जगजीत सिंह संगीत की दुनिया के ऐसे चमकते सितारें हैं जो हमेशा ही अपने गानों के साथ जिन्दा रहेंगे। जगजीत ने कई फिल्मों में संगीत दिया, लेकिन बाद में गज़ल गायकी में ही रम गए। उन्होंने गज़ल को बिल्कुल अलग अंदाज में गाया। इसके लिए उनकी आलोचना हुई और आरोप लगा कि जगजीत ने गज़ल के शास्त्रीय अंदाज की अनदेखी की। वो कागज की कस्ती, तुम इतना जो मुस्करा रहे हो, आहिस्ता-आहिस्ता जैसे गानों से जगजीत ने लोगो को अपना कायल बना दिया था।
बता दें कि शुरआत में जगजीत सिंह जब मुंबई पहुंचे तो उनके पास काम नहीं था। शुरू-शुरू में वो पार्टियों में गाना गाया करते थे। इसके लिए उन्हें 200-250 रुपये मिला करता था। कई बार तय से कम पैसे भी मिलते थे।
जगजीत सिंह की परवरिश मिडिल क्लास परिवार में हुई थी। बचपन में जगजीत सिंह बहुत शरारती थे और उन्हें फिल्में देखने का बहुत शौक था। घर से पैसे चुराकर फिल्में देखने जाते थे। कई बार पैसे ना होने पर पुराना टिकट दिखाकर गेटकीपर को चकमा दे देते थे। उनका मन पढ़ाई में नहीं लगता था। उन्होंने नकल कर बचपन में कई परीक्षाएं पास की।
जगजीत के निधन के बाद भारत सरकार ने उनके नाम पर स्टांप जारी किया है। उनका निधन 10 अक्टूबर 2011 को हुआ था। उन्हें पद्म भूषण और साहित्य अकादमी से भी नवाजा गया है।