ज्ञात हो कि हिंदू देवताओं में भैरव का बहुत ही महत्व है। इन्हें काशी का कोतवाल कहा जाता है। भैरव का अर्थ होता है भय का हरण कर जगत का भरण करने वाला। ऐसा भी कहा जाता है कि भैरव शब्द के तीन अक्षरों में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की शक्ति समाहित है। भैरव शिव के गण और पार्वती के अनुचर माने जाते हैं।
इस साल कालभैरव जयंती 16 नवंबर के दिन मनाई जाने वाला है। इस दिन काल भैरव की पूजा के साथ-साथ ज्योतिष शास्त्र में कई उपाय भी बताए गए हैं, जिन्हें करने से व्यक्ति अपने जीवन के संकटों से मुक्ति पाता है।
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भैरव-उपासना की दो शाखाएं-
पंडित सुनील शर्मा के अनुसार भैरव-उपासना की दो शाखाएं बटुक भैरव और काल भैरव के रूप में प्रसिद्ध हुईं। इनमें जहां बटुक भैरव अपने भक्तों को अभय देने वाले सौम्य स्वरूप में विख्यात हैं वहीं काल भैरव आपराधिक प्रवृत्तियों पर नियंत्रण करने वाले प्रचण्ड दंडनायक के रूप में प्रसिद्ध हुए।
भैरव (शाब्दिक अर्थ- भयानक) हिन्दुओं के एक देवता हैं जो शिव के रूप हैं। तंत्रशास्त्र में अष्ट-भैरव का उल्लेख है – असितांग-भैरव, रुद्र-भैरव, चंद्र-भैरव, क्रोध-भैरव, उन्मत्त-भैरव, कपाली-भैरव, भीषण-भैरव तथा संहार-भैरव।
पुरानी धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान कालभैरव को यह वरदान है कि भगवान शिव की पूजा से पहले उनकी पूजा होगी। इसलिए उज्जैन दर्शन के समय कालभैरव के मंदिर जाना अनिवार्य है, तभी महाकाल की पूजा का लाभ आपको मिल पाता है। वहीं कालिका पुराण में भैरव को नंदी, भृंगी, महाकाल, वेताल की तरह शिवजी का एक गण बताया गया है, जिनका वाहन कुत्ता है।
काल भैरव जयंती मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार काल भैरव जयंती मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन मनाई जाती है। इस बार अष्टमी तिथि का आरंभ 16 नवंबर 2022 बुधवार के दिन सुबह 05 बजकर 49 मिनट से शुरू होकर 17 नवंबर 2022 गुरुवार सुबह 07 बजकर 57 मिनट तक होगा।
इन उपायों से प्रसन्न करें काल भैरव
– अष्टमी तिथि के दिन काल भैरव की पूजा का विधान है। इस दिन शमी के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए। इससे वैवाहिक जीवन में खुशियां आने लगती हैं।
– काल भैरव जयंती के दिन एक रोटी को सरसों के तेल में चुपड़कर किसी काले कुत्ते को खिला दें। इससे व्यक्ति का व्यक्तित्व मजबूत होता है। साथ ही व्यक्ति बहुत तरक्की प्राप्त करता है।
– मार्गशीर्ष की अष्टमी तिथि के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करके स्वच्छ कपड़े पहनें। इसके बाद कुशा के आसन पर बैठकर काल भैरव की विधिवत पूजा करें। इसके बाद पूजा के दौरान ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नमः मंत्र का रुद्राक्ष की माला से कम से कम 5 माला जाप करें।
– काल भैरव जयंती के दिन किसी भैरव मंदिर में जातक उनकी प्रतिमा पर सिंदूर और तेल अर्पित करें। इसके साथ ही नारियल और जलेबी का भोग भी लगाएं। इससे काल भैरव प्रसन्न होते हैं।
ब्रह्मवैवर्तपुराण में भी 1. महाभैरव, 2. संहार भैरव, 3. असितांग भैरव, 4. रुद्र भैरव, 5. कालभैरव, 6. क्रोध भैरव, 7. ताम्रचूड़ भैरव और 8. चंद्रचूड़ भैरव नामक आठ पूज्य भैरवों का निर्देश है। इनकी पूजा करके मध्य में नवशक्तियों की पूजा करने का विधान बताया गया है।
शिवमहापुराण में भैरव को परमात्मा शंकर का ही पूर्णरूप बताते हुए लिखा गया है –
भैरव: पूर्णरूपोहि शंकरस्य परात्मन:। मूढास्तेवै न जानन्ति मोहिता:शिवमायया॥
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भगवान भैरव के तीन प्रमुख रूप –
भगवान भैरव के बटुक भैरव, महाकाल भैरव और स्वर्णाकर्षण भैरव प्रमुख रूप हैं। इनमें से भक्त बटुक भैरव की ही सर्वाधिक पूजा करते हैं। तंत्रशास्त्र में अष्ट भैरव का उल्लेख भी मिलता है- असितांग भैरव, रूद्र भैरव, चंद्र भैरव, क्रोध भैरव, उन्मत भैरव, कपाल भैरव, भीषण भैरव और संहार भैरव।
ध्यान रहे कि भगवान भैरव की साधना में ध्यान का अधिक महत्व है। इसी को ध्यान में रखकर सात्विक, राजसिक व तामसिक स्वरूपों का ध्यान किया जाता है। ध्यान के बाद उपर दिए गए मंत्र का जप करने का विधान है।
श्री कालभैरव के इन अष्टनाम का करें जप-
1- असितांग भैरव,
2- चंद्र भैरव,
3- रूद्र भैरव,
4- क्रोध भैरव,
5- उन्मत्त भैरव,
6- कपाल भैरव,
7- भीषण भैरव
8- संहार भैरव ।
श्री कालभैरव भगवान महादेव का अत्यंत ही रौद्र, भयाक्रांत, वीभत्स, विकराल प्रचंड स्वरूप है । श्री काल भैरव जयंती के दिन किसी भी शिव मंदिर में जाकर काल भैरव जी के इन मंत्रों में से किसी भी एक मंत्र का जप करने से भीषण से भीषण कष्टों का नाश होने के साथ मरनासन्न व्यक्ति को भैरव बाबा की कृपा से जीवन दान मिल जाता हैं ।
श्री काल भैरव सिद्ध मंत्र –
1- ॐ कालभैरवाय नम: ।
2- ॐ भयहरणं च भैरव: ।
3- ॐ भ्रां कालभैरवाय फट् ।
4- ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरू कुरू बटुकाय ह्रीं ।
5- ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नम: ।
भैरव साधना…
वशीकरण, उच्चाटन, सम्मोहन, स्तंभन, आकर्षण और मारण जैसी तांत्रिक क्रियाओं के दुष्प्रभाव को नष्ट करने के लिए भैरव साधना की जाती है। इनकी साधना करने से सभी प्रकार की तांत्रिक क्रियाओं के प्रभाव नष्ट हो जाते हैं। जन्म कुंडली में छठा भाव रिपु यानि शत्रु का भाव होता है। लग्न से षष्ठ भाव भी रिपु का है। इस भाव के अधिपति, भाव में स्थित ग्रह और उनकी दृष्टि से शत्रु संबंधी कष्ट होना संभव है।