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रोग और उपचार

Sickle cell anemia: अगर माता-पिता को यह बीमारी है तो बच्चे को भी होगी

सिकल सेल एनीमिया खून की कमी से जुड़ी एक बीमारी है। इस आनुवांशिक डिसऑर्डर में ब्लड सेल्स या तो टूट जाते या उनका आकार (सिकल यानी दरांती जैसे) बदलता है जिससे ब्लड सेल्स में ब्लॉकेज और रेड ब्लड सेल्स तेजी से मरते भी हैं।

Oct 07, 2023 / 02:09 pm

Manoj Kumar

Sickle cell anemia

Sickle cell anemia : सिकल सेल एनीमिया खून की कमी से जुड़ी एक बीमारी है।

सिकल सेल एनीमिया खून की कमी से जुड़ी एक बीमारी है। इस आनुवांशिक डिसऑर्डर में ब्लड सेल्स या तो टूट जाते या उनका आकार (सिकल यानी दरांती जैसे) बदलता है जिससे ब्लड सेल्स में ब्लॉकेज और रेड ब्लड सेल्स तेजी से मरते भी हैं। इसमें रेड ब्लड सेल्स की आयु 10-20 दिन होती है जबकि सामान्य रूप से 120 दिन होता है। इससे शरीर में खून की कमी और अन्य अंगों को भी नुकसान होता है।
56% महिलाएं ग्रस्त

यह बीमारी 15- 50 साल की उम्र की करीब 56त्न महिलाओं में हैं। पिछले 6 दशकों से यह बीमारी भारत में ज्यादा तेजी से फैल रही है। विश्व के करीब आधे मरीज भारत में हैं।

चर्चा में: सिकल सेल एनीमिया: प्रधानमंत्री ने 2047 तक खत्म करने का लक्ष्य रखा: यह टैग लेख के एक महत्वपूर्ण तथ्य को उजागर करता है, जो यह है कि भारत सरकार ने सिकल सेल एनीमिया को 2047 तक खत्म करने का लक्ष्य रखा है।

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आनुवांशिक बीमारी

सिकल सेल एनीमिया एक आनुवांशिक बीमारी है। यह बीमारी अधिकतर जनजातियों में देखने को मिलती है। देश में 706 जनजातियां हैं जो कुल आबादी का 8.6 फीसदी हैं।

यहां ज्यादा मरीज
राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, पं. बंगाल, ओडिशा, तेलंगाना, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के कुछ राज्य।

संभावित लक्षण
इसके लक्षण बच्चों में 6 माह की उम्र से देखे जा सकते हैं। इससे थकान-कमजोरी होती है। छाती, पेट और जोड़ों में खून की समस्या होने से तेज दर्द हो सकता है। यह कुछ घंटों से लेकर कुछ दिनों तक रह सकता है। हाथ-पैरों में सूजन और बार-बार संक्रमण होना भी इसके प्रमुख लक्षण हो सकते हैं।
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एकमात्र कारण
अगर माता-पिता को यह बीमारी है तो बच्चे को भी होगी। यह मुख्य रूप से आनुवांशिक बीमारी है। इनमें एक जीन होता है जो एनीमिया के खिलाफ आंशिक सुरक्षा प्रदान करता है। यह जीन ही बीमारी का कारण बनता है। बार-बार संक्रमण से प्लीहा की क्षमता पर असर पड़ता है।
कब दिखाएं

तेज बुखार, चिड़चिड़ापन, शरीर का रंग पीला, तेज सांसें, पेट बढऩे, हाथ और पैरों में सूजन, कमजोरी, बेसुध होने, आंखों में दिक्कत और दौरे आते हैं।

जांचें
इसे प्रेग्नेंसी या फिर बच्चे के जन्म के समय डायग्नोस किया जाता है। जांच के लिए सीबीसी यानी संपूर्ण ब्लड काउंट टेस्ट, हीमोग्लोबिन इलेक्ट्रोफोरेसिस टेस्ट (असामान्य हीमोग्लोबिन की जांच), यूरिन की जांच ताकि किसी तरह के छिपे हुए इंफेक्शन का पता चल सके। अल्ट्रासाउंड-एक्सरे भी कराते हैं।
इलाज
हर मरीज के लक्षणों के आधार पर इलाज होता है। इसमें खून चढ़ाने की जरूरत पड़ती है। बोनमैरो ट्रांसप्लांट एकमात्र इलाज है। यह न केवल कठिन, महंगा इलाज है बल्कि इसके साइड इफेक्ट भी होते हैं। इसमें डोनर, मरीज का भाई या बहन हो ताकि बोनमैरो मैच हो जाए।
इन बातों का रखें ध्यान

– शिशु को लगने वाले सभी टीकों के न्यूमोकॉकल, फ्लू और मेनिंगोकॉकल का टीका भी लगवाएं।
– फोलिक एसिड सप्लीमेंट भी नियमित रूप से देना चाहिए ताकि नई लाल रक्त कोशिकाएं बनती रहें।
– खूब पानी पीते रहें ताकि दर्द से बचा जा सके। दर्द निवारक दवाइयां डॉक्टरी सलाह के बाद ही लें।
– शादी से पहले लडक़ा-लडक़ी के ब्लड की जांच हो ताकि सिकल सेल बच्चों में न फैले।
डॉ. अक्षत जैन, डायरेक्टर सिकल सेल सेंटर,लोमा लिंडा चिल्ड्रन हॉस्पिटल, अमरीका

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