सरकार विकास के कितने ही दावे करे, लेकिन आज भी कई क्षेत्र इतने पिछड़े है कि वहां लोगों का पहुंचना भी मुश्किल हो रहा है। ऐसा ही एक गांव पंचायत माखीदा का सामरा गांव है।
बूंदी•Jul 08, 2021 / 09:10 pm•
पंकज जोशी
गांव में रास्ते नहीं, पैदल आवागमन करने को विवश है सामरा गांव के ग्रामीण
गांव में रास्ते नहीं, पैदल आवागमन करने को विवश है सामरा गांव के ग्रामीण
बड़ाखेड़ा. सरकार विकास के कितने ही दावे करे, लेकिन आज भी कई क्षेत्र इतने पिछड़े है कि वहां लोगों का पहुंचना भी मुश्किल हो रहा है। ऐसा ही एक गांव पंचायत माखीदा का सामरा गांव है।
करीब 50 घरों की बस्ती के लिए कोई मार्ग नहीं है। यहां न तो रोजगार है और न ही कोई और सुविधा। सडक़ न होने के कारण ग्रामीण बदहाली का जीवन जीने को मजबूर हैं।
ग्रामीणों के लिए आजीविका के लिए केवल मानसून आधारित कृषि भूमि है। अपने दैनिक जीवन की जरूरतों से लेकर चिकित्सा या अन्य कामों के लिए तीन किलोमीटर पैदल चलकर बड़ाखेड़ा जाना पड़ता है। आने जाने का मार्ग कच्ची पगडंडी है। ग्रामीणों के पास जॉबकार्ड है। जब मस्टरोल चलती है, तब मजदूरी करने का मौका मिल जाता है, वरना इंतजार ही करना पड़ता है।
ग्रामीणों ने कई बार जनप्रतिनिधियों व उच्चाधिकारियों से गुहार लगाई, लेकिन अब तक उनके पास सुविधाओं का अभाव है।
पलायन के लिए विवश हैं ग्रामीण
आवागमन जैसी बुनियादी जरूरत को न केवल प्रशासन बल्कि सरकार भी नजरअंदाज करती आ रही है। ऐसे में गांव के लोग अब पलायन के लिए मजबूर हो रहे हैं। रोजगार की तलाश में कई परिवार शहरों की तरफ अपना रुख कर चुके हैं।
बरसात में टापू बन जाता है गांव
बरसात में गांव टापू बन जाता है। बीमार अस्पताल तक नहीं
पहुंच पाते। ग्रामीण बताते हैं कि बरसात में गांव के मरीज, गर्भवती महिलाओं को अस्पताल तक ले जाना भी बेहद मुश्किल होता है। चारपाई पर लेटाकर गांव से नहर के रास्ते माखीदा तक लाया जाता है ,जहां से लाखेरी या कोटा ले जाना पड़ता है।
सामरा से बड़ाखेड़ा तक सडक़ की समस्या समाधान के लिए किसानों ने अपने खेत में होकर रास्ता दे दिया है। अभी उस पर मनरेगा के अन्तर्गत कार्य शुरू कर दिया है। पक्की सडक़ के लिए विधायक चन्द्रकान्ता मेघवाल को भी अवगत करवाया जा चुका है।
रमेशचंद पालीवाल, सरपंच ग्राम पंचायत माखीदा
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