जिंदल ने छीनी जमीन…मार दिया भाई को…तार-तार कर दी मेरी आबरू
यह दास्तां है छत्तीसगढ़ में रायगढ़ क्षेत्र की आदिवासी महिला तारिका की। उसके परिवार पर जमीन हथियाने के लिए उद्योगपति और सरकारी हुक्मरानों ने जो जुल्म ढाए, वह रूह कंपा देने वाले हैं।
Jindal Group tortures tribal woman
रायगढ़/ राजकुमार सोनी. यह दास्तां है रायगढ़ क्षेत्र की आदिवासी महिला तारिका की। जमीन हथियाने के लिए उसके परिवार पर प्रमुख उद्योग समूह और नौकरशाहों ने जो जुल्म ढाए, वह रूह कंपा देने वाले हैं। उसने अपनी आपबीती नया रायपुर उपरवारा स्थित हिदायतउल्ला विधि विश्वविद्यालय में देश के नामचीन कानूनविदें को चीख-चीख कर सुनाई। वहां सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज एके पटनायक, मानवाधिकार मामलों के पैरोकार कोलिन गोजांलविस और ऑल इंडिया लॉयर्स यूनियन के सचिव शौकत अली भी उपस्थित थे। यहां प्रस्तुत हैं उस दर्द को बयां करता अनकट ऑडियो…सुनने के लिए फोटो पर क्लिक करें…
पीडि़ता ने कानूनविदें को सुनाई आपबीती
मेरे पापा सरकारी अधिकारी थे। 1998 में उनका देहांत हो गया। हमारी जमीन गांव से तीन किमी दूर है। वर्ष 2000 में जिंदल दो साथियों के साथ जमीन लेने आए थे, लेकिन तब मां ने मना कर दिया, क्योंकि वो पापा के निधन के बाद उस जमीन से हम दो भाई-बहिनों को संभाल रही थीं। हमें गांव तक बिजली लाने के लिए रिश्वत देनी पड़ी थी, लेकिन राज्य का निर्माण हमारे लिए दुखद दिन था। बिजली वायर चोरी हो गए। इसकी शिकायत की, लेकिन कार्रवाई नहीं हुई।
2003 में पता चला कि हमारी जमीन का अधिग्रहण होगा। सरपंच से पता चला कि पूंजीपथरा में जमीनों के अधिग्रहण को लेकर कोई ग्राम सभा नहीं हुई। कोटवार और एक आरक्षक ने मां को बताया कि हमारी जमीन अधिग्रहण दायरे में है, मुआवजा लेने आओ। मां ने आपत्ति की तो दबाव का खेल शुरू हुआ। एक रोज घर के बाड़े को तोड़ा जा रहा था, तब मां जो स्वयं सरकारी मुलाजिम थी, वह घरघोड़ा के एसडीएम सुनील जैन के पास सूचना देने गईं। मां शुगर और बीपी की मरीज है, लेकिन उन्हें वहां बंधक बना लिया गया। एक तरफ मां कैद थी तो दूसरी तरफ मैं अपने पति और भाई के साथ अपनी जमीन पर खड़ी थी। हम विरोध कर रहे थे कि जमीन पर बुलडोजर नहीं चलने देंगे।
उधर एसडीएम दफ्तर में मां को धमकी दी जा रही थी कि जमीन नहीं दोगी तो बच्चों पर बुलडोजर चढ़ा देंगे। दफ्तर के बाहर डीके भार्गव और राकेश जिन्दल, जो जिन्दल के दलाल थे, वे बैठे हुए थे। जब यह तय हो गया कि हम पर बुलडोजर चल जाएगा, तब मां ने हमें एसडीएम दफ्तर बुला लिया। हम चार घंटे तक वहां थे, हमारी जमीन पर बुलडोजर चल चुका था। आम-काजू के पेड़ बरबाद हो गए। वहां कच्ची सडक़ बन गई और गाडिय़ां आने-जाने लगीं।
भाई की हत्या को दुर्घटना में बदल दिया
मां ने सहमति पत्र पर हस्ताक्षर नहीं किए, पुलिसवाले मेरे भाई प्रवीण पर दबाव बनाने लगे। वे उसे हर दूसरे-तीसरे रोज थाने ले जाते थे, धूप में खड़ा रखते, मुर्गा बनाते। एक अप्रैल 2007 को भाई अपने दोस्तों के साथ तराईमाल गया। 2 अप्रैल की सुबह खबर मिली कि उसका एक्सीडेंट हो गया। मैं घटनास्थल पर पहुंची तो प्रवीण के साथ उसके दोस्तों की भी मौत हो चुकी थी। कहीं से भी नहीं लग रहा था कि वह एक एक्सीडेंट है। शासन-प्रशासन ने उनकी हत्या को एक्सीडेंट साबित कर दिया। हमारी आधी जमीन पर कब्जा हो चुका था। शिकायत करनी चाही तो मां पर ही शांति भंग का प्रकरण दर्ज कर दिया।
…और वो भयानक दिन
31 मई 2015 को मां के साथ पूंजीपथरा में थी। रात में तेज बुखार आया। सुबह अकेली ही इलाज के लिए घर से निकली। सडक़ पर खड़ी होकर बस का इन्तजार कर रही थी, तभी एक फोरव्हीलर आकर रुकी। ड्राइवर ने पूछा कि क्या तमनार जाना है। मैं गाड़ी में बैठ गई। मुझे पता नहीं चला, क्या हुआ…। होश आया तो कुछ आवाजें सुनीं। मेरे दोनों हाथ पलंग पर बंधे थे। कुछ लोग एक-दूसरे को मैनेजर-डायरेक्टर बोलकर बात कर रहे थे।
मैं चिल्लाई तो एक आदमी आया और उसने मेरे कंधों को पकडक़र कहा कि तुम्हारी जमीन हमारे कब्जे में है। तुम कलक्टर को लिख दो कि हम जमीन छोडक़र जा रहे हैं। जब उसने मुझे झकझोरा, तब मुझे पता चला कि मेरे शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं था। मेरी आंखों पर पट्टी बंधी थी। वो जानवर मेरे हाथों में अपना गुप्तांग पकड़ा रहे थे। चिल्लाना चाहती थी लेकिन चिल्ला नहीं पा रही थी। इन जल्लादों की बात अगर मैं कहूं तो आप सभी अपना सिर शर्म से नीचे कर लेंगे। जब मेरी आंखों की पट्टी खुली तो मैंने कपड़े पहने। जल्लादों ने मुझे वहीं छोड़ दिया, जहां से लेकर आए थे। हम तीन जून को तमनार थाने गए तो मुंशी ने शिकायत रख ली। पांच जून को पुलिसवालों ने घर आकर मेरे पति को धमकाया कि ज्यादा नेतागिरी करोगे तो नक्सली बनाकर मार देंगे। मेरी कम्पलेन फाड़ दी।
जिंदा हूं, तब तक लडूंगी…
मैंने अपने छह साल के बच्चे को बाहर पढऩे भेज दिया। यह फैसला बेहद कठिन था। 2014 में तय किया कि मैं लड़ाई लडूंगी। सुप्रीम कोर्ट गई तो मेरा केस रजिस्ट्रार के पास ही खारिज हो गया। सात अप्रैल 2015 को मेरा केस फिर सुप्रीम कोर्ट में लगा। जो वकील जिन्दल के पक्ष में खड़े थे, वे कार्यक्रम में मौजूद हैं। उन्हें देखकर बेहद तकलीफ हुई। मेरी ओर से एक-दो वकील। और उसके लिए 20-20 वकील। कैसे मिलेगा साधारण इंसान को न्याय। जब मैं वहां से गुहार लगाकर लौटी तो कलक्टर ने मुझे दोबारा ज्वाइनिंग नहीं दी। ट्रांसफर कर दिया। वेतन नहीं दी जा रही। एफआईआर तक दर्ज नहीं, लेकिन मैं लड़ाई लडूंगी। जब तक मैं जिन्दा रहूंगी अपनी लड़ाई लडूंगी।
ऑल इंडिया लॉयर्स यूनियन के सचिव शौकत अली कहते हैं, तारिका हयूमन राइट लॉ नेटवर्क के माध्यम से कार्यक्रम में पहुंची थी। उसने कानूनविदों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के सामने जो कुछ बयां किया वह दिल को दहला देने वाला था। उसकी एक-एक बात अकल्पनीय है। तारिका ने सबके सामने जो कुछ कहा, वही पूंजीपथरा का सच है। हम उसके साथ हैं।
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