धौलपुर. स्कूली बस्ता बच्चों की सेहत पर भारी पड़ रहा है। निजी प्रकाशनों की किताबों से होने वाली मोटी कमाई के कारण नौनिहाल तय मानक से ज्यादा वजन का बस्ता उठाने को मजबूर हैं। स्कूल प्रबंधकों से लेकर सरकार तक सब आंखें बंद किए हुए बैठे हैं। जिसका असर उनकी सेहत पर पड़ रहा है। सरकारी अस्पतालों से लेकर निजी क्लीनिकों में सिरदर्द, कंधे में दर्द और पीठ में दर्द की शिकायत वाले बच्चों को लेकर अभिभावक पहुंच रहे हैं।
प्रदेश में राष्ट्रीय स्कूल बैग नीति लागू 2020 में लागू हुई थी। जिसके तहत एलकेजी से लेकर कक्षा 12 तक बच्चों के लिए स्कूल बैग वजन के मानक तय किए गए थे। तब लगा शायद इन नौनिहालों के कंधो से किताबों का बोझ शायद कम हो, लेकिन नीति लागू हुए 4 साल बाद भी हालत जस के तस बने हुए हैं। और यह सब खेल निजी विद्यालयों में ज्यादा देखा जा रहा है। जिस कारण बच्चे बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। 2022 में नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन की प्रकाशित एक अध्ययन में छात्रों के वजन का 16.5 फीसदी बैग का वजन पाया गया। शोध में शामिल 55.9 प्रतिशत बच्चों ने पूरे साल पीठ, कंधे या सिर दर्द की शिकायत की। इनमें से 21.3 फीसदी बच्चों के परिजन डॉक्टरों के पास भी गए।
68 फीसदी बच्चों को पीठ दर्द की शिकायत:विशेषज्ञ मुंबई सहित देशभर के 10 शहरों में 7 से 13 साल की उम्र के स्कूली बच्चों पर हुए एसोचैम के सर्वे से पता चला है कि भारी भरकम बस्ता ढोने वाले 68 फीसदी बच्चों को पीठ दर्द की शिकायत है। बस्ते का बोझ इसी तरह बना रहा तो आगे चलकर उनका कूबड़ यानी पीठ का ऊपरी हिस्सा बाहर की ओर उभर सकता है। विशेषज्ञ बताते हैं कि बस्ते का बोझ बच्चे के वजन से दस फीसद से अधिक नहीं होनी चाहिए। मतलब यदि बच्चे का वजन दस किलो है तो उसके बैग का वजन एक किलो से अधिक नहीं होना चाहिए।
कोरोना का शिकार हुआ प्रोजेक्ट दिल्ली,कर्नाटक, श्रीनगर, उत्तराखंड ने बैग नीति 2020 लागू कर दी है। महाराष्ट्र में कक्षा एक के बच्चों के लिए एक ही किताब में पूरा कोर्स समायोजित है। तो वहीं राजस्थान ने 2019 में बस्ते का वजन दो तिहाई कम करने की योजना बनाई थी। 2020 में इसे 33 जिलों के एक-एक स्कूल में शुरू किया जाना था, लेकिन लॉकडाउन की वजह से मामला ठण्डा पड़ गया। बंगाल में स्कूलों में किताबों के लिए लॉकर की योजना थी लेकिन कोरोना में योजना बंद पड़ गई।
हाईकोर्ट लगा चुकी हैं फटकार मई 2018 में मद्रास हाइकोर्ट ने कहा कि ‘बच्चे न तो भारोत्तोलक हैं ना ही बैग लदे कंटेनर’। स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबें अनिवार्य की जाएं और बैग का वजन छात्र के वजन का 10 फीसदी से अधिक न हो। अप्रैल 2019 में उड़ीसा हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका पर राज्य को बैग का वजन कम करने का आदेश दिया। वहीं, बैग नीति का पालन न करने पर भोपाल कोर्ट ने जून, 2022 में जिला शिक्षा विभाग को नोटिस जारी किया।
क्या है राष्ट्रीय स्कूल बैग नीति 2020 नीति के अनुसार छात्रों के स्कूल बैग का वजन उनके शरीर के वजन का 10 प्रतिशत ही होना चाहिए। शिक्षकों को एक दिन पहले ही बताना होगा कि किस दिन कौन सी किताबें और नोटबुक लानी हैं। कक्षा 2 तक किसी बच्चे को होमवर्क नहीं दिया जाएगा। कक्षा 3, 4, 5 के लिए प्रति सप्ताह 2 घंटे होमवर्क, कक्षा 6,7, 8 के लिए प्रतिदिन 1 घंटा होमवर्क तथा कक्षा 9 से 12 के लिए प्रतिदिन दो घंटे से ज्यादाा का होमवर्क नहीं दिया जाएगा।
यह होना चाहिए स्कूल बैग का वजन क्लास बच्चे का वजन बैग का वजन प्री प्राइमरी 10.16 नो बैग क्लास 1 16.22 1.6-2.2 क्लास 2 16.22 1.6-2.2 क्लास 3, 4, 5 17.25 1.7-2.5
क्लास 6 और 7 20.30 2.0-3.0 क्लास 8 25.40 2.5-4.0 क्लास 9,10 25.40 2.5 से 4.0 क्लास 11,12 36.50 3.5-5.0 नोट: बैग का वजन किलो में।