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दिल की आवाज सुनकर O.P. Nayyar ने रचे बेशुमार कालजयी गीत

शास्त्रीय संगीत की तालीम नहीं ली, लय और ताल पर उनकी गहरी पकड़
एक दौर में सबसे ज्यादा मेहनताना लेने वाले संगीतकार हुआ करते थे
एक से बढ़कर एक खनकती धुनों से फिल्म संगीत को दी नई व्याकरण

Jan 27, 2021 / 11:46 pm

पवन राणा

OP Nayyar

OP Nayyar

-दिनेश ठाकुर

ओ.पी. नैयर ( O.P. Nayyar ) की धुनों वाले सैकड़ों गीत आंखों में सुरों का इंद्रधनुष-सा खींच देते हैं। ‘हमसाया’ का ऐसा ही एक गीत है- ‘दिल की आवाज भी सुन, मेरे फसाने पे न जा/ मेरी नजरों की तरफ देख, जमाने पे न जा।’ इसे सुनते हुए महसूस होता है कि नैयर यहां अपनी धुन से ही मुखातिब हैं। गोया धुन से इसरार किया जा रहा है कि जमाने की, दुनियादारी की बातें छोड़कर दिल की आवाज सुनी जाए। दिल ही महान रचनाओं की गंगोत्री है। नैयर जब तक फिल्मों में सक्रिय रहे, उन्होंने दिल की आवाज सुनकर ऐसी-ऐसी कालजयी धुनों का सृजन किया कि चिंताओं के बादल छट जाएं, थमी हवा फिर झूमकर चल पड़े, सारा आलम गुनगुनाने लगे।


पोस्टरों पर कलाकारों से पहले नैयर का नाम
ऐसे दौर में, जब सचिन देव बर्मन, नौशाद, सी. रामचंद्र, मदन मोहन और शंकर-जयकिशन जैसे महान संगीतकारों की धुनों ने जमाने को मोहित कर रखा था, ओ.पी. नैयर का आगमन भारतीय फिल्म संगीत में नई क्रांति की इब्तिदा साबित हुआ। नए-नए खिले फूलों जैसी ताजा धुनों ने उन्हें देखते ही देखते बुलंदी पर पहुंचा दिया। एक दौर में वह सबसे ज्यादा मेहनताना लेने वाले संगीतकार हुआ करते थे। फिल्म के पोस्टरों पर कलाकारों से पहले उनका नाम दिया जाता था। तांगे और घोड़े की टापों से पंजाबी टप्पों तक, दर्द में भीगी धुनों से उमंगों के घुंघरुओं की झंकार तक, उनका संगीत सरापा जादू महसूस होता है। यह जादू गुरुदत्त की ‘आर-पार’ (1954) के ‘कभी आर कभी पार लागा तीरे-नजर’, ‘बाबूजी धीरे चलना’, ‘ये लो मैं हारी पिया’ से शुरू हुआ और फिल्म-दर-फिल्म सिर चढ़कर बोलता रहा।

इशारों-इशारों में दिल लेने वाले…
ओ.पी. नैयर ने शास्त्रीय संगीत की बाकायदा तालीम नहीं ली, लेकिन लय और ताल पर उनकी गहरी पकड़ थी। वाद्यों के इस्तेमाल में उन्हें कमाल हासिल था। हारमोनियम पर आधारित ‘लेके पहला-पहला प्यार’ या ‘कजरा मोहब्बत वाला’ हो, गिटार आधारित ‘पुकारता चला हूं मैं’ हो, संतूर आधारित ‘इशारों-इशारों में दिल लेने वाले’ या सेक्सोफोन पर आधारित ‘है दुनिया उसी की, जमाना उसी का’ हो, लय इनमें ताल के साथ झूम-झूम उठती है। तालियों पर आधारित ‘ये चांद-सा रोशन चेहरा’, ‘मेरा नाम चिन-चिन चू’ और ‘रेशमी सलवार कुर्ता जाली का’ में धुन की मस्ती को उन्होंने नई ऊंचाई दी। ‘उड़े जब-जब जुल्फें तेरी’, ‘ये देश है वीर जवानों का’, ‘लेके पहला-पहला प्यार’, ‘कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना’, ‘सिर पर टोपी लाल हाथ में रेशम का रूमाल’ में यह मस्ती चरम पर महसूस होती है।

सीधे दिल में उतरने वाली धुनें
खनकती धुनों से फिल्म संगीत को नई व्याकरण देने वाले ओ.पी. नैयर की धुनें हर तरह के बंधन से आजाद महसूस होती हैं। वे दिल से उपजी थीं। सीधे दिल में उतरती हैं। इनमें लोक संगीत का वैभव भी है, सुगम-शास्त्रीय संगीत की रवानी भी, तो पश्चिमी संगीत की तड़क-भड़क भी। धीमे सुरों वाले उनके ‘मेरी नींदों में तुम मेरे ख्वाबों में तुम’, ‘जाइए आप कहां जाएंगे, ‘चैन से हमको कभी आपने जीने न दिया’, ‘टुकड़े हैं मेरे दिल के ए यार तेरे आंसू’, ‘यही वो जगह है’ और ‘आज कोई प्यार से दिल की बातें कह गया’ में भी गजब की दिलकशी है। उनके ज्यादातर गीत मोहम्मद रफी, गीता दत्त, आशा भौसले और शमशाद बेगम ने गाए। आशा भौसले को गायन में अलग मुकाम देने में सबसे बड़ा योगदान ओ.पी. नैयर का है। जिस दौर में लता मंगेशकर की आवाज के बगैर किसी संगीतकार की कामयाबी संदिग्ध मानी जाती थी, ओ.पी. नैयर इस आवाज का सहारा लिए बगैर कामयाबी का सुरीला इतिहास रच गए।

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