CG Mandi: छत्तीसगढ़ के दुर्ग प्रदेश की मंडियों में अवैध दलाली चल रही है। इससे फल और सब्जी उत्पादक किसानों के साथ सरकार को भी करोड़ों का चूना लगाया जा रहा है। दरअसल प्रावधान के मुताबिक मंडी समिति के कर्मियों के माध्यम से फल और सब्जियों की नीलामी करानी है। इसके एवज में खरीदार व्यापारियों से 7 फीसदी मंडी फीस वसूल कर सरकारी खजाने में जमा कराना चाहिए।
CG Mandi: इसके विपरीत ये दलाल नीलामी में महज बोली लगवाकर एवज में किसानों से भी 8 फीसदी तक आढ़त वसूल कर रहे हैं। इस तरह सरकार को 7 फीसदी और किसानों को 8 फीसदी की चोट पहुंचाई जा रही है। बता दें कि आढ़त प्रथा मध्यप्रदेश के दौर से कानूनी रूप में प्रतिबंधित है।
नाम के व्यापारी, काम आढ़त का :
शासन को गुमराह करने इन कमीशन एजेंटों ने अपना पंजीयन व्यापारी के रूप में कर रखा है, जबकि ये सभी आढ़तिये हैं।
पंजीयन के कारण इन्हें दुकान व गोदाम भी अलाट हैं।
मंडी के वास्तविक क्रेता स्थानीय कोचिए हैं, जिनका कोई भी पंजीयन नहीं है, वहीं कोई सुविधा भी नहीं दी जा रही।
दुर्ग विधायक ललित चंद्राकर ने बताया की मंडी में नियम विरूद्ध किसानों से वसूली का मामला संज्ञान में आया था। किसानों के आंदोलन के बाद भी पूर्ववर्ती सरकार में प्रशासन के उदासीन रवैये के कारण कार्रवाई नहीं हो पाई थी। किसानों का शोषण बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। मंडी में प्रावधान के अनुसार व्यवस्था लागू कराई जाएगी।
इस तरह समझे खेल को
यह नियम : मंडी अधिनियम में एजेंट, दलाल अथवा आढ़तिया का प्रावधान नहीं है। यह हो रहा : मंडियों में खुलेआम दलाली की प्रथा चल रही है। ये एजेंट विक्रेता किसानों और क्रेता व्यापारियों के बीच मध्यस्थता का काम कर मोटी रकम वसूल कर रहे हैं।
यह नियम : मंडियों में क्रेता और विक्रेता के बीच बोली की व्यवस्था की जिम्मेदारी मंडी समिति की है। मंडी समिति द्वारा ही न्यूनतम बोली तय किया जाना है। यह हो रहा है: मंडी समिति के बजाए एजेंट अथवा दलाल बोली लगवा रहे हैं। न्यूनतम कीमत भी एजेंट तय कर रहे हैं।
सरकार के साथ किसानों को भी हर दिन लाखों का चूना दुर्ग की मंडी से समझिए वसूली का गणित 55 एजेंट हैं दुर्ग कृषि उपज मंडी समिति में 40 से 50 हजार कैरेट (25 किलो प्रति कैरेट) सब्जियां आती है हर दिन मंडी में।
50 से 250 रु. प्रति कैरेट के हिसाब से बिक रही हैं सब्जियां। 100 रु. प्रति कैरेट औसत दर मान ले सब्जियों की तो हर दिन 40 से 50 लाख की खरीदी-बिक्री मानी जा सकती है।
8 फीसदी के हिसाब से गणना करें तो इससे 3 लाख 20 हजार से 4 लाख रुपए सीधे दलालों को कमीशन। 7 फीसदी के हिसाब से गणना करें तो हर दिन 2 लाख 80 हजार से 3 लाख 50 हजार रुपए का नुकसान मंडी समिति को।
2 रु. प्रति कैरेट के हिसाब से गणना करें तो 80 हजार से 1 लाख अनलोडिंग चार्ज के रूप में चला जाता है। 150 से ज्यादा गाड़ियां आती है हर दिन मंडी में, 10 रुपए के हिसाब से गणना करें तो 1500 रुपए प्रवेश शुल्क के रुपए में वसूल होता है।
रायपुर की मंडी से समझिए वसूली का गणित
200 एजेंट हैं डुमरतराई, कृषि उपज मंडी,शास्त्री बाजार व भाठागांव में कुछ एजेंट सीधे किसानों से खेत या फार्म हाउस जाकर माल उठाते हैं। 70 से 80 हजार कैरेट (25 किलो प्रति कैरेट) सब्जियां आती है हर दिन मंडी में।
70 से 300 रु. प्रति कैरेट के हिसाब से बिक रही हैं सब्जियां। 100 रुपए प्रति कैरेट औसत दर मान ले सब्जियों की तो हर दिन 70 से 80 लाख की खरीदी-बिक्री मानी जा सकती है।
8% के हिसाब से गणना करें तो इससे करीब 6 लाख 80 हजार से 4 लाख रुपए सीधे दलालों को कमीशन। 7% के हिसाब से गणना करें तो हर दिन करीब 5 लाख 60 हजार का नुकसान मंडी समिति को।
2 रु. प्रति कैरेट के हिसाब से गणना करें तो 1 लाख 60 हजार अनलोडिंग चार्ज के रूप में चला जाता है। 500 से ज्यादा गाड़ियां आती है हर दिन मंडी में, 10 रु. के हिसाब से 5000 रु. प्रवेश शुल्क के रुपए में वसूल होता है।
यह नियम : मंडी अधिनियम में नीलामी व व्यवस्थाओं के एवज में 0.5 से 2 फीसदी शुल्क वसूली का प्रावधान है। प्रदेश सरकार ने इस शुल्क में छूट दे रखी है। यानी सरकार की ओर से पूरी व्यवस्था नि:शुल्क है।
यह हो रहा है: मंडी से सरकार को कोई भी शुल्क नहीं मिल रहा। इसी का आड़ लेकर दलाल सरकार की जगह खुद को मध्यस्थ बनाकर किसानों से वसूली कर रहे हैं। यह नियम : मंडियों में नीलामी की प्रक्रिया मंडी समिति द्वारा नियुक्त कर्मचारियों द्वारा कराया जाना है। इसके एवज में खरीदार व्यापारी से मंडी फीस के रूप में कीमत का 7% वसूलकर मंडी समिति के खाते में जमा कराया जाना है।
यह हो रहा है : मंडी समितियों के कर्मचारियों की जगह दलाल नीलामी करवा रहे हैं। इसके एवज में किसानों से 8% और व्यापारियों से 7% वसूल किया जा रहा है। इस तरह एकमुश्त 15% कमाई दलालों के हिस्से पहुंच रही है।
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