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देव भूमि भारत की चारों सिद्ध पीठों के प्रमुख शंकराचार्य ऐसे चुने जाते है

देव भूमि भारत की चारों सिद्ध पीठों के प्रमुख शंकराचार्य ऐसे चुने जाते है

May 24, 2018 / 05:38 pm

Shyam

Jagtaguru Shankaracharya

देव भूमि भारत की चारों सिद्ध पीठों के प्रमुख शंकराचार्य ऐसे चुने जाते है

शंकराचार्य आम तौर पर अद्वैत परम्परा के मठों के प्रमुख मुखिया के लिये प्रयोग की जाने वाली उपाधि है जो कि हिन्दू धर्म में सर्वोच्च धर्म गुरु का पद कहा गया हैं ।

हिंदू धर्म और सनातन परम्परा के प्रचार, प्रसार में सबसे बड़ी भूमिका आदि शंकराचार्य की ही मानी जाती है, यही वजह है कि देश के चारों कोनों में चार शंकराचार्य मठ स्थापित हैं ।
पूर्व दिशा में गोवर्धन, जगन्नाथपुरी (उड़ीसा), पश्चिम दिशा में शारदामठ (गुजरात), उत्तर दिशा में ज्योतिर्मठ, बद्रीधाम (उत्तराखंड) और दक्षिण दिशा में शृंगेरी मठ, रामेश्वर (तमिलनाडु) में स्थापित हैं ।


शास्त्रों में उल्लेख आता हैं कि ईसा से पूर्व आठवीं शताब्दी में इन चारों मठों की स्थापना जगतगुरू आदि शंकराचार्य ने की थी । आज भी इन्हें चार शंकराचार्यों के नेतृत्व में ही चलाया जाता है, इन मठों के अलावा आदि शंकराचार्य ने बारह ज्योतिर्लिंगों की भी स्थापना की थी ।

आदि शंकराचार्य ने इन चारों मठों में सबसे योग्यतम शिष्यों को मठाधीश बनाने की परंपरा शुरु की थी, जो आज भी प्रचलित है, जो भी इन मठों का मठाधीश बनता है वह शंकराचार्य कहलाता है और अपने जीवनकाल में ही अपने सबसे योग्य शिष्य को उत्तराधिकारी बना देता है ।
Jagtaguru Shankaracharya

सबसे ख़ास बात यह कि संन्यास लेने के बाद दीक्षा लेने वालों के नाम के साथ दीक्षित विशेषण भी लगाने की परंपरा है, जिससे यह पता चलता हैं कि उक्त संन्यासी किस मठ से है और वेद की किस परम्परा का वाहक है ।


शंकराचार्य जी के इन मठों में गुरु शिष्य परम्परा का निर्वहन होता है, पूरे भारत के संन्यासी जो अलग-अलग मठ से जुड़े होते हैं, वे इन्हीं मठों जाकर संन्यास की दीक्षा लेते हैं । यहां विशेष नियमों, संकल्पों के निर्धारण के बाद योग्य संन्यासी को शंकराचार्य की पदवी दी जाती हैं, और शंकराचार्यों की पदवी लेन के बाद नवनियुकत् शंकराचार्य सनातन धर्म के प्रचार प्रसार के लिए पूरी देव भूमि भारत का भ्रमण कर जनजागरण का अलख जगाते हैं ।

Jagtaguru Shankaracharya

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