शक्ति का होता है अहसास
मान्यता है कि आल्हा उदल महोबा से माधौगढ़ जाते वक्त जब अबार माता पहुंचे तो उन्हें अबेर हो गई। जिसका अर्थ बुंदेलखंडी में शाम गहराना होता है। जिसके चलते उन्होंने यहीं पर अपना डेरा डाल दिया और हर रोज की तरह रात में जब अपनी आराध्य देवी का आह्वान किया तो मां ने उन्हें दर्शन दिए। बाद में उन्होंने यहां उनका मंदिर बनवा दिया और ये अबार माता के नाम से प्रसिद्ध हुईं। फिर चंदेल शासन काल के दौरान एक बार उनके लड़ाका सरदार यहां आए. वे यहां रास्ता भटक गए और उन्होंने इसी जंगल में विश्राम किया. यहां उन्हें किसी शाक्ति का अहसास हुआ तो उन्होंने उसकी तलाश की और उन्हें यहां देवीजी का मंदिर मिला।
नवरात्रि में हर दिन आते है 50 हजार से 1 लाख लोग
अबार माता मंदिर में आम दिनों में रोजाना 2 हजार लोग माता के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। मंदिर पहुंचने वालो में छतरपुर जिले के अलावा टीकमगढ़, सागर, दमोह के श्रद्धालु भी आते हैं। छतरपुर जिला मुख्यालय से 105 और बड़ामलहरा विकासखंड मुख्यालय से 55 किलोमीटर दूर रामटौरिया के पास अबार माता का मंदिर स्थिति है, जहां जाने के लिए बस,टैक्सी सुविधा उपलब्ध हैं।
पंचमी व अष्टमी को होता है विशेष श्रंगार
नवरात्रि में अबार माता का हर दिन श्रंगार होता है। पंचमी और अष्टमी को विशेष श्रंगार किया जाता है। वहीं वैसाख माह की नवरात्रि में दस दिन तक विशेष मेला लगता है। हालांकि शारदीय नवरात्रि पर भी मेले जैसा माहौल रहता है, लेकिन वैसाख माह का मेला प्रसिद्ध है।