गांव में 5 एकड़ जमीन और घर छोड़ आए, वापस जाना यानी मौत
हिरोली सरपंच बुधरी कुंजाम दंपति के दो बच्चे थे दोनों की मौत हो चुकी है। गांव में दोनों का मकान है। 5 एकड़ खेत भी है। धान की फसल कट चुकी है। सरपंच दंपति से जब हमने पूछा कि संगीनों के साए में कब तक रहेंगे तो दोनों ने कहा कि अब तो जीना यहीं मरना यहीं। हिरोली वापस गए तो मौत तय है। दोनों इतना डरे हुए हैं कि हिरोली का नाम सुनते ही सिहर उठते हैं। सरपंच बुधरी कहती हैं कि सर सब कुछ पीछे छूट गया इस बात का गम तो है लेकिन सुकून इस बात का है कि जान सलामत है। वापस अब कभी नहीं जा पाएंगे। यहीं कोई काम ढूंढेंगे। अभी तो बड़े साहब लोग बयान ले रहे हैं।
डिपॉजिट 13 का विरोध करने ग्रामीणों को माओवादियों ने दी यातना
स रपंच दंपति ने नक्सलियों की ओर से डिपॉजिट 13 को लेकर भी कई खुलासे पत्रिका के सामने किए। उन्होंने बताया कि 13 नंबर का जब विरोध शुरू हुआ उससे पहले ही नक्सली गांव में सक्रिय हो गए थे वे लगातार मीटिंग ले रहे थे। ग्रामीणों को आंदोलन के लिए उकसाया जा रहा था। कई ग्रमीणों को आंदोलन का हिस्सा बनने के लिए मारा-पीटा भी गया। आंदोलन में शामिल होने के लिए बकायदा मुनादी करवाई गई।आंदोलन पर पूरे दिन नजर रखी। जिनकी तबियत खराब थी उन्हें भी भेजा गया। उनके कई समर्थक लोगों को जबरन बैठक में ले जाते थे।
खदान को लेकर नक्सली फिर बड़ा आंदोलन की बना रहे रणनीति
डि पॉजिट 13 को लेकर पिछली बार हुए आंदोलन से माओवादी खुश नहीं हैं। आंदोलन जिन शर्तों पर खत्म हुआ और जिन लोगों ने इसमें मध्यस्थता निभाई उससे वे नाखुश हैं। सरपंच दंपति ने यह खुलासा करते हुए बताया कि माओवादी एक बार फिर आंदोलन खड़ा करने की रणनीति बना रहे हैं। उन्होंने एक बार फिर ग्रामीणों को इसके लिए उकसाना शुरू कर दिया है।
फाॅर्स नहीं आती तो काट डालते नक्सली
हिरोली सरपंच बुदरी कुंजाम और उसके पति बताते हैं कि 16 जनवरी गुरुवार की शाम माओवादी उनके घर आए और साथ चलने को कहा। बुदरी की तबियत खराब थी इसलिए उसने जाने से इंकार कर दिया इसके बाद बुधरी के पति को साथ ले गए। शुक्रवार की रात सरपंच पति उनके कब्जे में रहा। माओवादी सरपंच पति को हिरोली के डोकापारा लेकर गए थे। बैलाडीला की पहाडिय़ों में इसे नक्सलियों का सुरक्षित इलाका माना जाता है। 17 जनवरी को बुधरी को भी बोडेपानी लाया गया। दोनों ने बताया कि यहाँ दोनों को जन अदालत लगाकर मारने की तैयारी हो रही थी। दोनों को अपनी मौत सामने दिख रही थी। इसके बाद वहां कुछ हलचल हुई और नक्सली भागने लगे। पता चला कि पुलिस पार्टी सर्चिंग पर निकली हुई है। उसे ही आड़ बनाकर सरपंच दंपति ने वहां से भागना तय किया और फोर्स की आड़ लेकर मुख्य मार्ग पर आ गए। इत्तेफाक से उस वक्त एक बस आ रही थी उसमें सवार होकर सीधे एसपी ऑफिस पहुंचे।
हालात बदले तो लेवी का पैटर्न बदला
पिछले एक साल से लेवी का पैटर्न नक्सलियों ने बदला है। पहले एक मोटी रकम उद्योग समहु और ठेकेदारों से आ जाया करती थी। नई सरकार आने के बाद इसमें रोक लगी। तेंदूपत्ता की सरकारी खरीदी होने लगी तो बाहरी ठेकेदार आने बंद हो गए। इसलिए नुकसान की भरपाई ग्रामीणों की कमाई से करना शुरू किया है।
अभिषेक पल्लव, एसपी दंतेवाड़ा