यह है परियोजना
डूंगरपुर. प्रदेश के दक्षिणांचल को रेल सुविधा से जोडऩे तथा बांसवाड़ा में प्रस्तावित थर्मल पावर प्लान्ट्स को कोयला आपूर्ति के लिए वर्ष 2010-11 के रेल बजट में डूंगरपुर-बांसवाड़ा-रतलाम रेल परियोजना की घोषणा हुई थी। तत्कालीन समय में इस प्रोजेक्ट की लागत तकरीबन 2100 करोड़ रुपए आंकी गई थी, इसमें आधी राशि की भागीदारी राज्य सरकार की तय थी। केंद्र व राज्य सरकार भागीदारी वाली यह पहली परियोजना थी। ०३ जून २०११ को डूंगरपुर रेलवे स्टेशन ग्राउण्ड पर तत्कालीन यूपीए सरकार की चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने परियोजना का शिलान्यास किया था। तत्कालीन समय में इस प्रोजेक्ट की डेटलाइन २०१६ तक की गई थी, तीन साल बाद ही यह प्रोजेक्ट बंद हो गया।
राजनीति की भेंट चढ़ी परियोजना
उद्घाटन के दो साल बाद ही यह परियोजना राजनीति की भेंट चढ़ गई। प्रदेश और केंद्र में सत्ता बदलने के साथ ही सरकारों ने समीक्षा के नाम पर बजट जारी करना बंद कर दिया। कुछ साल तो रेलवे ने प्रतीक्षा की, लेकिन बजट नहीं मिलने पर रेलवे ने अपने स्टाफ को भी अन्यत्र शिफ्ट कर दिया। इसके साथ ही परियोजना के जल्द दोबारा शुरू होने की उम्मीदों भी धुमिल हो गई।
विधानसभा चुनावों में भुनाया
कांग्रेस ने वर्ष २०१८ के विधानसभा चुनाव में रेल के मुद्दे को खूब भुनाया। भाजपा सरकार पर आदिवासी अंचल की उपेक्षा के आरोप लगाए। सागवाड़ा की रैली में तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रदेश में सरकार बनने पर इस परियोजना को दोबारा शुरू करने का वादा तक किया। सरकार बनने के बाद इस दिशा में आज तक कोई पहल नहीं हुई। इससे पहले केंद्र व राज्य में भाजपा की सरकार होने के बावजूद इस परियोजना को सिर्फ नजरअंदाज किया जाता रहा।
यह है प्रोजेक्ट का गणित
रतलाम रेल परियोजना निर्माण वृत्त की दृष्टि से तीन भाग डूंगरपुर, बांसवाड़ा तथा रतलाम में विभक्त थी। तीनों ही जगह पर उप मुख्य अभियंता (निर्माण) के दफ्तर स्थापित किए गए थे।
डूंगरपुर: इस वृत्त के अधिन रेलवे लाइन के 0 से ७५ किलोमीटर तक का क्षेत्र शामिल हैं। इसमें डूंगरपुर जिला सहित बांसवाड़ा की गढ़ी तहसील तक का हिस्सा है। इसमें सिर्फ 0 से 17 किमी की जमीन रेलवे को मिल पाई थी। जहां अर्थ वर्क तथा ब्रिज वर्क के काम चल किए गए थे।
बांसवाड़ा: गढ़ी से मध्यप्रदेश सीमा तक ७५ से १४२.८५ किमी तक का (६७ किमी) क्षेत्र इस वृत्त में हैं। इसमें सिर्फ १०६ से १२३ किमी तक की तथा दो छोटे-छोटे ब्लॉक में छह से सात किमी तक की जमीन ही रेलवे को मिल पाई थी।
रतलाम: मध्यप्रदेश के रतलाम जिले में स्थित इस वृत्त क्षेत्र में १४२.८५ किमी से १९१.७४ किमी तक का क्षेत्र शामिल हैं। यहां प्रस्तावित भूमि रेलवे को मिल गई थी, लेकिन बाद में प्रोजेक्ट खटाई में पडऩे से यहां भी काम ठप हो गया। इससे लोगों में निराशा है।
जन मुद्दा बने तो मिले सफलता
डूंगरपुर-रतलाम रेल परियोजना को स्वीकृत कराने के लिए बरसों तक अभियान चले। लोगों ने हर प्लेटफार्म पर इसके लिए आवाज बुलंद की, तब कहीं जाकर इसे हरी झंडी मिली थी। बदकिस्तमी से प्रोजेक्ट राजनीति का शिकार हो गया। ऐसे में एक बार फिर जनता को आगे आने की दरकार है। जनप्रतिनिधियों के माध्यम से आवाज को केंद्र सरकार तक पहुंचाने की जरूरत है।
दुगुनी से भी ज्यादा हुई लागत
उत्तर-पश्चिम रेलवे ने परियोजना की प्रारंभिक लागत 2100 करोड़ रुपए आंकी थी। सितम्बर २०१३ ने संशोधित प्रोजेक्ट २९१५.५७ करोड़ का प्रेषित किया। भूमि अधिग्रहण प्रावधानों में बदलाव से मुआवजा राशि में भी बढ़ोतरी हुई। प्रोजेक्ट में देरी के चलते हर वर्ष लागत 10 से 12 प्रतिशत बढ़ती जा रही है। इस हिसाब से यह परियोजना की वर्तमान लागत 4000 करोड़ से भी अधिक हो चुकी है।
प्रधानमंत्री तक पैरवी
उदयपुर-अहमदाबाद आमान परिवर्तन का कार्य अंतिम चरण में है। डूंगरपुर से अहमदाबाद तक डेमु ट्रेन भी शुरू हो चुकी है। रतलाम लाइन का काम पूर्ण होने पर डूंगरपुर रेलवे जंक्शन में तब्दील हो सकता है। ऐसे में एक बार फिर इस परियोजना को लेकर मांग जोर पकड़ रही है। लोकसभा सांसद कनकमल कटारा और राज्यसभा सांसद हर्षवद्र्धनसिंह ने समय-समय पर रेल मंत्री से मिलकर इसके लिए आग्रह भी किया। हाल ही सांसद कनकमल कटारा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात कर इस परियोजना के लिए पूर्ण बजट केंद्र से दिलाकर इसे पूर्ण कराने का आग्रह किया है।
मुख्यमंत्री को भी पत्र
इधर, पूर्व सांसद ताराचंद भगोरा ने भाजपा सरकारों पर प्रोजेक्ट को ठप करने का आरोप लगाते हुए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से बजट में इस परियोजना के लिए प्रावधपान का आग्रहण किया।
फेक्ट फाइल
डूंगरपुर-बांसवाड़ा-रतलाम रेल परियोजना
कुल लंबाई – 191.74 किमी
सुरंग की संख्या व लंबाई- 07/7.40 किमी
मोड- 43
स्टेशन- 19
अधिग्रहण योग्य सरकारी भूमि – 451.93 हैक्टेयर
अधिग्रहण योग्य निजी भूमि- 1161.24 हैक्टेयर