श्रावण शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाए जाने वाले इस त्यौहार का बहनों को बेकरारी से इंतजार रहता है। राखी के अटूट रक्षा सूत्र के धागे में बहनों अपने भाई की कलाई पर बांध कर भाई की दीर्घायु की कामना करती है। भाई भी अपनी बहना को ताउम्र उसकी रक्षा करने का वचन देता है। देहात और शहर के काफी संख्या में युवक विभिन्न राजकीय व गैर राजकीय सेवा में कार्यरत हैं वे भी इस त्योहार को मनाने के लिए अपने घर लौटने लगे हैं।
आमों के बगीचों के लिए पहचाना जाने वाले बाड़ी शहर में आस पास काफी कम संख्या में बाग और बगीचे हैं। अधिकांश में व्यावसायिक काप्लेक्स और कॉलोनियां विकसित हो गई हैं। इन बागों में पीहर आई नव विवाहिता सखियों सहित झूला झूलती थीं, मगर अब वह इतिहास के पन्नों में दर्ज होती जा रही हैं।
अब भी है फुलवरिया का रिवाज
रक्षाबंधन से पूर्व महिलाएं बड़े यत्न से फुलवरिया उगाती हैं। जिन्हें बालिका से लेकर बुजुर्ग महिला अपने से बड़ों पिता, भाई, दादाजी को दिया जाता है। रक्षाबंधन के दूसरे दिन शहर के सराफा बाजार से हौद को जाने वाले मार्ग पर पहले फुलवरिया का मेला लगता था।
सोहनी के सामान की काफी कम है बिक्री
जिन नव युगलों का विवाह इस सीजन में हुआ है। उनकी ससुराल में सोहनी भेजने की परंपरा हैं, जोकि शहर में तो अधिकांशत: समापन की ओर है, किंतु देहात में आज भी दूल्हे के छोटे भाई और भतीजे सोहगी का सामान ले जाते हैं। इस तरह शुरू हुई रक्षा बंधन की परंपरा
एक बार परेशान होकर भगवान इंद्र अपने गुरु बृहस्पति से सलाह लेने गए। इस पर गुरु बृहस्पति ने उन्हें अपनी पत्नी इंद्राणी से अपनी कलाई पर राखी बंधवाने के लिए कहा। जैसा कि कहा गया था। इंद्राणी ने भगवान इंद्र की कलाई पर सभी नुकसानों से सुरक्षा के प्रतीक के रूप में पवित्र ताबीज बांध दिया और इस तरह
रक्षा बंधन की परंपरा शुरू हुई।
राजा बलि और माता लक्ष्मी का रक्षाबंधन
रक्षाबंधन मनाने की यह कथा भी प्रचलित है कि राजा बलि भगवान विष्णु के परमभक्त थे। भगवान शिव जिस श्रावण मास में भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व माना गया है। उसकी पूर्णिमा पर भगवान शिव को भी राखी चढ़ाने की मान्यता है। हिंदू मान्यता के अनुसार भगवान शिव की बहन का नाम असावरी देवी है।