इसका कारण है ट्रैक्टर-ट्रॉली का थाना परिसर से चोरी हो जाना। पीडि़त तो न्यायालय के आदेश पर थाने पहुंचकर टै्रक्टर-ट्रॉली की सुपुर्दगी की मांग करा है, लेकिन पुलिस उसके चोरी होने को लेकर बगले झांकने को मजबूर है।
पुलिसकर्मीआए दिन उसे ट्रैक्टर-ट्रॉली के चोरी होने तथा जल्द ही बरामद कर सुपुर्दगी करने की कहकर टरका रहे हैं। खास बात यह है कि जब्ती के कुछ दिन बाद ही थाने चोरी हुईट्रैक्टर-ट्रॉली को भरतपुर के डीग थाना पुलिस ने बरामद भी कर लिया, लेकिन उसके साथ ट्रॉली नहीं होने के कारण पुलिस उसे लेकर नहीं आ रही है।
ऐसे में न्यायालय में लड़ाई लडऩे के बाद भी पीडि़त को ट्रैक्टर-ट्रॉली नहीं मिल रही है। इसको लेकर पीडि़त नंदेरा निवासी घासीराम मीना ने पुलिस के खिलाफ न्यायालय की अवमानना का इस्तगासा भी दायर कर दिया है।
यह है मामला पीडि़त घासीराम मीना ने बताया कि 24 दिसम्बर 2013 को सिकंदरा थाना पुलिस ने वन अधिनियम के तहत अवैध रूप से पत्थर ले जाने के मामले में उसकी ट्रैक्टर-ट्रॉली जब्त कर ली थी।
इसके बाद उसने सहायक वन संरक्षक दौसा एवं मुख्य वन संरक्षक जयपुर के समक्ष टै्रक्टर-ट्रॉली छोडऩे के लिए आवेदन किया था, लेकिन दोनों ही अधिकारियों ने उसे खारिज कर दिया। इसके बाद उसने एडीजे कोर्ट में प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया।
जहां अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने 24 दिसम्बर 2014 को 3 लाख रुपए की बैंक गारंटी पर ट्रैक्टर-ट्रॉली छोडऩे के आदेश जारी कर दिए, लेकिन उसने बैंक गारंटी जमा कराने में असक्षम होने पर उच्च न्यायालय में पक्ष रख दिया।
सुनवाई के बाद उच्च न्यायालय ने 12 अगस्त 2016 को दो साधारण जमानत लेकर सहायक वन संरक्षक को ट्रेक्टर-ट्रॉली सुपुर्द करने के आदेश दे दिए। इस पर वह 23 अगस्त 2016 को न्यायालय के आदेश की प्रति लेकर प्राधिकृत अधिकारी (सहायक वन संरक्षक) कार्यालय पहुंचा गया।
वहां प्राधिकृत अधिकारी ने रिलीज ऑर्डर जारी कर थानाधिकारी सिकंदरा को वन उपज खाली कर ट्रेक्टर-ट्रॉली सुपुर्दगी के आदेश दिए है। इसके बाद जब वह आदेश लेकर थाने पहुंचा तो पुलिस ने जब्त की गई टै्रक्टर-ट्रॉली को थाना परिसर से 28 दिसम्बर 2013 को चोरी होना बताकर टरका दिया।