कलात्मक आईना मानती थीं अभिनय को
सुचित्रा सेन के लिए अभिनय न कारोबार था, न वक्त काटने का जरिया। वे इसे कलात्मक आईना मानती थीं, जो उन्हें उनकी रूह, मन, जज्बात से रू-ब-रू होने का मौका देता था। फिल्में चुनने के मामले में इस कदर सतर्कता बरतती थीं कि उनकी समकालीन अभिनेत्रियों को हैरानी होती थी। सत्यजीत राय और राज कपूर की फिल्मों के प्रस्ताव उन्होंने यह कहकर नकारे कि वे ऐसे किरदारों में नहीं उतरना चाहतीं, जिनमें सहजता तथा सुकून की गुंजाइश न हो।
गिनती की हिन्दी फिल्मों में नजर आईं
सुचित्रा सेन बांग्ला फिल्मों में ज्यादा सक्रिय रहीं। अपनी पहली हिन्दी फिल्म ‘देवदास’ की कामयाबी के बावजूद वे हिन्दी की गिनती की फिल्मों में नजर आईं। इनमें देव आनंद के साथ ‘बम्बई का बाबू’ (यहां उन पर सदाबहार ‘दीवाना मस्ताना हुआ दिल’ फिल्माया गया) और संजीव कुमार के साथ ‘आंधी’ (तुम आ गए हो, नूर आ गया है) शामिल हैं। ‘आंधी’ में उनका किरदार कुछ-कुछ तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से प्रेरित था।
उत्तम कुमार के साथ जादू जगाती थी जोड़ी
बांग्ला फिल्मों में उत्तम कुमार के साथ उनकी जोड़ी वही जादू जगाती थी, जो हिन्दी फिल्मों में राज कपूर और नर्गिस की जोड़ी जगाया करती थी। अपने कॅरियर की करीब 60 में से आधी फिल्में उन्होंने उत्तम कुमार के साथ कीं। ‘ममता’ उनकी बांग्ला फिल्म ‘उत्तर फाल्गुनी’ का रीमेक थी। इसमें उन्होंने तवायफ और उसकी वकील बेटी के दोहरे किरदार अदा किए। एक और बांग्ला फिल्म ‘दीप जेले जाइ’ उनके अभिनय की गहराई के लिए याद की जाती है। इसमें उन्होंने संजीदा, मासूम नर्स का किरदार अदा किया। यह फिल्म हिन्दी में ‘खामोशी’ के नाम से बनाई गई। इसमें वहीदा रहमान नर्स के किरदार में हैं।
ग्रेटा गार्बो के नक्शे-कदम पर
सत्तर के दशक के आखिर में अचानक फिल्मों से संन्यास लेकर सुचित्रा सेन ने अपने प्रशंसकों को चौंका दिया। चौंकाने वाली बात यह भी थी कि इसके बाद उन्होंने दुनिया से पूरी तरह कटकर खुद को घर की दीवारों तक सीमित कर लिया। उन्होंने दादा साहब फाल्के अवॉर्ड लेने से भी इनकार कर दिया, क्योंकि इसे ग्रहण करने दुनिया के सामने आना पड़ता। फिल्मों से कटने के बाद इसी तरह का अज्ञातवास हॉलीवुड की अभिनेत्री ग्रेटा गार्बो ने काटा था।