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दमोह

तीर्थंकर महावीर के मार्ग प्रशस्त करते रहे आचार्य विद्यासागर, इतिहास बना कुंडलुपर

जिनालय में तीर्थंकर दर्शन के साथ जिनागम और आचार्यों के बारे में जानेंगी युवा पीढ़ी, काम जारी…पढ़ें दमोह से संवेद जैन की ये रिपोर्ट..

दमोहFeb 18, 2024 / 12:19 pm

Sanjana Kumar

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आचार्य विद्यासागर के निर्देशन में कुंडलपुर का मंदिर आकार ले चुका हैं, अब इसमें कुछ ऐसे काम किए जा रहे हैं, जिनकी चर्चा युगो-युगों तक होगी। भगवान महावीर की विचारधारा के तहत हुए इस काम से जिनागम को भविष्य में दिखाने की परिकल्पना की जा रही हैं। यहां बड़ेबाबा (तीर्थंकर ऋषभनाथ) व अन्य तीर्थंकरों के दर्शन के साथ-साथ कलाकृतियों के माध्यम से कुछ ऐसा देखने मिलेगा, जिसके माध्यम से सदियों पुराने जिनागम से जुड़कर भविष्य को भी युवा पीढ़ी देख और समझ पाएगी इसका 80 प्रतिशत काम हो गया हैं, जबकि 20 प्रतिशत प्रगति पर हैं। भगवान महावीर के मार्ग प्रशस्त कर रहे आचार्य विद्यासागर की इस परिकल्पना के बाद लोग गुरुवर को अब चलते-फिरते भगवन (महावीर) का स्वरूप मानने लगे हैं। जो कुंडलपुर ही नहीं बल्कि अमरकंटक सहित देश में अनेक जगहों पर जैन धर्म को उस सांचे में ढालने में जुटे हैं, जिसकी छब भविष्य में देखने मिलेगी। यही गुरुदेव का सपना भी हैं।

कुंडलुपर मंदिर में हर बीम पर देखने मिलेगा आचार्यों का इतिहास

कुंडलपुर में बड़ेबाबा के विशाल और भव्य मंदिर को देखने देश के साथ-साथ विदेश से भी लोग पहुंचते हैं। जबकि अभी मंदिर का काम पूरा नहीं हुआ हैं। मंदिर में 108 मुख्य बीम तैयार हुई हैं, जिनमें जैन धर्म को अंतिम तीर्थंकर महावीर के काल से अब तक लोगों के बीच जीवित रखने वाले आचार्य, मुनियों का वर्णन होगा। उनके प्रमुख कार्यों को भी इसमें उल्लेखित किया जाएगा। सभी मुख्य बीम पर आचार्यों का अनसुना इतिहास लोगों को पढऩे और देखने मिलेगा। इन बीम पर आचार्य की मुनि चर्या, तप सहित अन्य मुद्राओं में खड़गासन और पदमासन कलाकृतियां देखने मिलती हैं। जिस पर अभी लेखांकन का काम शेष हैं। जैनाचार्य कुंदकुंद स्वामी से लेकर आचार्य, शांतिसागर, ज्ञानसागर तक का वर्णन यहां किया जाएगा।

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भूत, वर्तमान और भविष्य को जोड़ेगा मंदिर

आचार्य विद्यासागर की दूरस्थ सोच और विचार मंदिर निर्माण में अब नजर आने लगे हैं। मंदिर का निर्माण पूरा होते ही इसमें भूतकाल से लेकर वर्तमान होते हुए भविष्य तक की परिकल्पना देखने मिलेगी। यहां पिलर में जैनाचार्यों के इतिहास के साथ तीर्थंकर के जीवनकाल के दृश्य व अन्य अनदेखी व अनसुनी कलाकृतियां देखने मिलेगी। जो वर्तमान से शुरू होकर भविष्य तक जिनागम को लोगों से जोड़े रखेगी।

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