वहीं, विदेशी बाजाराें में सरकारी बाॅण्ड जारी कर पूंजी जुटाने को लेकर उन्होंने कहा कि बाजार की गहराई मापने के लिए सरकारी बॉन्ड जारी किया जाता है तो उन्हें दिक्कत नहीं है, लेकिन विदेशी मुद्रा बाजार से नियमित रूप से धन जुटाने को लेकर सावधान रहने की जरूरत है।
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क्या आरबीआई के बैलेंस शीट का फायदा उठाना चाहती है सरकार ?
सुब्बाराव ने आगे कहा, “यदि दुनिया में कहीं भी एक सरकार उसके केंद्रीय बैंक की बैलेंस शीट को हड़पना चाहती है तो यह ठीक बात नहीं है। इससे पता चलता है कि सरकार इस खजाने को लेकर काफी व्यग्र है।” उन्होंने सरकार के इस कदम पर अपने विरोध का बचाव करते हुए कहा कि रिजर्व बैंक का जोखिम अन्य बैंकों से भिन्न है। रिजर्व बैंक के लिए पूरी तरह से अंतर्राष्ट्रीय नियमों का पालन करना फायदेमंद साबित नहीं हो सकता है।
जारी होने वाली है बिमल जालना कमेटी की रिपोर्ट
बता दें आरबीआई के इस पूर्व गवर्नर की तरफ से यह बयान एक ऐसे समय में आया है जब बिमल जालान कमेटी अपनी रिपोर्ट तैयार करने के अंतिम चरण में है। बिमल जालान कमेटी का गठन भारतीय रिजर्व बैंक के पर्याप्त पूंजी की पहचान करने तथा अतिरिक्त रकम सरकार को हस्तांतरित करने के तौर तरीकों पर रिपोर्ट तैयार करने के लिए किया गया था। पिछले साल ही सरकार व तत्कालीन आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल के इस्तीफे को भी सरकार व आरबीआई के बीच खींचतान से लेकर जोड़ा गया।
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इस अतिरिक्त रकम का क्या करती है आरबीआई
सुब्बाराव ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय निवेशक सरकार व केंद्रीय बैंक के बैलेंसशीट पर नजर रखते हैं। संकट के समय में कर्ज देने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष भी इस तरीका का इस्तेमाल करती है। उन्होंने कहा कि मैं चाहता हूं कि हमें बेहद सावधान रहना चाहिये तथा अधिशेष भंडार के हस्तांतरण के बारे में जो निर्णय लिया जायेगा उसपर विचार विमर्श किया जाना चाहिये। विश्लेषकों ने अनुमान जताया है कि आरबीआई के पास अधिशेष भंडार के तौर पर करीब 9 हजार करोड़ रुपये है, जोकि मुख्य पूंजी का करीब 27 फीसदी हिस्सा है।