पंडित एके शर्मा के अनुसार चतुर्दशी का श्राद्ध अकाल मृत्यु से जुड़ा है, ऐसे में कोरोना संक्रमण के चलते मौत (असामान्य मृत्यु) का ग्रास बनने वालों का श्राद्ध भी इस दिन किया जा सकता है। पंडित शर्मा के अनुसार दरअसल इस दिन आत्महत्या, भय या फिर अन्य किसी वजह से मरने वाले लोगों का श्राद्ध भी किया जाता है। कुल मिलाकर असामान्य परिस्थितियों में हुई मृत्यु वाले व्यक्ति का श्राद्ध इस दिन करने का विधान है।
पंडित शर्मा के मुताबिक जिस किसी की सामान्य और स्वाभाविक मृत्यु चतुर्दशी को हुई हो, उनका भी श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को नहीं करना चाहिए। ऐसे में ऐसे लोगों का श्राद्ध श्राद्ध पक्ष की त्रयोदशी या अमावस्या को करना चाहिए।
वहीं जिनकी अपमृत्यु हुई हो, यानि जिनकी मौत किसी दुर्घटना,हत्या, शस्त्रप्रहार, सर्पदंश, विष, आत्महत्या या किसी भी प्रकार से अस्वाभाविक मृत्यु हुई हो, ऐसे लोगों का श्राद्ध मृत्यु तिथि की बजाय केवल चतुर्दशी तिथि को ही करना चाहिए, चाहे उनकी मृत्यु किसी भी तिथि को हुई हो। वहीं महाभारत के एक पर्व में भी इस चतुर्दशी तिथि के श्राद्ध का जिक्र है। जिसमें भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को चतुर्दशी श्राद्ध से जुड़ी कुछ बातों के बारे में बताया था।
पं. शर्मा के अनुसार महाभारत के इस पर्व में युधिष्ठिर से भीष्म पितामह ने कहा था कि जिन लोगों की स्वाभाविक मृत्यु न हुई हो, उनका श्राद्ध पितृ पक्ष की चतुर्दशी पर ही करना चाहिए।
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माना जाता है कि इस तिथि पर स्वाभाविक यानि सामान्य मृत्यु को प्राप्त होने वाले लोगों का श्राद्ध नहीं किया जाता है। महाभारत में इस तिथि से संबंधित जो जानकारी है उसके अनुसार जिनकी मौत सामान्य परिस्थिति में हुई है, चाहे इसी तिथि को क्यों न हुई हो। उन लोगों का श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को करने से श्राद्धकर्ता को काफी दिक्कतों व आर्थिक तंगी से दो चार होना पड़ सकता है।
वहीं कूर्मपुराण के अनुसार भी स्वाभाविक रूप से मरने वाले लोगों का श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को करने से संतान को कष्ट भोगने पड़ते हैं।
पितृ यानि श्राद्ध पक्ष के दौरान तर्पण और श्राद्ध की विशेष विधि के अनुसार श्राद्धकर्ता को सबसे पहले (जौ,काला तिल, कुशा और अक्षत व जल को हाथ में लेकर) संकल्प करना चाहिए। संकल्प लेने के बाद “ऊं अद्य श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त सर्व सांसारिक सुख-समृद्धि प्राप्ति च वंश-वृद्धि हेतव देवऋषिमनुष्यपितृतर्पणम च अहं करिष्ये” मंत्र का उच्चारण करें।