scriptMunshi Premchand की 84वीं बरसी: उनकी कहानियों पर कई फिल्में बनीं, लेकिन प्रेमचंद को रास नहीं आई फिल्मी दुनिया | Munshi Premchand 84th death anniversary, know movies on his novels | Patrika News
बॉलीवुड

Munshi Premchand की 84वीं बरसी: उनकी कहानियों पर कई फिल्में बनीं, लेकिन प्रेमचंद को रास नहीं आई फिल्मी दुनिया

हिन्दी के महान कथाकार मुंशी प्रेमचंद ( Munshi Premchand ) (इनकी 8 अक्टूबर को 84वीं बरसी है) की कहानियों पर जो नौ फिल्में बनीं, उनमें से ज्यादातर के साथ ‘लोस्ट इन ट्रांसलेशन’ वाला मामला रहा। प्रेमचंद की भारतीय परिवेश वाली कहानियों को पढ़ते हुए मिट्टी की जो महक महसूस होती है, आंखों में जो सहज तस्वीरें उभरती हैं, इन पर बनी फिल्में इस प्रभाव से काफी दूर खड़ी नजर आती हैं।

Oct 07, 2020 / 11:35 pm

पवन राणा

Munshi Premchand की 84वीं बरसी: उनकी कहानियों पर कई फिल्में बनीं, लेकिन प्रेमचंद को रास नहीं आई फिल्मी दुनिया

Munshi Premchand की 84वीं बरसी: उनकी कहानियों पर कई फिल्में बनीं, लेकिन प्रेमचंद को रास नहीं आई फिल्मी दुनिया

—दिनेश ठाकुर

किसी साहित्यकार की रचना की सिनेमा के पर्दे पर हू-ब-हू तर्जुमानी नामुमकिन भले न हो, मुश्किल जरूर है। मुश्किल भी इतनी ज्यादा, जैसे पहाड़ को खोदकर नहर के लिए रास्ता बनाना। खुद साहित्यकार अगर फिल्म बनाएं, तो वह भी इस मुश्किल से न बच पाएं। ख्वाजा अहमद अब्बास ने अपनी कहानियों पर खुद जो फिल्में (शहर और सपना, सात हिन्दुस्तानी) बनाईं, नहीं चलीं, जबकि अब्बास की कहानियों पर राज कपूर ‘आवारा’ और ‘श्री 420’ बनाकर अमर हो गए। हर माध्यम के अपने अलग तकाजे होते हैं। इसीलिए शेक्सपीयर ने कहा था-‘अगर मेरी कविता की हत्या करनी है, तो इसका अनुवाद कर दो।’ इस थीम पर हॉलीवुड में ‘लोस्ट इन ट्रांसलेशन’ नाम की फिल्म बन चुकी है।

— हरियाणवी डांसर Sapna Choudhary ने दी खुशखबरी, पहले बच्चे के जन्म पर घर में खुशियों का माहौल

हिन्दी के महान कथाकार मुंशी प्रेमचंद ( Munshi Premchand ) (इनकी 8 अक्टूबर को 84वीं बरसी है) की कहानियों पर जो नौ फिल्में बनीं, उनमें से ज्यादातर के साथ ‘लोस्ट इन ट्रांसलेशन’ वाला मामला रहा। प्रेमचंद की भारतीय परिवेश वाली कहानियों को पढ़ते हुए मिट्टी की जो महक महसूस होती है, आंखों में जो सहज तस्वीरें उभरती हैं, इन पर बनी फिल्में इस प्रभाव से काफी दूर खड़ी नजर आती हैं। सत्यजीत रे जैसे मंजे हुए फिल्मकार भी ‘शतरंज के खिलाड़ी’ (1977) बनाकर आलोचनाओं से नहीं बच सके। प्रेमचंद की मूल कहानी में न इतने किरदार थे और न इतनी घटनाएं कि दो घंटे लम्बी फिल्म बनती। प्रेमचंद की कहानी मीर और मिर्जा के इर्द-गिर्द घूमती है। ‘शतरंज के खिलाड़ी’ में संजीव कुमार ने मिर्जा सज्जाद अली और सईद जाफरी ने मीर रोशन अली का किरदार अदा किया। अमजद खान अवध के नवाब वाजिद अली शाह के किरदार में थे। रे ने फिल्म में कुछ नए किरदार (शबाना आजमी, फारूख शेख, टॉम अल्टर, फरीदा जलाल, रिचर्ड एटनबरो) जोड़ दिए और कहानी भी थोड़ी बदल दी। उन्हें कहानी की हत्या के आरोपों का सामना करना पड़ा।

— स्नेहा उल्लाल को क्यों कहा जाता है Aishwarya की हमशक्ल, मिलती-जुलती सूरत नहीं, ये है राज

इस तरह के आरोपों का सिलसिला प्रेमचंद के जीवन काल में ही शुरू हो गया था, जब वेश्या उद्धार के कथानक वाले उनके उपन्यास ‘सेवा सदन’ पर 1933 में इसी नाम से नानूभाई वकील ने फिल्म बनाई । प्रेमचंद की किसी रचना पर यह पहली फिल्म थी। इसमें वेश्या का किरदार जुबैदा ने अदा किया, जबकि शाहु मोदक समाज सुधारक बने थे। इसके बाद ‘मजदूर’ बनी। इसकी तारीफ हुई, लेकिन ज्यादा दर्शक नसीब नहीं हुए। आज इस फिल्म का कोई प्रिंट उपलब्ध नहीं है। कपड़ा मिल में हड़ताल की थीम वाली यह पहली फिल्म थी। सेंसर बोर्ड ने पहले इसे सर्टिफिकेट देने से इनकार कर दिया था। कुछ हिस्से दोबारा फिल्माए जाने के बाद इसे सिनेमाघरों में जाने की हरी झंडी दिखाई गई। इसमें जयराज और बिब्बो के अहम किरदार थे।


कृष्ण चोपड़ा ने प्रेमचंद की ‘दो बैलों की कथा’ पर 1959 में ‘हीरा मोती’ (बलराज साहनी, निरुपा रॉय) बनाई। हृषिकेश मुखर्जी की ‘गबन’ (सुनील दत्त, साधना) इसलिए उल्लेखनीय है कि यह प्रेमचंद की कहानी के अनुवाद में कम से कम छूट लेती है। इसका एक गाना ‘अहसान मेरे दिल पे तुम्हारा है दोस्तो’ आज भी लोकप्रिय है। मणि कौल ने बहुचर्चित ‘कफन’ पर तेलुगु में ‘ओका उरी कथा’ बनाई, जिसे नेशनल अवॉर्ड से नवाजा गया। मणि कौल इसे हिन्दी में डब करना चाहते थे, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया।

— यूजर बोला, ‘सिनेमाघर खुलें या नहीं, आप तो बेकार ही रहोगे’, Abhishek Bachchan ने दिया करारा जवाब

प्रेमचंद को 1934 में मुम्बई की एक कंपनी ने आठ हजार रुपए के सालाना वेतन (तब यह काफी बड़ी रकम थी) पर फिल्मों की कहानियां लिखने बुलाया था। एक साल बाद ही उन्होंने यह कहते हुए मुम्बई को अलविदा कह दिया कि फिल्मी दुनिया के प्रतिकूल माहौल में वे कलम नहीं चला सकते। प्रेमचंद अपनी कहानियों पर बनी फिल्मों से भी खुश नहीं थे। अपने देहांत से सालभर पहले उन्होंने कथाकार मित्र जैनेन्द्र कुमार को जो खत लिखा था, उससे उनकी पीड़ा को समझा जा सकता है। प्रेमचंद ने लिखा- ‘यह फिल्म (मजदूर) मेरी कहानी पर बनी है, लेकिन मैं इसमें बहुत थोड़ा-सा हूं। मेरी कहानी में रोमांस जाने क्यों डाल दिया गया। लेखक भले कलम का बादशाह हो, फिल्मों में निर्देशक की चलती है। यहां निर्देशक चिल्ला कर कहता है- ‘हमें फिल्म बनाना मत समझाओ। हम कारोबार करने बैठे हैं। हम जानते हैं, जनता क्या चाहती है।’

Hindi News / Entertainment / Bollywood / Munshi Premchand की 84वीं बरसी: उनकी कहानियों पर कई फिल्में बनीं, लेकिन प्रेमचंद को रास नहीं आई फिल्मी दुनिया

ट्रेंडिंग वीडियो