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धर्म-कर्म

वीर हनुमान के 11 बड़े काम, जो देवताओं के लिए भी थे असंभव

भक्तों का मानना है कि अंजनी सुत वीर हनुमान हमेशा ही अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और उनके सारे दुख हरकर धर्म का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

Jan 19, 2016 / 01:28 pm

Sujeet Verma

लखनऊ. शक्ति के प्रतीक हनुमान जी एक ऐसे देवता हैं, जिनके मंदिर हर स्थान पर आसानी से मिल जाते हैं। कलियुग में महाबली संकटमोचक हनुमान जी सबसे ज्यादा पूजे जाते हैं। भक्तों का मानना है कि अंजनी सुत वीर हनुमान हमेशा ही अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और उनके सारे दुख हरकर धर्म का मार्ग प्रशस्त करते हैं। तो आइए आज जानते हैं हनुमान जी उन बड़े कार्यों के बारे में जो अन्य देवताओं की समर्थ से बाहर थे…

1- सूर्य को निगल गए
बाल्यावस्था में हनुमानजी सुबह-सुबह खेल रहे थे, उन्हें भूख लगी। सूरज निकलने वाला था, जिस कारण वह लाल दिख रहा था। हनुमानजी ने समझा कोई फल है, जिसे खाने के लिए वह सूर्य की तरफ उड़ चले और देखते ही देखते उन्होंने सूर्य को मुंह में रख लिया। दुनिया में अंधेरा छा गया, देवताओं की प्रार्थना के बाद सूर्यदेव को मुक्त कराया जा सका।

हनुमानाष्टक में लिखा है-
बाल समय रबि भक्ष्य लियो, तब तीनहुं लोक भयो अंधियारोताहि सु त्रास भयो जग में, यह संकट काहू से जात न टारोदेवन्ह आनि करी विनती तब छाड़ि दियो रवि कष्ट निवारो

2- सुग्रीव को राम से मिलाया

सुग्रीव अपने भाई व किष्किंधा के राजा बालि के डर से सुमेरु पर्वत पर रहते थे। सुग्रीव सूर्यपुत्र होने के साथ ही हनुमानजी के परम मित्र भी थे। इसलिए सीता जी की तलाश में घूम रहे भगवान राम को हनुमानजी ने ही सुग्रीव से मिलाया। जिसके बाद राम ने बालि का वध कर सुग्रीव को वापस किष्किंधा का राज्य दिलाया था।

3- समुद्र लांघ गए
यह पता लगने के पर कि लंकापति रावण ने ही माता सीता का अपहरण किया है, समुद्र पार जाने की समस्या थी। वानर सेना में तमाम वीर, महाबली और पराक्रमी योद्धा थे, पर किसी में इतनी सामर्थ्य नहीं था कि वह पार जाकर लंका से वापस लौट सके। ऐसे में हनुमानजी एक छलांग में समुद्र पार कर लंका पहुंच गए थे।

तुलसीदास जी ने लिखा है कि- जिमि अमोघ रघुपति का बाना एही भांति चलेउ हनुमाना…।


4- वानर जाति की रक्षा की
सीता जी का पता लगाकर हनुमानजी ने पूरी वानर सेना का रक्षा की थी। क्योंकि किंष्किंधा के राजा सुग्रीव ने अपनी पूरी सेना को आदेश दिया था कि जो भी वानर सीता का पता लगाए बिना वापस आएगा, उसे मौत की घाट उतार दिया जाएगा।

रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है- राम काज कीन्हेसि हनुमाना, राखेसि सकल कपिन्ह कै प्राना

5- सीता का पता लगाया
लंका के राजा रावण ने छल से माता सीता का अपहरण कर लिया था, जिसके बाद हनुमानजी ने लंका जाकर माता सीता का पता लगाया और उन्हें श्रीराम का समाचार सुनाया।

6- लंका जला डाली
सीता माता का पता लगाने गए हनुमानजी को बंधकर बनाकर रावण के सामने पेश किया गया। सभी ने तय किया कि इनकी पूंछ में आग लगाकर इन्हें वापस भेजा जाये। उनकी पूंछ में आग लगा दी गई। जिसके बाद उन्होंने उछल-उछलकर पूरी लंका नगरी को जला डाला।

रामचरित मानस में बताया गया है कि लंका कैसे जल रही थी- उलट-पलट लंका सब जारी, कूदि परा पुनि सिंधु मझारी…।

7- संजीवनी पर्वत ही उठा लाए

राम के छोटे भाई लक्ष्मण को बचाने के लिए हनुमान जी पहले तो सुषेण बैध को लंका से उठा लाए। फिर उनके कहने पर संजीवनी लाने गए वीर हनुमान पूरा पहाड़ ही उठा लाए थे।

8- लक्ष्मण की जान बचाई
लंकापति रावण के पुत्र मेघनाद ने जब वीरघातिनी शक्ति से लक्ष्मण पर जानलेवा हमला किया तो उन्हें बचाने के लिए संजीवनी बूटी की दरकार थी, जो हर हालत में सूर्य निकलने से पहले आ जानी चाहिए थी। हनुमानजी ने को जब संजीवनी बूटी समझ में नहीं आई, वह पूरा पर्वत ही उठा लाए। इस दौरान उन्होंने मार्ग में बाधक बन रहे राक्षस को भी मारा और तय समय से पहले ही संजीवनी लाकर लक्ष्मण की जान बचाई।

हनुमानाष्टक में लिखा है-बान लग्यो उर लक्ष्मण के तब प्रान तज्यो सुत रावन मारोआनि सजीवन हाथ दियो तब लक्षिमन ने तुम प्रान उबारो

9- अहिरावण से राम-लक्ष्मण की जान बचाई
रावण के कहने पर पाताल के राजा अहिरावण ने राम-लक्ष्मण का हरण कर लिया था। वह उनकी बलि देने की तैयारी में ही था कि हनुमानजी पहुंच गए। उन्होंने न केवल राम-लक्ष्मण को उस राक्षस के चुंगल से छुटाया, बल्कि अहिरावण का सेना सहित संहार कर डाला।बंधु समेत जबै अहिरावन लै रघुनाथ पताल सिधारोदेबी पूजि भली बिधि सो बलि देउ सबै मिलि मंत्र विचारोजाय सहाय भयो तबही अहिरावण सैन्य समेत संहारो

10- नागपास से छुड़ाया
युद्ध भूमि में रावण ने नागपास अस्त्र से राम-लक्ष्मण को बांध दिया था, जिसके बाद प्रतिपल उनकी जान खतरे में थी। तब हनुमानजी ने गरुण जी को बुलाकर नागपास के बंधन से राम-लक्ष्मण को मुक्त कराया था।रावन युद्ध अजान कियो तब नाग की फांस सबे सिर डारोश्री रघुनाथ समेत सबै दल मोह भयो यह संकट भारोआनि खगेस तबै हनुमान जो बंधन काटि सु त्रास निवारो

11- लंका विजय में रहे अपराजित
राक्षसों से युद्ध करते समय कई बार ऐसा लगा कि राम सेना पराजित हो जाएगी, तब हनुमानजी ने ही मोर्चा संभाला और अपने युद्ध कौशल से राक्षसी सेना को भागने पर मजबूर कर दिया।

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