कर्म का महत्व (importance of karma)
गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि व्यक्ति को फल की चिंता किए बिना निष्ठा और समर्पण के साथ कर्म करना चाहिए। यह संदेश आज के जीवन में अत्यधिक प्रासंगिक है। क्योंकि आज के समय अधिकतर लोग कर्म किए बिना परिणाम की चिंता में ही उलझे रहते हैं। इस लिए गीता में कर्म को प्रधान माना गया है।
आत्म-संयम और संतुलन (self-control and balance)
गीता में बताया गया है कि आत्म-संयम से व्यक्ति के जीवन में शांति और स्थिरता आती है। इस लिए भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि “योग: कर्मसु कौशलम्” इसका अर्थ है कि जो मनुष्य योग करते हैं। उनके जीवन में आत्म-संयम बढ़ता है और कर्मों में कुशलता आती है। इस लिए जीवन में हर कार्य संतुलन और धैर्य के साथ करना चाहिए।
सच्ची भक्ति (true devotion)
गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने भक्ति का महत्व समझाते हुए कहा है कि जो व्यक्ति सच्चे मन और समर्पण से उनकी शरण में आता है। वह हर कठिनाई से मुक्त हो जाता है। उसको संसारिक जीवन के कष्टों से मुक्ति मिलती है। वहीं मान्यता है कि ईश्वर में विश्वास रखना और सच्ची भक्ति करना आंतरिक शांति का स्रोत है।
जीवन के प्रति दृष्टिकोण (outlook on life)
गीता से यह सीख मिलती है कि मनुष्य को किसी भी परिस्थित से घबराना नहीं चाहिए। साथ ही किसी भी तरह की परेशानी को सरलता से स्वीकार करना चाहिए। सुख-दुख, हानि-लाभ और सफलता-असफलता को समान दृष्टि से देखना चाहिए। यह जीवन में मानसिक शांति और संतुलन बनाए रखने में सहायक है।