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चंडीगढ़ पंजाब

गुरु गोबिन्द सिंह ने बैसाखी के दिन 1699 में यहां की थी खालसा पंथ की स्थापना, छकाया था अमृत, पढ़िए रोचक कहानी

-आनंदपुर साहिब में 30 मार्च,1699 को तैयार किए थे खालसा
-दमदमा साहिब में होता है बैसाखी त्योहार पर मुख्य कार्यक्रम
-कोरोना और कर्फ्यू के कारण इस बार नहीं बुलाए गए श्रद्धालु

चंडीगढ़ पंजाबApr 13, 2020 / 10:13 am

Bhanu Pratap

Guru govind singh

Guru govind singh

चंडीगढ़। 13 अप्रैल को बैसाखी का पर्व है। पंजाब के लिए इस पर्व का खास महत्व है। बैसाखी से ही पंजाब में फसल की कटाई शुरू हो जाती है। धार्मिक महत्व यह है कि सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिन्द सिंह ने 321 साल पहले बैसाखी के दिन ही खालसा पंथ की स्थापना की थी। पंच प्यारों को अमृतपान छकाया था। आज भी जो पुरुष खालसा बनता है तो उसे ‘सिंह’ और जो महिला खालसा बनती है उसे ‘कौर’ उपनाम दिया जाता है। गुरु गोबिन्द सिंह ने ही दो नारे दिए हैं- जो बोले सो निहाल सत श्री अकाल और वाहे गुरु जी का खालसा- वाहे गुरु जी की फतह। ये नारे सिख धर्म की पहचान बन चुके हैं। बैसाखी पर्व पर मुख्य कार्यक्रम गुरुद्वारा दमदमा साहिब में होता है। कोरोनावायरस और कर्फ्यू के कारण इस बार श्रद्धालु नहीं हैं। कार्यक्रम पहले की तरह हो रहे हैं।
1699 में आनंदपुर साहिब में खालसा तैयार किए

सन 1664 में श्री गुरु तेग बहादुर ने आनंदपुर साहिब गुरुद्वारे का निर्माण करवाया था। श्री गुरु गोबिन्द सिंह ने इस गुरुद्वारे में 25 साल से भी ज्यादा समय व्यतीत किया था। आनंदपुर साहिब में ही 30 मार्च, 1699 को बैसाखी के दिन गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की। इस दिन उन्होंने सर्वप्रथम पाँच प्यारों को अमृतपान करवा कर खालसा बनाया। उन पाँच प्यारों के हाथों से स्वयं भी अमृतपान किया। आनंदपुर साहिब पंजाब के रूपनगर (रोपड़) जिले में है। गुरु गोबिन्द सिंह के आह्वान पर भाई दया सिंह, धर्म सिंह, हिम्मत सिंह, मोहकम सिंह, साहिब सिंह ने अपना सिर कटवाना स्वीकार किया। वास्तव में यह सिखों के साहस की परीक्षा थी। गुरु गोबिन्द सिंह ने सिर के स्थान पर बकरे की गर्दन काटी। लोग समझते थे कि सिर काटे जा रहे हैं। खालसा को पाँच ककार (कच्छ, कड़ा, कृपाण, केश तथा कंघा) धारण करना अनिवार्य किया गया। फिर पांच प्यारों की आज्ञा सर्वोपिर हो गई। गुरु गोबिन्द सिंह भी इनकी बात मानते थे। श्री आनंदपुर साहिब गुरुद्वारे में अप्रैल माह के समय बैसाखी का त्योहार सिख धर्म के लोग धूमधाम से मनाते हैं। होला मोहल्ला त्योहार सिख समाज के दसवें गुरु श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी ने बनाया था।
आनंदपुर साहिब
दमदमा साहिब में श्री गुरु ग्रंथ साहिब का पूर्ण संस्करण तैयार किया

गुरु गोबिन्द सिंह ने बैसाखी का दूसरा पर्व तख्त श्री दमदमा साहिब में मनाया था। तभी से यहां बैसाखी मुख्य पर्व के रूप में मनाया जाने लगा। दमदमा साहिब पंजाब के बंठिडा में स्थित है और इसे तलवंडी साबों भी कहा जाता है। कहा जाता है कि जब गुरु गोबिंद सिंह जी युद्ध लड़ते हुए तलवंडी साबों पहुंचे तो लंबी सांस (दम) ली, जिसके बाद इस जगह का नाम दमदमा साहिब रखा गया। इस स्थान पर गुरु गोबिंद सिंह जी लगभग 15 महीने रहे और इसी स्थान पर उन्होंने आदि ग्रंथ, श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के पूर्ण संस्करण को तैयार किया, जिसे भाई मनी सिंह जी के हाथों से लिखा गया। सिक्खों के अन्य चार तख्तों में अकाल तख्त, तख्त श्री केशरगढ़ साहिब, तख्त श्री पटना साहिब और तख्त श्री हजूर साहिब शामिल है। दमदमा साहिब को गुरु की काशी भी कहकर पुकारा जाता है।
दमदमा साहिब
कहां कौन से कार्यक्रम

स्वर्ण मंदिर, अमृतसर के प्रबंधक राजिन्दर सिंह रूबी ने बताया कै बैसाखी का पर्व श्री दमदमा साहिब, होली आनंदपुर साहिब और दीवाली स्वर्ण मंदिर में सामूहिक रूप से मनाई जाती है। यह ठीक है कि खालसा पंथ की स्थापना आनंदपुर साहिब में हुई थी, लेकिन मुख्य कार्यक्रम दमदमा साहिब में होता है। सभी गुरुद्वारों में अंखड पाठ चल रहे हैं। अमृतपान भी छकाया जाएगा। कोरोनावायरस के कारण गुरुद्वारों में श्रद्धालु नहीं बुलाए गए हैं। सभी से कहा गया है कि अपने घरों में त्योहार मनाएं।

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