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चंदौली

सरकार की अनदेखी से परेशानी में फंसे तेंदूपत्ता के किसान

इनके रोजगार के लिए जनप्रतिनिधियों द्वारा कोई भी कारगर कदम नही उठाया गया,इस क्षेत्र में देखा जाए तो इनका मुख्य व्यवसाय तेंदूपत्ता है जो इस समय जोरो से हो रहा है

चंदौलीJun 09, 2019 / 06:48 pm

Ashish Shukla

tendupatta

सरकार की अनदेखी से परेशानी में फंसे तेंदूपत्ता के किसान

चंदौली. जहां एक तरफ सरकार रोजगार के लिए तरह-तरह की योजनाएं चला रही है कि अंतिम पंक्ति के लोगों तक योजनाओं का लाभ मिल सके परंतु इसकी जमीनी हकीकत बिल्कुल विपरीत है उत्तर प्रदेश के अंतिम छोर पर स्थित सोनभद्र जिला जो कि आदिवासी बाहुल्य अति पिछड़ा नक्सल प्रभावित क्षेत्र है। यहां के आदिवासी बनवासी आज भी मुख्यधारा से नही जुड़ पाए है। इनके रोजगार के लिए जनप्रतिनिधियों द्वारा कोई भी कारगर कदम नही उठाया गया,इस क्षेत्र में देखा जाए तो इनका मुख्य व्यवसाय तेंदूपत्ता है जो इस समय जोरो से हो रहा है।
इस वर्ष से छत्तीसगढ़ सरकार ने इनकी परेशानियों को देखते हुए इनके कुछ मूल्यों को बढ़ाकर 420 रुपये सैकड़ा बंडल रखा गया है। वहीं मध्य मध्य प्रदेश में 250रुपए सैकड़ा बंडल तथा उत्तर प्रदेश में सबसे कम 125 रुपए सैकड़ा बंडल है। यहां के गरीब आदिवासियों मजबूरी में इतने कम मूल्यों पर काम कर रहे हैं। जिससे उनके परिवारों का गुजारा नहीं चल पा रहा है।
उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश राज्य के जिला में इन दिनों तेंदू पत्ती का तुड़ान जारी है। जिले के सभी जंगलों में इन दिनों तेंदू पत्ते की तुड़ाई कर ग्रामीणों के लिए एक रोजगार मिल गया है। जो छतीसगढ़ के गाँव सनावल,पचावल,त्रिशूली,यूपी के बॉर्डर क्षेत्र के गांव कोरची,भिसुर,सुंदरी,गुग्वामान सहित मध्यप्रदेश के बैढन जिले के गांव सहित ग्रामीणों को पत्ती तुड़ाई करने का एक रोजगार तो मिलता है। पर उनके मूल्य काफी कम दिए जाते। जिससे उनको खासा परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
बलरामपुर जिले के त्रिशूली गांव के निवासी राजकेशरी देवी ने कहा कि हम लोग 20 वर्षो से यह तेंदू पत्ता का तुड़ाई कर अपना जीवकोपार्जन करते है। और हमलोग सुबह में हो जंगलों में निकल जाते है जिसके बाद पत्ती तोड़कर अपने घर लाते है और 50 पतियों का एक बंडल बनाते है। इसी तरह 100 बंडल बनाने पर 420 रुपये मिलता है। यह आजकल नया रेट लागू किया गया है जिसका पेमेंट खाते में आएगा।
त्रिशूली गांव के निवासी असर्फी ने बताया कि हम लोग बनी मजदूरी का काम शुरू से करते आ रहे है और 20 वर्षो से तेंदू पत्ती का तुड़ाई करते है जिसे हर वर्ष पत्ती के बंडलों को मंडी लगने पर बेचते है। जिसका पैसा 6 माह बाद मिलता है। जो हमारे घर के लिए महत्वपूर्ण होता है।
कलावती देवी ने बताया की तेंदू पत्ता का तोड़ाई का काम करने हम लोग रात में ही जंगलों में निकल जाते है। और महुआ के पेड़ से महुआ फल,डोरी भी उधर से आते हुए लेते आते है। यही हम लोगो का सहारा है।
रामजीत निवासी सनावल गांव ने बताया कि पूर्वजो के समय से ही तेंदूपत्ता तोड़ने का काम करते चले आ रहे है। पूर्व में पत्ता को तौल पर बेचा करते थे। अब 420 रुपये सैकड़ा बंडल के हिसाब से बेचा जा रहा है। और इसका पेमेंट खाते में आता है। और इसी काम से हमलोगों को हर साल काम मिलता है जो करते है और अपना पेट चलाते है।इस बार तो मूल्य बढा दिया गया है।पर उत्तर प्रदेश का आज भी मूल्य काफी कम है।

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