वेदों का सार गायत्री महामंत्र (।। ॐ भूर्भुवः स्वःतत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्यः धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।।- अर्थ- अर्थात- उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करें।) को कहा जाता है। चारों वेदों में गायत्री मंत्र की दिव्य महिमा का खुब गुणगान किया गया है। इस मंत्र को जपने के अनेक लाभ जपकर्ता को मिलते हैं, जैसे-
1- सुबह बिस्तर से उठते ही अष्ट कर्मों को जीतने के लिए 8 बार गायत्री महामंत्र का उच्चारण करना चाहिए।
2- सुबह सूर्योदय के समय एकांत पूजा में बैठकर से 3 माला या 108 बार नित्य जप करने से वर्तमान एवं भविष्य में इच्छा पूर्ति के साथ सदैव रक्षा होती है।
3- भोजन करने से पूर्व 3 बार उच्चारण करने से भोजन अमृत के समान हो जायेगा ।
4- हर रोज घर से पहली बार बाहर जाते समय 5 या 11 बार समृद्धि सफलता, सिद्धि और उच्च जीवन के लिए उच्चारण करना चाहिए।
5- किसी भी मन्दिर में प्रवेश करने पर 12 बार परमात्मा के दिव्य गुणों को याद करते हुये गायत्री मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।
6- अगर छींक आ जाए तो उसी समय 1 बार गायत्री मंत्र का उच्चारण करने से सारे अमंगल दूर हो जाते हैं।
7- रोज रात को सोते समय 11 बार मन ही मन गायत्री मंत्र का जप करने से 7 प्रकार के भय दूर हो जाते हैं एवं दिन भर की सारी थकान दूर होते ही गहरी नींद आ जाती है।
गायत्री महामंत्र को सूर्य भगवान का मंत्र भी कहा जाता है। इसका जप या उच्चारण करते समय ऐसा भाव मन में करना चाहिए- हे प्रभू! आप हमारे जीवन के दाता है, आप हमारे दुख़ और दर्द का निवारण करने वाले है, आप हमें सुख़ और शांति प्रदान करने वाले हैं, हे संसार के विधाता हमें शक्ति दो कि हम आपकी ऊर्जा से शक्ति प्राप्त कर सके और आपकी कृपा से हमारी बुद्धि को सही राह प्राप्त होने लगे।
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