इसी कारण चावल और जौ को पौधा नहीं जीव माना जाता है। इस घटना के दिन एकादशी तिथि थी। इसलिए व्रत में चावल खाना निषिद्ध हो गया। जो व्यक्ति भगवाव विष्णु के उपवास के दिन चावल खाता है उसे मांसाहार खाने का दोष लगता है और ऐसे व्यक्ति की पूजा स्वीकार नहीं होती। मान्यता है कि एकादशी के दिन चावल खाना महर्षि मेधा के रक्त और मांस खाने के समान है, जिससे पाप लगता है और अगले जन्म में व्यक्ति को सर्प का जन्म मिलता है।
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rice origion religious story: इनमें से एक अन्य कथा के अनुसार एकादशी माता के अवतार और दैत्य मुर के वध के बाद भगवान श्री हरि विष्णु ने एकादशी माता को सृष्टि के पापों से दूर करने का आदेश दिया। जब माता सृष्टि को पाप मुक्त करने के लिए चलीं तो कुछ पाप कर्म चावल में छिप गए। इससे नाराज एकादशी देवी ने चावल को श्राप दिया कि तुमने पापों को स्थान दिया है, इसलिए तुम्हें एकादशी के दिन कोई नहीं खाएगा।
मान्यता है कि इस दिन सभी पाप चावल में होते हैं। इस दिन जो व्यक्ति चावल खाता है उसे मृत्यु के बाद नर्क प्राप्त करता है। इस दिन चावल खाना मांस खाने जैसा होता है। साथ ही मृत्यु के बाद रेंगने वाले जीव के जेंडर में जन्म लेता है। इसलिए एकादशी पर चावल नहीं खाया जाते, लेकिन जो लोग व्रत रखते हैं, उन्हें अगले दिन चावल खाकर व्रत का पारण करना चाहिए।
एकादशी पर चावल न खाने का वैज्ञानिक कारण
वैज्ञानिकों के अनुसार चावल में पानी की मात्रा अधिक होती है और व्यक्ति के शरीर का 70 प्रतिशत हिस्सा भी पानी ही होता है। जबकि चंद्रमा का प्रभाव पानी में अधिक होता है। इसी कारण मन का कारक चंद्रमा व्यक्ति के मस्तिष्क और हृदय को प्रभावित करता है। चंद्रमा के प्रभाव की वजह से ही एकादशी के दिन चावल खाने से व्यक्ति को मानसिक और हृदय संबंधी बीमारियां हो सकती हैं। इसके अलावा चावल का सेवन करने से मन चंचल और अस्थिर हो सकता है, जिससे व्रत के दिन व्यक्ति का ध्यान पूजा-अर्चना में नहीं लग पाएगा। इसलिए इस दिन चावल खाने पर रोक है।