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सूर्य सप्तमी व्रत की विधि
माना जाता है कि इस दिन प्रात:काल उठ कर सूर्यदेव का पूजन करना चाहिए। आसपास के नदी या तालाब में जाकर सूर्य देव की आराधना करनी चाहिए। साथ ही उगते हुए सूर्य को अघ्र्य देना चाहिए। अघ्र्य देते समय सूर्य मंत्र या फिर गायत्री मंत्र का जाप करने का विधान है। इसके बाद नदी किनारे ही सूर्य की अष्टदली प्रतिमा बनाएं और शिव तथा पार्वती की स्थापना करें फिर पूजा करें। पूजन के बाद ब्राह्मण को दान देने का विधान है। वहीं पूजन के बाद सूर्य एवं शिव पार्वती को विसर्जित करना न भूलें।
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ये है सूर्य सप्तमी व्रत की कथा
एक बार युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से सवाल किया, ‘भगवन यह बताएं कि कलयुग में कोई स्त्री किस व्रत को करने से सौभाग्यवती हो सकती है?’ इस पर श्री कृष्ण ने एक कथा सुनाई कि … प्राचीन काल में इंदुमती नाम की एक वेश्या एक बार ऋषि वशिष्ठ के पास गई और कहा, ‘हे मुनिराज, मैंने आज तक कोई धार्मिक कार्य नहीं किया है, मुझे बताएं कि मुझे मोक्ष कैसे मिलेगा’ वेश्या की बात सुनकर वशिष्ठ मुनि ने कहा, ‘स्त्रियों को मुक्ति, सौभाग्य और सौंदर्य देने वाला अचला सप्तमी व्रत से बढ़कर कोई व्रत नहीं है। इसलिए तुम इस व्रत को करो तुम्हारा कल्याण होगा।’ इंदुमती ने उनके उपदेश के आधार पर विधिपूर्वक व्रत किया और उसके प्रभाव से शरीर छोडऩे के बाद स्वर्ग प्राप्त किया। वहां उसे सभी अप्सराओं की नायिका बनाया गया।