चौधरी बल्लाराम आर्य का जन्म सन् 1920 में हुआ था उनके पिता का नाम हुणताराम था तथा उनके तीन बड़े भाई ददेराम आर्य, सुगनाराम व यादराम भी स्वतंत्रता सेनानी थे। उनके बड़े भाई यादराम आर्य ने सन् 1939 में दक्षिणी हैदराबाद के निजाम के विरुद्ध आर्य समाज के सत्याग्रह में भाग लिया। उनको 19 माह की कारावास से दंडित किया गया।
नौ सपूतों ने आजादी का दिया नारा बीकानेर रियासत की जनता को राह दिखाने के लिए नौ मई 1946 को 13 वीर सपूतों ने बीकानेर में हम आजादी चाहते हैं, नारे का जयघोष कर दिया। चौधरी बल्लाराम आर्य ने इसका नेतृत्व किया था। बीकानेर शहर में ऐतिहासिक जुलूस छबीली घाटी से शुरू होकर शहर के बीच से गुजरता हुआ पुलिस लाइन रोशनी घर के पास पहुंचा। यहां पुलिस ने आंदोलनकारियों पर लाठियां बरसाई। जिसमें प्रदर्शनकारी लाठियों से घायल हो गए थे।
परिवार का रहा योगदान स्वंतत्रता आंदोलन में बल्लाराम आर्य के पूरे परिवार का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
29 दिसंबर 1996 को हृदय गति रुकने से उनका देहांत हो गया। चौधरी के पुत्र हवासिंह आर्य वर्तमान में आर्य समाज के प्रवक्ता हैं। उन्होंने बीकानेर रियासत के स्वतंत्रता संग्राम की मुंह बोलती कहानी नामक पुस्तक 1 984 में प्रकाशित की थी।
बल्लाराम आर्य की प्रतिमा स्थापित
गत वर्ष 28 दिसंबर को चौधरी बल्लाराम आर्य के पुत्र हवासिंह आर्य ने अपने पिता की प्रतिमा का निर्माण करवाया।
इसका लोकार्पण गांव गुडाण में शहीद-ए-आजम भगतसिंह के भतीजे सरदार किरणजीत सिंह ने किया था। उनकी याद में 29 दिसंबर को गांव गुडाण में पुण्य तिथि मनाई जाएगी।
तोड़ी धारा 144, निकाला जुलूस हैदराबाद की जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने चांदगोठी में धारा १४४ तोड़कर जुलूस निकाला। जिसके कारण उन्हें फिर नौ माह की सजा सुनाई गई। 15 अप्रेल 1946 को बीकानेर रियासत में एक बहुत बड़े प्रदर्शन का आयोजन किया गया। इसके प्रमुख संचालक चौधरी बल्लाराम आर्य के बड़े भाई ददेराम आर्य थे। 9 मई 1946 को सादुलपुर शहर के शीतला बाजार में हुए लाठी प्रहार में उनको गंभीर चोटें लगी।