गरीबी घटने और गरीब बढऩे की इस तस्वीर को समझना जरूरी है। नि:शुल्क राशन पाने वालों की संख्या राज्य की कुल आबादी का लगभग 70 प्रतिशत है। इससे यह स्पष्ट होता है कि गरीबों की निर्भरता में कमी नहीं आई है, बल्कि सरकारी सहायता पर उनकी निर्भरता बढ़ी है। गरीबी उन्मूलन की कोशिशों के बावजूद, इस तथ्य से स्पष्ट हो रहा है कि आर्थिक विकास की प्रक्रिया में निचले तबके के लोगों की आत्मनिर्भरता पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है। गरीबों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के क्षेत्र में प्रभावी निवेश की आवश्यकता है। निर्बल, निसहाय और कमजोर तबके को मदद करते रहना चाहिए, पर साथ ही यह कोशिश भी करनी चाहिए कि हर तबका अपने पैरों पर खड़ा हो सके। इसके लिए उनकी आर्थिक स्थिति सुधारने पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ाने, उद्यमशीलता को प्रोत्साहन देने और शिक्षा में सुधार के काम हाथ में लेने होंगे, तभी वास्तविक अर्थों में गरीबी और गरीब दोनों में कमी आएगी। आंकड़ों के विरोधाभास को भी खत्म करना होगा। सरकारी योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन और दीर्घकालिक दृष्टिकोण इस समस्या का समाधान कर सकता है। प्रदेश में गरीबी उन्मूलन के प्रयास तभी सार्थक होंगे जब गरीबों को आत्मनिर्भर बनने के लिए साधन और अवसर प्रदान किए जाएं।
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