छतरपुर

अनजाने में लापरवाही कर टीबी के मरीज मल्टी ड्रग रेसिस्टेंट टीबी के हो रहे शिकार

डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक विश्व में टीबी के कुल मरीजों की संख्या की एक तिहाई संख्या भारत में है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने टीबी मुक्त भारत के लिए 2025 तक का लक्ष्य रखा है। लेकिन टीबी के मरीज जानकारी के अभाव या समाज में उनकी बीमारी की जानकारी छिपाने के चलते समय से इलाज नहीं ले रहे हैं।

छतरपुरJan 17, 2025 / 10:42 am

Dharmendra Singh

टीबी अस्पताल नौगांव

छतरपुर. डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक विश्व में टीबी के कुल मरीजों की संख्या की एक तिहाई संख्या भारत में है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने टीबी मुक्त भारत के लिए 2025 तक का लक्ष्य रखा है। लेकिन टीबी के मरीज जानकारी के अभाव या समाज में उनकी बीमारी की जानकारी छिपाने के चलते समय से इलाज नहीं ले रहे हैं। इससे टीबी के मरीज की बीमारी गंभीर होती जा रही है। छतरपुर जिले में एक टीबी अस्पताल नौगांव में है और 17 डॉट सेंटर है। इस अस्पताल पर एमपी-यूपी के कई जिलो के मरीज आते हैं। जिनमें से ज्यादातर जानकारी के अभाव में दवाओं का नियमित सेवन न करके मल्टी ड्रग रेसिस्टेंट मरीज बनकर अपनी समस्या बढ़ा रहे हैं।

क्या है एमडीआर


मल्टी ड्रग रेसिस्टेंट (एमडीआर)टीबी होने का मतलब है कि मरीज के शरीर में मौजूद बैक्टीरिया कई दवाओं के प्रतिरोधी हो गया है और उस पर इन दवाओं का कोई असर नहीं हो रहा है। वह इन दवाओं के इस्तेमाल के दौरान खुद को जिंदा रखने में सक्षम है। ऐसी स्थिति में भी मरीज को इलाज का फायदा नहीं मिलता और दवाएं लंबी चल सकती हैं। अनियमित उपचार मिलने से टीबी के ड्रग रेसिस्टेंट मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। जिन मरीजों का फस्र्ट स्टेज में मात्र छह माह इलाज देकर ठीक किया जा सकता है, लेकिन वे समय से इलाज नहीं लेते जिससे ड्रग रेसिस्टेंट हो जाता है। जिसके बाद हर दवा मरीज पर असर नहीं करती है। इसके अलावा ऐसे मरीजों के संपर्क में आने वाले भी ड्रग रेसिस्टेंट टीबी के शिकार हो जाते हैं। हालांकि कई बार दवाई खाते खाते भी रेसिस्टेंट हो जाता है। रेसिस्टेंट मरीजों का इलाज कठिन हो जाता है।

जानकारी के अभाव में दवा में हो जा रहा अंतराल


सरकारी अस्पताल, डॉट सेंटर, एनजीओ व स्वास्थ केंद्र के माध्यम से चिंहित किए गए मरीजों को दवाएं व पोषण आहार की राशि उपलब्ध कराई जाती है। लेकिन जानकारी के अभाव में मरीज टीबी अस्पताल से ही दवाएं लेने पहुंच जाते हैं। जबकि नए सिस्टम में मरीज को उनके क्षेत्र के स्वास्थ केंद्र, अस्पताल या डॉट सेंटर से दवा दी जानी है। छतरपुर जिले से बाहर के ज्यादातर मरीज अपने जिले में दवाएं न लेकर नौगांव अस्पताल आते हैं। ऐसे में मरीज दवा का सेवन नियमित नहीं करता और मर्ज सुधरने के बजाए बिगडऩे लगता है।

डॉट सेंटर में लापरवाही


जिले के सर्वाधिक टीबी प्रभावित इलाकों में शामिल लवकुशनगर में 6 डॉट सेंटर बनाए गए हैं। लेकिन इस इलाके के ज्यादातर डॉट सेंटर अक्सर बंद रहते हैं। बिजावर क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले बड़ामलहरा टीबी जांच सेंटर पर मरीजों की मल्टी ड्रग रसिस्टेंड जैसी जांच के लिए मरीज को हाथ में खकार की डब्बी लेकर छतरपुर भेजा जाता है। जबकि सैंपल को जांच के लिए मरीज के हाथ से नहीं भेजी जानी चाहिए, क्योंकि इससे रास्ते में संक्रमण फैलने का खतरा रहता है। शासन के नियम के मुताबिक मरीज को दवा और जांच के लिए कहीं भी भेजा नहीं जाना है।

इनका कहना है


दवाएं नियमित न लेने से मल्टी ड्रग रेसिस्टेंट टीबी होती है। मरीज जानकारी के अभाव में नजदीकी सेंटर से दवा नहीं लेते हैं, इससे समस्या आती है। हम उन्हें जागरुक करने का प्रयास लगातार कर रहे हैं। गांवों में सर्वे कराए जाते हैं, ताकि ज्यादा से ज्यादा मरीज सरकारी सिस्टम में दर्ज हो, उन्हें सरकार से दवा व पोषण की राशि निशुल्क मिल रहा है। मरीजों को कोई परेशानी है तो मुझझे संपर्क कर सकते हैं। मैं समस्या का समाधान कराने का हर संभव प्रयास करुंगा।
डॉ. राकेश चतुर्वेदी, प्रभारी, टीबी अस्पताल नौगांव

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