अनुसंधान में भूतकनीकी, हाईड्रालिक तथा उपग्रह द्वारा खींचे गए चित्रों की सहायता ली गई है। इस परियोजना में झील के पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचाए बिना तलहटी से अवांछित पदार्थ निकाले गए। परियोजना में शामिल आईआईटी के दल का कहना है कि इससे 132 गांवों में रहने वाले दो लाख से अधिक मछुआरों को लाभ हुआ क्योंकि अब सात गुना अधिक मछली पकड़ी जा सकती है।
दल का कहना है कि प्रकृति को नुकसान पहुंचाए बिना व्यवसाय और पर्यटन एक साथ चल सकते हैं। आईआईटी मद्रास में महासागर अभियांत्रिकी विभाग के प्रोफेसर आर सुंदरवदिवेलु ने कहा कि “चिल्का झील चार हजार साल से अधिक पुरानी है और ओडिशा के पुरी, खुर्दा और गंजाम जिले तक फैली है। झील का उत्पादक पारिस्थितिकी तंत्र मछुआरों की आजीविका का स्रोत है और इसमें महानदी का पानी भी गिरता है।
उन्होंने कहा कि “इस परियोजना से मीठे पानी की अवांछित जंगली घास कम हुई है। और झील की जैव विविधता एवं पारिस्थितिकी तंत्र में वृद्धि हुई है। मछलियों का उत्पादन सात गुना बढ़ा है और विलुप्तप्राय इरावडी डॉल्फिन की संख्या भी बढ़ी है।