कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को दिन के चौथे पहर में भाई दूज मनाया जाता हैं । ऐसी मान्यता है कि अगर अपराह्न के वक्त द्वितीया तिथि लग जाए तो उस दिन भाई दूज नहीं मनानी चाहिए । ऐसे में भाईदूज अगले दिन ही मनानी चाहिए ।
ऐसे मनाएं भाई दूज
इस दिन बहनें सबसे पहले आटे का चौक बनाकर उसके उपर पटा या चौकी रख करके अपने भाई को बिठाएं और हाथों की पूजा करें, पूजा के लिए भाई की हथेली पर चावल का घोल लगाएं, इसमें सिंदूर लगाकर पान, सुपारी, कद्दु के फूल आदि हाथों पर रखकर धीरे से हाथों पर पानी छोड़े और गायत्री मंत्र जपते रहे । भाई के माथे पर तिलक लगाकर हाथों में कलावा भी बांधे एवं मूंह मीठा करने के लिए मिश्री या मिठाई खिलाएं । पूजा के बाद बहने भाइयों की आरती भी उतारे । बहने संध्या में समय यमराज के नाम से एक चौमुखा दीया जलाकर, घर के बाहर दक्षिण दिशा में रख दें ।
भाई का तिलक करते समय इस मंत्र का उच्चारण करें-
गंगा पूजा यमुना को, यमी पूजे यमराज को ।
सुभद्रा पूजे कृष्ण को गंगा यमुना नीर बहे मेरे भाई आप बढ़ें फूले फलें ।।
भाई दूज पूजा का शुभ मुहूर्त- केवल 2 घंटे 17 मिनट
– दोपहर 1 बजकर 10 मिनट से लेकर दोपहर 3 बजकर 27 मिनट तक रहेगा ।
इस दिन बहन के घर भोजन की परंपरा है, मान्यता है कि यमुना ने भाई यम को इस दिन खाने पर बुलाया था, इस कारण इसे यम द्वितिया भी कहा जाता है । कहा जाता है कि जो व्यक्ति इस दिन अपनी बहन के यहां भोजन करता है वह साल भर हर झगड़े से दूर रहता है । साथ उसी शत्रुओं का कोई भय नहीं होता, हर तरह के संकट से छुटकारा मिलता है ।