साल पहले मैं नहीं सोचती थी कि मैं कॉन्टेंट क्रिएटर बनूंगी। मुझे लगता है कि कभी-कभी कुदरत आपसे चीजें करवाती है। ज्यादा प्लान मत करो। मैं जो भी करूंगी, लोगों से रिलेटेड करूंगी। मुझे लोगों ने ही बनाया है। लोग साथ नहीं देते तो मैं कुछ कर नहीं पाती। शॉर्ट टर्म टारगेट तो यही है कि मैजिक एक प्राचीन कला है, लेकिन अब भी जादू को वह रेस्पेक्ट नहीं मिलती, जो मिलनी चाहिए। यह एक बहुत ही इंटेलिजेंट आर्ट फॉर्म है, लेकिन आज भी कभी-कभी लोग यह बोल देते हैं कि बच्चों को दिखा दो। मैं बताना चाहती हूं कि ये एक ऐसा आर्ट फॉर्म है जिसे सब लोगों को देखना चाहिए और उसका लुत्फ उठाना चाहिए। हम आगे भी टूर करेंगे और अधिक से अधिक लोगों तक जादू को पहुंचाएंगे। हम लोगों की उम्मीद से डील करते हैं। मेरा मानना है कि उम्मीद एक बहुत बड़ी चीज है। हमारी सोच और उम्मीद हम कहां पर लगाते हैं, उसी से ही हमारी जिंदगी बनती है।

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