देवास नहीं पहले नाम था देवासिनी
देवास में माता टेकरी है। इस शहर का नाम दो देवियों के वास के नाम पर देवास पड़ा। जबकि इसका पहले नाम देववासिनी था। इसे मां चामुंडा और तुलजा भवानी की नगरी कहकर भी पुकारा जाता है।
घोर तपस्या की भूमि
माना जाता है कि देवास का इतिहास माता टेकरी से जुड़ा है। कई साधकों ने यहां तपस्या कर अपनी साधना को उच्च शिखर पर पहुंचाया। गुरु गोरखनाथ, राजा विक्रमादित्य के भाई राजा भर्तहरि व सद्गुरु योगेंद्र शीलनाथ महाराज की यह तपोभूमि रही है। कई वर्ष तक इन्हीं साधकों ने माता के चरणों में घोर तपस्या की है।
अनादि काल से हैं आस्था और चमत्कार के किस्से
माना जाता है कि ये शक्तावतों की आराध्य देवी हैं। वेद और पुराण मां चामुंडा और तुलजा भवानी की शक्तिकी महिमा से भरे पड़े हैं। इनकी महिमा ऐसी है कि अनादि काल से इनके प्रति आस्था और चमत्कार के किस्से चले आ रहे हैं। भक्तों की आस्था इतनी गहरी है कि वो कहते हैं जिस पर मां की कृपा हो जाती है, उसके जीवन का उद्धार हो जाता है। इस मंदिर की खासियत ये है कि माता यहां दिन में तीन स्वरूप बदलती हैं।
माता सती के अंग गिरे थे यहां
देवास के चामुंडा मंदिर में शिखर दर्शन का खास महत्व है। माता सती के जहां-जहां अंग गिरे वहां शक्ति पीठ कहलाए और जहां रक्त गिरा वहां रक्त शक्ति पीठ और अर्ध शक्ति पीठ कहलाए। यहां देवास में माता सती का रक्त गिरा था। उससे दो देवियों की उत्पत्ति हुई। इसलिए यहां के बारे में दो बहनों की कहानी प्रचलित है। यह एक ऐतिहासिक मंदिर है जिसका इतिहास बहुत काम लोग जानते है।
कहा जाता है कि बड़ी माँ और छोटी माँ के बीच बहनों का रिश्ता था। यहां दोनों माताएं साथ में रहती थीं एक दिन किसी बात पर दोनों में विवाद हो गया और यह बढ़ता गया। इसके चलते दोनों ही माताएं अपना अपना स्थान छोड़कर जाने लगी। बड़ी माँ पाताल में समाने लगीं और छोटी माँ अपना स्थान छोड़कर खड़ी हो गईं और टेकरी से जाने लगीं। तभी माताओं को कुपित देख कर उनके साथी-हनुमानजी और भैंरो बाबा ने उनसे क्रोध शांत करने और वहीं रुकने की विनती की। दोनों ही माताएं जैसी थीं वैसी ही रुक गईं। बड़ी माता का आधा शरीर पाताल में समा चुका था तो, वो जैसी स्थिति में थी वैसी ही टेकरी पर रुक गई। छोटी माता टेकरी से उतर रही थी उनका मार्ग अवरुद्ध होने के कारण वे और कुपित हो गईं और जिस अवस्था में वे नीचे उतर रही थीं उसी में वे टेकरी पर रुक गईं।
सुबह से शाम तक मां के तीन स्वरूप
मंदिर के पंडित अनिल मिश्र बताते हैं कि मां तुलजा भवानी और मां चामुण्डा दिन में तीन स्वरूप बदलती हैं। दोनों देवियों के रूप में सुबह बाल, दोपहर में जवान और रात में वृद्ध रूप देखे जा सकते हैं।
पान का बीड़ा, बने उल्टा सतिया तो मुराद पूरी
यहां स्थित बड़ी माता मंदिर पर उल्टा सातिया बनाया जाता है। मान्यता है कि इससे मां प्रसन्न होती हैं और भक्तों की मुराद पूरी करती है। मन्नत पूरी होने के बाद भक्त यहां आकर सीधा सतिया बनाकर जाते हैं। वहीं सात दिन तक पान का पीढ़ा चढ़ाकर मन्नत मांगी जाए, तो भी मां जरूरतमंद की झोली भर देती हैं।
विक्रमादित्य के साथ पृथ्वीराज चौहान भी करते थे पूजा
कहते हैं मां के इस मंदिर में गुरु ग्रोखनाथ, राजा भर्तहरि, सद्गुरु शीलनाथ महाराज, जैसे कई सिद्ध पुरुष तपस्या कर चुके हैं। राजा विक्रमादित्य और चक्रवर्ती राजा पृथ्वीराज चौहान भी माता के दरबार में माथा टेक चुके हैं। मां चामुंडा और तुलजा भवानी नाथ सम्प्रदाय की इष्ट देवी मानी जाती हैं। यहां का राज परिवार अष्टमी और नवमी के दिन यहां पूजन कर हवन में आहुति देते हैं।
नवरात्रि में 9 दिन उत्सव
यहां हर वर्ष नवरात्रि के नौ दिन उत्सवमय ही गुजरते हैं। नगर में माता के आकर्षक पंडाल सजाए जाते हैं। भक्तों के लिए भंडारों का आयोजन किया जाता है। यूं तो 12 महीने श्रद्धालु दर्शन के लिए माई के दरबार पहुंचते है। लेकिन शारदीय नवरात्रि में माता भक्तों का यहां मेला लगा रहता है।
मंदिर पहुंचने के हैं तीन रास्ते
देवास शहर के बीचों बीच माता की यह टेकरी स्थित है। इसकी ऊंचाई 300 फीट है। यहां जाने के लिए तीन मुख्य मार्ग हैं। एक शंख द्वार से होकर रपट का मार्ग जहां गाड़ी और पैदल होकर पहुंचते हैं। दूसरा एबी रोड पर स्थित सीढ़ी मार्ग जिससे सीढिय़ों से होकर जाते हैं। शंख द्वार से श्रद्धालु बड़ी माता तुलजा भवानी के मंदिर पहुंचते हैं। सीढ़ी मार्ग से सीधा छोटी माता चामुंडा रानी के दर्शन करने पहुंचते हैं। करीबन 250 से 300 मीटर की चढ़ाई करते हुए श्रद्धालु माता के मंदिर पहुंचते हैं। इनके अलावा भी एक परेड ग्राउंड से होकर सीढ़ी का रास्ता और रोप-वे से भी यहां पहुंचा जा सकता है।