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जानें कौन से ग्रह कैसे अशुभ फल देते हैं और बचने के सरल घरेलू उपाय

जानें कौन से ग्रह कैसे अशुभ फल देते हैं और बचने के सरल घरेलू उपाय

Jan 04, 2020 / 10:54 am

Shyam

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शास्त्रों में कुल 9 ग्रह मानें जाते हैं और सभी ग्रह अलग-अलग शुभ-अशुभ प्रभाव भी दिखाते हैं। ज्योतिष के अनुसार जातक की कुंडली में ग्रहों की स्थिति से जाना जा सकता है कि कौन से ग्रह के अशुभ प्रभाव के कारण उसके जीवन में समस्याएं आ रही हो। जानें ग्रहों के अशुभ प्रभाव एवं उनसे बचने के सरल उपाय।

 

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1- सूर्य ग्रह- अहंकार इतना अधिक होना कि स्‍वयं का नुकसान करते जाना, पिता के घर से अलग होना, कानूनी विवादों में फंसना और संपति विवाद होना, पत्‍नी से दूरी, अपने से बड़ों से विवाद, दांत, बाल, आंख व हृदय रोग होना। सरकार की ओर से नोटिस मिलना व सरकारी नौकरी में परेशानी आना आदि सूर्य ग्रह के अशुभ प्रभाव माने जाते हैं।
बचने के उपाय- आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें, सूर्य को आर्घ्य दे, गायत्री मंत्र का जप करें।

जानें कौन से ग्रह कैसे अशुभ फल देते हैं और बचने के सरल घरेलु उपाय

2- चंद्र ग्रह- घर-परिवार के सुख और शांति की कमी, मानसिक रोगों का होना, बिना कारण ही भय व घबराहट की स्थिति बनी रहना, माता से दूरियां, सर्दी-जुखाम रहना, छाती सम्बंधित रोगों का बना रहना और कार्य तथा धन में अस्थिरता रहना, आदि लक्षण अशुभ प्रभाव देने वाले होते हैं।

बचने के उपाय- सोमवार का व्रत करना, माता की सेवा करने साथ, नित्य ॐ सोम सोमाय नमः मंत्र का 108 बार जप करें।

 

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3- मंगल ग्रह- अत्‍यधिक क्रोध व चिड़चिड़पन मंगल के अशुभ प्रभावों में से एक है। भाइयों से मनमुटाव और आपसी विरोध मंगल के कारण ही होता है। रक्‍त में विकार होना और शरीर में खून की कमी मंगल के कमजोर होने की निशानी है। जमीन को लेकर तनाव व झगड़ा, आग में जलना और चोट लगते रहना, छोटी-छोटी दुर्घटनाओं का होता रहना मंगल के अशुभ प्रभावों के कारण ही होता है।

बचने के उपाय- मंदिर में ध्वजा दान करना, बंदरो को चने खिलाना, हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, हनुमानाष्टक, सुंदरकांड का पाठ के साथ- ॐ अं अंगारकाय नमः का 108 बार जप करें।

जानें कौन से ग्रह कैसे अशुभ फल देते हैं और बचने के सरल घरेलु उपाय

4- बुध ग्रह- बोलने-सुनने में परेशानी, बुद्धि का कम इस्‍तेमाल, आत्‍मविश्‍वास की कमी, नपुंसकता, व्‍यापार में हानि, माता का विरोध और शिक्षा में बाधाएं बुध के अशुभ प्रभाव के कारण होता है। बुध यदि अशुभ हो अच्‍छे मित्र भी नहीं मिलते।

बचने के उपाय- हर रोज ॐ बुं बुद्धाय नमः मंत्र का जप करें। अपने हाथ से गाय को हरा चारा खिलावें।

 

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5- गुरु ग्रह- जिनका सम्‍मान करना चाहिए उनसे ही अनबन हो, समाज के सामने बदनामी हो और मान-सम्‍मान न हो तो समझ लीजिए गुरू आपसे नाराज है। बड़े अधिकारियों से विवाद हो धार्मिक ढोंग के साथ अधर्म के काम करना, अनैतिक कार्य करना, पाखंड से धन कमाना, स्त्रियों से अनैतिक संबंध बनाना, संतान दोष, मोटापा और सूजन गुरू के अशुभ प्रभाव माने जाते हैं।

बचने के उपाय- माथे या नाभी पर केसर का तिलक लगाएं। ॐ व्री वृहस्पतये नमः मंत्र का 108 बार जप करें।

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6- शुक्र ग्रह- शुक्र यदि अशुभ प्रभाव दे तो यौन सुख को कम करता है। गुप्‍त रोग, विवाह में रूकावट, प्रेम में असफलता, हृदय का अत्‍यधि‍क चंचल हो जाना, प्रेम में धोखे की प्रवृतिशुक्र में अशुभ होने के लक्षण है।

बचने के उपाय- श्री सूक्त का पाठ करें। ॐ सुं शुक्राय नमः का 108 बार जप करें।

 

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7- शनि ग्रह- अशुभ शनि जातक को झगडालूं, आलसी, दरिद्र, अधिक निद्रा वाला, वैराग्य से युक्तबनाता है। यह पांव में या नसों से रोग देता है। स्‍टोन की समस्‍या शनि के अशुभ होने पर ही होती है। लोगों से उपेक्षा, विवाह में समस्‍या और नपुंसकता शनि के ही अशुभ प्रभाव हैं।

बचने के उपाय- श्री हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, हनुमानाष्टक, सुंदरकांड आधि का नित्य पाठ करें। इस मंत्र- ॐ हन हनुमते नमः। का 108 बार जप करें।

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8- राहु ग्रह- नशा व मांस-मदिरा का आदि, गलत कार्यों को करने का शौक, शेयर मार्केट से हानि होना, घर-गृहस्‍थी से दूर होकर अनैतिक कार्यो में जुड़ना, अपराधों में संलिप्‍त होना और फोड़े-फुंसी जैसे घृणित रोगों का होना राहु के अशुभ प्रभाव है।

बचने के उपाय- तिल, जौ किसी हनुमान मंदिर में या किसी यज्ञ स्थान पर दान करें। नियमित हनुमान चालीसा का पाठ करने के साथ- ॐ रं राहवे नमः, मंत्र का जप 108 बार करें।

 

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9- केतु ग्रह- राहू और मंगल का मिलाजुला रूप होता है, इनके अशुभ प्रभाव से अत्यधिक क्रोधी, शरीर में अधिक अम्लता होना जिस कारण पेट में जलन का रहना, चेहरे पर दाग धब्बे का होना केतु के अशुभ प्रभाव हैं। केतु जब रूष्‍ट हो तो व्‍यक्ति किसी न किसी प्रकार के ऑपरेशन से गुजरता है।

बचने के उपाय- बजरंग बाण, हनुमान बाहुक या श्रीसुंदरकांड का पाठ करें एवं 108 बार इस मंत्र का जप करें- ॐ कें केतवे नमः।।

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