लेकिन इस महानायक को भी संघर्ष के मुश्किल दौर से गुजरना पड़ा। उनके संघर्षों की कहानियां आज छुपी हुई नहीं हैं। एक बार जब वह आकाशवाणी केन्द्र में काम मांगने पहुंचे तो उनकी आवाज के कारण उन्हें बाहर कर दिया गया।
ऐसे ही एक फिल्म निर्माता ने उन्हें उनकी लंबे कद के चलते फिल्मों में लेने से इंकार कर दिया था। लेकिन ये नहीं जानते थे कि यही आवाज बॉलीवुड में दशकों तक गूंजती रहेगी। यहीं लंबे कद का व्यक्ति अभिनय की नई ऊंचाइयों को छू लेगा।
इलाहाबाद में जन्मे अमिताभ का नाम पहले ‘इंकलाब’ रखा गया था। लेकिन बाद में कवि सुमित्रानंदन पंत द्वारा इन्हें अमिताभ नाम दिया गया। अमिताभ के संघर्ष का दौर वर्ष 1969 में खत्म हुआ जब उन्हें ‘सात हिंदुस्तानी’ में अभिनय का मौका मिला। इस फिल्म में उनको शानदार अभिनय के लिए बेस्ट एक्टर डेब्यू का फिल्मफेयर अवार्ड दिया गया।
इसके बाद इन्हें 1971 में फिल्म ‘आनंद’ जिसमें दिग्गज अभिनेता राजेश खन्ना के साथ इनके एक्टिंग करियर को नई पहचान मिली। 1973 का वर्ष अमिताभ के जीवन में एक नया बदलाव लाया। इस वर्ष उन्हें ओम प्रकाश मेहरा ने फिल्म ‘जंजीर’ के लिए चुना। जिसमें उन्होंने इंस्पेक्टर विजय का किरदार निभाया, जो कालजयी बन गया। इसके बाद उनका गोल्डन एरा शुरू हुआ और उन्होंने लगातार 22 फिल्मों में विजय नाम से ही किरदार निभाये।
जंजीर, रोटी कपड़ा और मकान, हेरा-फेरी, त्रिशूल, डॉन, द ग्रेट गैम्बलर, काला पत्थर, शक्ति, आखिरी रास्ता, दो और दो पांच, दोस्ताना, शान, अग्निपथ, शहंशाह वे प्रमुख फिल्में रहीं जिनमें अमिताभ ने विजय का किरदार निभाया। माना जाता है कि उन दिनों ये चलन था कि जिस एक्टर की एक फिल्म किसी एक किरदार के नाम से हिट हो जाती थी। उसके बाद उस नाम को कई फिल्मों में दोहराया जाता था। इसी वजह से अमिताभ 22 फिल्मों में लगातार एक ही नाम से किरदार निभाते चले गए।