कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को देव भूमि भारत में गंगा मैया के तट पर काशी नगरी में स्वर्ग लोक से भगवान शंकर के साथ सभी की देवी-देवता देव दिवाली का पर्व मनाने के लिए आते हैं। देव दिवाली का पर्व कार्तिक मास की पूर्णिमा को पुण्य काशी नगरी में गंगा मैया के अर्धचंद्राकार घाटों पर लाखों दीपकों का अद्भुत जगमगाता हुआ प्रकाश से ‘देवलोक’ के जैसा वातावरण दिखाई देता है। काशी नगरी में हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को देश ही दुनिया के कई देशों के श्रद्धालु भी देव दिवाली का पर्व मनाया जाता है।
भगवान शिव की पवित्र नगरी काशी में लगभग 3 कि.मी. में फैले अर्धचंद्राकार गंगा मैया के घाटों पर लाखों दीपकों की रोशनी से गंगा की धारा में इठलाते-बहते दीपक एक अलौकिक आनंदमय दृश्य दिखाई देता है। शाम होते ही गंगा मैयै के सभी घाट दीपों की रोशनी में जगमगा उठते हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन शाम के समय सायंकाल गंगा पूजन के बाद काशी के 80 से अधिक घाट दीपकों के दिव्य प्रकाश ऐसा दिखाई देता है मानों ये दीपकों का प्रकाश नहीं बल्कि स्वर्ग के देवी-देवताओं का दिव्य आभा प्रकाश अपनी रोशनी फैला रहे हो।
इस दिन गंगा घाटों के अलावा गंगा किनारे बने मंदिर, भवन सभी प्रकाश से जगमगाते हैं। आकाश की ओर उठती दीपों की लौ यानी आकाशदीप के माध्यम से देवाराधन और पितरों की अभ्यर्थना तथा मुक्ति-कामना की यह बनारसी पद्धति है मानी जाती है। शंकराचार्य की प्रेरणा से प्रारंभ किया गया दीप-महोत्सव पहले केवल पंचगंगा घाट की शोभा थी, लेकिन अब काशी के सभी घाटों पर मनाया जाता है। विश्वास-आस्था और उत्सव के इस दृश्य को आंखों में भर लेने के लिए देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु देव दिवाली मनाने के लिए कार्तिक पूर्णिमा के दिन काशी नगरी में आकर अपनी कामनाएं पूरी करते हैं।
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