यूपी चुनाव के दूसरा चरण में सबसे बड़ा मुद्दा जाति-धर्म का है। माना जा रहा है कि, पांच साल से चुप्पी साधे मुसलमान वोटर इस चरण में भाजपा को चोट पहुंचने का मौका नहीं छोड़ने वाले हैं। यूपी चुनाव के दूसरा चरण में भाजपा की ‘अग्निपरीक्षा’ है। इस चरण में मुस्लिम मतदाता किंगमेकर हैं। मुसलमान-जाट, लोधी-कुर्मी, मौर्य-सैनी और दलित वोटरों का दबदबा है। 55 विधानसभा सीटों में मुस्लिम वोटरों के प्रभाव को अगर देखते हैं तो मुरादाबाद की 6 में 5 सीट पर 50-55 फीसद, बिजनौर की 8 सीट पर 40 से 50 प्रतिशत, रामपुर की 5 सीटों पर 50 प्रतिशत, संभल की 4 सीटों पर यादव और मुस्लिम वोट 60 फीसदी, बरेली में 8 सीटों पर 40 प्रतिशत, अमरोहा की 4 सीटों पर 50 प्रतिशत और बदायूं की 6 सीटों में 45 फीसदी तक मुस्लिम वोटरों का असर है।
चुनाव 2017 में स्थिति भाजपा – 38 सीट
सपा – 15 सीट
कांग्रेस – 2
बसपा – 0
सपा-कांग्रेस गठबंधन को 17 सीटें मिली, जिसमें 16 मुस्लिम उम्मीदवार विजयी थे।
भाजपा को मिल सकता है फायदा चुनाव 2022 में चार पार्टियों ने 77 मुस्लिम उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे हैं। ये उम्मीदवार भाजपा के बिगड़े खेल को बना देंगे। 55 सीटों के लिए सपा 18 मुस्लिम, बसपा 23 मुस्लिम, कांग्रेस 21 मुस्लिम और एआईएमआईएम 15 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है।
किसान आंदोलन-गन्ना दूसरा मुद्दा किसान आंदोलन है। मोदी सरकार जून, 2020 में तीन कृषि कानूनों लेकर आई। किसान बेहद नाराज हुआ और उसने आंदोलन शुरू कर दिया। एक लड़ी शुरू हुई और पूरे पश्चिम यूपी में छा गई। पर किसानों और सरकार की ठना-ठनी के बीच आख़िकार सरकार झुकना पड़ा। पर किसानों का मन खट्टा हो चुका है। गन्ने की सही कीमत नहीं मिलना भी नाराजगी का एक पक्ष है।
बेरोजगारी – कोविड-19 की वजह से तमाम लोगों की नौकरियां और रोजगार खत्म हो गए। और जिस अनुपात में नौकरियां या रोजगार खत्म हुए उस अनुपात में नई नौकरियां सरकार सृजित नहीं कर सकी। ढेर सारे लोगों को सरकार ने खाने पीने की कमी नहीं होने दी पर रोजगार और नौकरी न होने का दोषी लोग सरकार को ही मानते हैं।
महंगाई-विकास यूपी में पिछले पांच साल में महंगाई ने अपने सारे रिकार्ड तोड़ दिए हैं। जरूरी सामान आम जनता की पहुंच से दूर हो गया है। एक किलो दाल लेने वाली आम जनता पाव भर में सिमट गई है। वहीं अगर विकास की बात करें तो तमाम एक्सप्रेस वे बन रहे हैं और अन चुके हैं। और ऐसी कई बड़ी परियोजनाएं जमीनी स्तर से मूर्त रुप में आ रही है। पर आम जनता का इससे सीधा वास्ता नहीं है। सड़कें, बिजली, पानी की घोषणाएं तो बहुत हैं पर बहुत से लोग इससे अछूते हैं।