क्षेत्र में सरसों ओर गेंहू की फसल के लिए खेतों में यूरिया का उपयोग बड़ी मात्रा में किया जाता है। लेकिन उर्वरक वितरकों के कालाबाजारी के लिए कृत्रिम कमी दिखाकर मनमाने दामों पर ही आपूर्ति की जा रही है । किसानों का आरोप है कि यूरिया के साथ बिल भी नहीं दिया जा रहा था। जो किसान बिल मांगते हैं उनको देने से मना कर दिया जाता है। इन हालात में किसानों का आरोप है कि उन्हें मजबूरन अधिक कीमतों पर माल खरीदने को मजबूर होना पड़ रहा है।
अवांछित उत्पाद खरीदने को कर रहे विवश विक्रेता किसानों को यूरिया के साथ अवांछित उत्पाद खरीदने को विवश कर रहे हैं। जो किसान इसका विरोध करते हैं उनको यूरिया की कीमत 350 रुपए तक देनी पड़ती है कोई शिकायत करता है तो अभद्र व्यवहार का सामना भी करना पड़ता है। और यूरिया न मिलने पर फसल खराब होने के डर से किसान विरोध भी नहीं कर पाता।
प्रशासन की सुस्ती से हौसले बुलंद किसानों का आरोप है कि इस बाबत कई बार संबंधित स्थानीय विभाग को शिकायत की गई लेकिन इनका प्रभाव इतना है कि इनपर कोई कार्रवाई नहीं होने से उनके हौसले बुलंद हैं। और अब तो विरोध करने वाले किसानों को यूरिया मिलना तो दूर अभद्र व्यवहार का सामना करना पड़ता है।
विक्रेताओं के भी सरकार पर आरोप वहीं उर्वरकों के व्यपारियों का भी अजीब तर्क सामने आ रहा है। उनका कहना है कि उर्वरकों के निर्माता ही उन्हें अन्य उत्पाद खरीदने पर ही यूरिया उपलब्ध करवा रहे हैं। खास तौर से नैनो यूरिया जो बेहद लाभदायक है लेकिन जागरूकता के अभाव में किसान ना तो उसे खरीद रहे हैं ना उसका उपयोग कर रहे हैं। सारा गतिरोध बस इसी बात का है। जब निर्माता उन्हें जबरदस्ती दे रहे हैं सरकार भी यही चाहती है तो फिर इस बात पर गतिरोध क्यों हो रहा है।