हरिद्वार के प्रख्यात कथावाचक पं, श्याम बिहारी दुबे ने मनुष्य की सात प्रकार की मृत्यु का शास्त्रों में उल्लेखित रहस्य के बारे में बताया की जिस प्राणी ने माता के गर्भ से जन्म लिया हैं उन सभी की मृत्यु भी ईश्वर जन्म के साथ ही निर्धारित कर देते है । पं. दुबे जी से जाने सात प्रकार की मौत का रहस्य ।
1- बालारिष्ट मृत्यु
ऐसा कहा जाता है कि मनुष्य के जन्म से लेकर आठ वर्ष तक की आयु में होने वाली मृत्यु को बालारिष्ट मृत्यु कहा जाता है । बालारारिष्ट मृत्यु इसलिए होती है क्योंकि जन्म कुंडली में लग्न से 6, 8, 12वें स्थान में पापग्रहों से युक्त चंद्रमा हो तो व्यक्ति की मृत्यु बाल्यावस्था में हो जाती है । इसके अलावा सूर्य ग्रहण या चंद्र ग्रहण का समय हो, सूर्य, चंद्र, राहु एक ही राशि हों तथा लग्न पर क्रूर ग्रहों शनि-मंगल की छाया हो तो बालक के साथ माता की मृत्यु का दुर्योग भी बनता है । लग्न से छठे भाव में च्रंद्रमा, लग्न में शनि और सप्तम में मंगल हो तो बालक के पिता की मृत्यु होती है या उन्हें मृत्यु तुल्य कष्ट होता है ।
2- योगारिष्ट मृत्यु
आठ वर्ष की आयु से लेकर 20 वर्ष के बीच होने वाली मृत्यु को योगारिष्ट मृत्यु कहा जाता है । योगारिष्ट मृत्यु तब होती है, जब अष्टम भाव शनि, मंगल जैसे क्रूर ग्रहों से दूषित होकर लग्न में बैठा विपरीत ग्रह वक्री हो । कई विशिष्ट योगों के कारण जातक की मृत्यु होती है इसलिए इसे योगारिष्ट कहते हैं । अमावस्या से पहले की चतुर्दशी, अमावस्या और अष्टमी को यह योग पूर्ण प्रभाव में रहता है । जिन बालकों के माता-पिता कुकर्मों में लिप्त रहते हैं, उनके बालकों की मृत्यु भी योगारिष्ट होती है ।
3- अल्पायु मृत्यु
अगर किसी मनुष्य की मौत 20 से लेकर 32 वर्ष तक की आयु में होती है उसे अल्पायु मृत्यु कहा जाता है । वृषभ, तुला, मकर व कुंभ लग्न वाले जातक अल्पायु होते हैं, लेकिन इन लग्न वाले जातकों की कुंडली में यदि अन्य कोई शुभ ग्रह हो और सूर्य मजबूत स्थिति में हो तो इस योग का प्रभाव नहीं रहता । यदि लग्नेश चर-मेष, कर्क, तुला, मकर राशि में हो तथा अष्टमेश द्विस्वभाव- मिथुन, कन्या, धनु, मीन राशि में हो तो अल्पायु योग होता है । यदि जन्म लग्नेश सूर्य का शत्रु हो तो जातक अल्पायु होता है । इसी प्रकार यदि शनि और चंद्रमा दोनों स्थिर राशि में हों अथवा एक चर और दूसरा द्विस्वभाव में हो तो व्यक्ति की मृत्यु 20 से 32 की आयु के मध्य होती है ।
4- मध्यायु मृत्यु
32 वर्ष से लेकर 64 वर्ष तक की आयु में होने वाली मौत को मध्यायु मृत्यु कहा जाता है । यदि लग्नेश सूर्य का सम ग्रह बुध हो अर्थात मिथुन व कन्या लग्न वालों की प्रायः मध्यम आयु होती है । यदि शनि और चंद्र दोनों की द्विस्वभाव राशि में हों या एक चर तथा दूसरा स्थिर राशि में हो तो जातक मध्यायु मौत होती है । अधिकतर मध्यायु योग वाले जातकों की मृत्यु जन्म स्थान से बहुत दूर होती है ।
5- दीर्घायु योग मृत्यु
अगर किसी मनुष्य की मौत 64 से अधिक एवं 120 वर्ष की आयु तक होती है तो उस मृत्यु को दीर्घायु योग या पूर्णायु योग मृत्यु कहा जाता है । यदि जन्म लग्नेश सूर्य का मित्र हो तो व्यक्ति को पूर्ण आयु प्राप्त होती है । लग्नेश केंद्र में गुरु, शुक्र के साथ हो या इनकी दृष्टि हो तो जातक पूर्ण आयु का भोग करता है । इन जातकों को जीवन के अंतिम समय तक शिव और विष्णु की उपासना करना चाहिए ।
6- दिव्यायु योग
उपरोक्त पांच प्रकार के आयु-मृत्यु योग के बाद आता है दिव्यायु योग । वस्तुतः यह योग आयु से जुड़ा नहीं है, किंतु यह बताता है कि व्यक्ति का जीवन कैसा होगा । यदि शुभ ग्रह बुध, बृहस्पति, शुक्र, चंद्र केंद्र और त्रिकोण में हो और सब पाप ग्रह 3, 6, 11,वें स्थान में हों तथा अष्टम भाव में शुभग्रह या शुभ राशि हो तो व्यक्ति के जीवन में दिव्य आयु का योग बनता है । ऐसा जातक यज्ञ, जप, अनुष्ठान व कायाकल्प क्रियाओं द्वारा हजारों वर्षों तक जीवित रह सकता है । लेकिन ऐसी आयु तपोनिष्ठ ऋषि स्तर की आत्माएं ही सकती हैं ।
7- अमित आयु
अमित आयु पाने वाले प्राणी तो बहुत ही दुर्लभ होते हैं । देवताओं, वसुओं, गंधर्वों को ऐसी आयु प्राप्त होती है । इसके अनुसार यदि गुरु गोपुरांश यानी अपने चतुर्वर्ग में होकर केंद्र में हो, शुक्र पारावतांश अपने षड्वर्ग में हो एवं कर्क लग्न हो तो ऐसा जातक मानव न होकर देवता होता है । इसकी आयु की कोई सीमा नहीं होती और यह इच्छा मृत्यु का कवच पाने में सक्षम होता है ।