नौनिहाल के कंधों पर भारी-भरकम स्कूल बैग के बोझ को कम करने के लिए राज्य शिक्षा केंद्र के संचालक धनराजू एस द्वारा मानव संसाधन विकास मंत्रालय के स्कूल शिक्षा एवं साक्षरता विभाग द्वारा तय की गई स्कूल बैग पॉलिसी 2020 के तहत बस्ते का वजन कम करने के निर्देश का पालन कराने के निर्देश दिए। इसके तहत प्रतिमाह बच्चों के बस्तों की मॉनिटङ्क्षरग की और निर्धारित से अधिक वजन के बस्ते लेकर बच्चे नहीं मिलना चाहिए। कक्षा 2 के बच्चों को कोई भी गृह कार्य नहीं दिया जाए। जबकि कक्षा 3 से 5वीं तक बच्चों को प्रति सप्ताह अधिकतम 2 घंटे, कक्षा 6 से 8वीं तक के छात्रों को प्रतिदिन अधिकतम 1 घंटे और कक्षा 9 से12वीं तक के विद्यार्थियों को प्रतिदिन अधिकतम 2 घंटे का ही गृह कार्य दिया जाए।
बच्चों के अभिभावकों प्रिया जैन ने बताया कि बैग के वजन के संबंध में नियम तो बनाए हैं, लेकिन पालन नहीं किया जाता। बच्चे बोझ उठाने को मजबूर हैं। निशा भूरिया, रिचा ङ्क्षसह ने भी भारी भरकम स्कूल बैग को बच्चों के लिए सजा बताते हुए कहा कि बच्चों के वजन से ज्यादा बैग का वजन होता है। स्कूल से आकर बच्चे कमर दर्द और गर्दन में दर्द कि शिकायत करते हैं।
कक्षा 1 से 5वीं तक के बच्चों के बस्ते का वजन 1.6 से 2.5 किलोग्राम, 6 व 7 वीं तक का 2 से 3 किलोग्राम,8वीं का 2.5 से 4 किलोग्राम तक रहे। 9वीं व 10वीं के बस्ते का वजन 2.5 से 4.5 किलोग्राम तक रहे। सप्ताह में एक दिन बैग विहीन दिवस रखा भी जाना है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के स्कूल शिक्षा एवं साक्षरता विभाग द्वारा तय स्कूल बैग पॉलिसी 2020 के बाद भी का पालन नहीं हो रहा है। प्राइवेट स्कूलों में इन नियमों को सख्ती से लागू करने के निर्देश दिए है।
&बच्चों को भारी वजन के कारण पीठ दर्द और मांसपेशियों की समस्याओं व गर्दन दर्द से जूझना,झुककर चलना,मानशिक तनाव, कंधे में दर्द, कंधे का झुकना आदि दिक्कतें हो सकतीं हैं। उनका कहना है कि बच्चों की हड्डियां 18 साल की उम्र तक नर्म होती हैं और रीढ़ की हड्डी भारी वजन सहने लायक मजबूत नहीं होती। स्कूल में पढऩे वाले बच्चों को जोड़ों में दर्द,कमर दर्द व बच्चे हड्डी रोग जैसी समस्याऐं हो रही हैं। एक कंधे पर बैग टांगे रहने से वन साइडेड पेन शुरू हो जाता है।
डॉ. वी. निनामा, अस्थि रोग विशेषज्ञ, जिला अस्पताल, झाबुआ
आर एस बामनिया, डीइओ , झाबुआ