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धर्म-कर्म

धनतेरस: भारतीय सनातन चिकित्सा के जनक हैं धनवंतरि

– सुश्रृत को दिया था आयुर्वेदशास्त्र का ज्ञान

Oct 22, 2022 / 03:50 pm

दीपेश तिवारी

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पुराणों के अनुसार एक बार अमृत प्राप्ति के लिए देवताओं और असुरों ने समुद्र-मंथन किया। तब उसमें से अत्यन्त कान्तिपूर्ण, सुन्दर आभूषण पहने हुए तेजस्वी, हाथ में अमृत कलश लिए हुए एक दिव्य पुरुष प्रकट हुए। इनका आविर्भाव (प्रकट होना) कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को हुआ था। इनके नाम पर ही उस दिन को धनतेरस कहते हैं और वह आरोग्य देवता की जयंती के रूप में मनाई जाती है।
भगवान धनवंतरि देवताओं के चिकित्सक के रूप में अमरावती में रहते थे। इन्होंने विश्वामित्र ऋ षि के पुत्र सुश्रृत को आयुर्वेदशास्त्र का उपदेश दिया था। भगवान विष्णु के 24 अवतारों में इनको भी माना जाता है। ये भारतीय सनातन चिकित्सा के जनक कहलाते है, जिनको आधुनिक विकसित अमरीका भी मान्यता प्रदान करता हैं। भगवान धनवंतरि ही आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के जनक कहे जाते हैं।

धनतेरस की पौराणिक एवं प्रामाणिक कथा
धनतेरस से जुड़ी कथा है कि कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन देवताओं के कार्य में बाधा डालने के कारण भगवान विष्णु ने असुरों के गुरु शुक्राचार्य की एक आंख फोड़ दी थी। कथा के अनुसार, देवताओं को राजा बलि के भय से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और राजा बलि के यज्ञ स्थल पर पहुंच गए। शुक्राचार्य ने वामन रूप में भी भगवान विष्णु को पहचान लिया और राजा बलि से आग्रह किया कि वामन कुछ भी मांगे उन्हें इंकार कर देना। वामन साक्षात भगवान विष्णु हैं जो देवताओं की सहायता के लिए तुमसे सब कुछ छीनने आए हैं। बलि ने शुक्राचार्य की बात नहीं मानी।

वामन भगवान द्वारा मांगी गई तीन पग भूमि, दान करने के लिए कमंडल से जल लेकर संकल्प लेने लगे। बलि को दान करने से रोकने के लिए शुक्राचार्य राजा बलि के कमंडल में लघु रूप धारण करके प्रवेश कर गए। इससे कमंडल से जल निकलने का मार्ग बंद हो गया। वामन भगवान शुक्रचार्य की चाल को समझ गए। भगवान वामन ने अपने हाथ में रखे हुए कुशा को कमण्डल में ऐसे रखा कि शुक्राचार्य की एक आंख फूट गई। शुक्राचार्य छटपटाकर कमण्डल से निकल आए। इसके बाद बलि ने तीन पग भूमि दान करने का संकल्प ले लिया। तब भगवान वामन ने अपने एक पैर से संपूर्ण पृथ्वी को नाप लिया और दूसरे पग से अंतरिक्ष को। तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं होने पर बलि ने अपना सिर वामन भगवान के चरणों में रख दिया। बलि दान में अपना सब कुछ गंवा बैठा।

केरल में है एक हजार साल पुराना मंदिर
केरल के अर्नालम जिले में भगवान धनवंतरि का एक हजार साल से अधिक पुराना मंदिर है। मान्यता है कि यहां दर्शन करने के बाद से लोगों के वात, पित्त और कफ से जुड़ी सभी प्रकार की बीमारियों में आराम मिलता है। यहां भगवान गणपति, अयप्पन, देवी भद्रकाली की भी प्रतिमा स्थापित है।
कई देशों में इनको पूजते
धनवंतरि होम दक्षिण भारत में व्यापक रूप से लोकप्रिय अनुष्ठानों में से एक है। यह अन्य हिंदू प्रमुख देशों जैसे श्रीलंका, नेपाल, सिंगापुर, मलेशिया और भूटान में भी प्रसिद्ध है। भारत में भगवान धंवंतरि के कुछ प्रसिद्ध मंदिर तमिलनाडु में श्री रंगनाधा स्वामी मंदिर, कांचीपुरम में वरदराज पेरुमल मंदिर और त्रिशूर केरल में नेल्लुवाई धनवंतरी मंदिर हैं।
पहला सुख निरोगी काया…
समुद्रमंथन के पुराणों के अनुसार, ऐसा भी माना जाता है कि भगवान धनवंतरि दूध के समुद्र से अमृत के प्याले के साथ निकले थे, जिसे अमरता का अमृत कहा जाता है। प्राचीन शास्त्रों के अनुसार, भगवान धनवंतरि चार हाथों वाले एक सुंदर व्यक्ति हैं, जिनके एक हाथ में अमृत का बर्तन, दूसरे हाथ में जोंक और दूसरे दो हाथों में शंख और चक्र हैं। धनवंतरि पूजा करने से उन लोगों को राहत मिलेगी जो शारीरिक, मानसिक और मनोवैज्ञानिक समस्याओं से पीड़ित हैं। यह पूजा उन माता-पिता द्वारा भी की जा सकती है जिनके बच्चों का स्वास्थ्य खराब है और जिन्हें पुरानी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हैं। कुछ लोग अपने स्वास्थ्य और जीवन की दीर्घायु और कायाकल्प बढ़ाने के लिए यह पूजा करते हैं। भारतीय संस्कृति में स्वास्थ्य का स्थान धन से ऊपर माना जाता रहा है। यह कहावत आज भी प्रचलित है कि ‘पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में माया’। सेहत ही सबसे बड़ा धन होता है। इसलिए दीपावली में सबसे पहले धनतेरस को महत्त्व दिया जाता है।
– डॉ. पीयूष त्रिवेदी, वरिष्ठ आयुर्वेद विशेषज्ञ

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