यह भी पढ़ें – टैक्स बचाने के लिए यहां करें निवेश, खूब मिलेगा रिटर्न वित्त मंत्री ने कहा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 24 फरवरी 2011 को कहा था कि एंट्रिक्स और देवास डील को मंजूरी देने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय की जरूरत नहीं पड़ी, क्योंकि ये कभी इस स्तर तक पहुंचा ही नहीं। सिर्फ दो सैटेलाइट को लॉन्च करने की बात कैबिनेट के संज्ञान में लाई गई। 2015 में मोदी सरकार ने नया मसौदा तैयार किया। भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसला का स्वागत किया।
ये मामला इसरो की Antrix Corp और देवास मल्टीमीडिया के बीच हुए एक सैटेलाइट सौदे से जुड़ा है। देवास मल्टीमीडिया और एंट्रिक्स कॉरपोरेशन के बीच साल 2005 में सैटेलाइट सेवा से जुड़ी एक डील हुई थी। बाद में पता चला सैटेलाइट का इस्तेमाल मोबाइल से बातचीत के लिए होना था, लेकिन सरकार की इजाजत नहीं ली गई। देवास को इसरो के ही पूर्व साइंटिफिक सेक्रेटरी एमडी चंद्रशेखर ने बनाया था। इसे 2011 में फर्जीवाड़े के आरोपों को चलते रद्द कर दिया गया।
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डील कैंसल होने के बाद देवास ने भारत सरकार से अपने नुकसान की भरपाई करने की मांग की थी। खिंचता हुआ ये मामला इंटरनेशनल कोर्ट में पहुंच गया। यहां देवास की जीत हुई थी। इंटरनेशनल चैंबर ऑफ कॉमर्स की कोर्ट ने भारत सरकार से कहा था कि वह देवास को 1.3 बिलियन डॉलर का भुगतान करे। इस रकम की रिकवरी के लिए देवास के विदेशी शेयरहोल्डर्स कनाडा और अमरीका समेत कई देशों में भारत सरकार के खिलाफ मुकदमा दायर कर चुके हैं।